Saturday, April 12, 2008

आज तुझे देने को मेरे पास कुछ नहीं ... (?)

'जिप्सी किंग्स' फ़्रांस के एक मशहूर शहर आर्लेस से ताल्लुक रखते हैं. ये वही आर्लेस है जो विन्सेंट वान गॉग के जीवन का भी हिस्सा रहा था. स्पानी गृह युद्ध के समय इन लोगों के मां-बाप स्पेन से भाग कर यहां आए थे. मूलतः ये लोग रोमा संगीतकार हैं और दुनिया भर में फ़्लेमेंको के नाम से जाने जाने वाले संगीत के लोकप्रिय संस्करण रुम्बा कातालेना को लोगों के सामने लाने के लिए विख्यात हैं. साल्सा और रुम्बा जैसे पारम्परिक नृत्यों में बजाया जाने वाला संगीत भी उनकी ख़ूबी है.

मुझे ख़ुद ऐसा लगता है कि इस ग्रुप को चलाने वाले ये भाई काफ़ी कुछ अपन जैसे हैं. सुनिये उन्हीं का एक गीत : "कामीनान्दो पोर ला कायेस ज़ो ते वी" माने रास्ते पर चलते हुए मैंने तुझे देखा. यहां इस बात को बताया ही जाना चाहिए कि हमारे महान देश के महान संगीतकार अन्नू मलिक इस धुन को 'तुझे देने को मेरे पास कुछ नहीं'(हो सकता है मैं शब्दों में गड़बड़ा रहा हूं) नामक दो कौड़ी के गाने में अपना बना कर पेश कर चुके हैं.


7 comments:

Anonymous said...

पाण्डेयजी , गीत का विजेट बरोबर चढ़ा नहीं है , शायद।

Anonymous said...

सुन पाए.अत्यन्त मनोहारी.चोरी वाला गीत याद नहीं आया .

Ashok Pande said...

सु/बे साहब मैं तो अपने कम्पूटर पे सुन पा रहा हूं. कहीं कोई पेन्चर होगा तो अभी चेक किये लेता हूं.

Ashok Pande said...

अच्छा तो ये आप थे साहब! आज आपने क्या ग़ज़ब के गाने लगाए हैं. शुक्रिया एक बार और.

राज भाटिय़ा said...

पाण्डेयजी यह लोग भी भारत से ही कई सो साल पहले गये थे, इन्हे ईरान के बद्शाह ने सगींत प्रेमी होने के नाते इरान मे बुलाया था, फ़िर वहा तख्ता पलट गया तो यह भाग कर जिधर भी जा सके भाग गये, सब से पहले यह रोमेनिया मे घुसे, फ़िर वहा से पुरे युरोप मे फ़ेल गये,

Ashok Pande said...

जानकारी देने हेतु धन्यवाद भाटिया साहब.

rajesh rawat said...

ashok g gane ki link down lode kaise karte hai use ki bhi jankare blog par de taki ham jaise nai log bhi sun sake
-rajesh bhopal