पूरे पखवाड़े बाद अमेज़न के जंगलों से लौटा हूँ. अमेज़न महानद में चार दिन, दिन-रात नाव पर यात्रा करते हुए हज़ारों वर्ग किलोमीटर भाँसी जंगल पार किए, बस्तियों से होकर गुज़रा, शहरों में टहला, लोगों से बतियाया, उनके गीत सुने, उनके सुख बाँटे, दुख जाने, चौवन मीटर ऊँची मीनार से अमेज़न के जंगलों का विहंगम दृश्य देखा. छोटी नाव पर भी यात्रा की. टुक्की टुक्की तक नदी में डूबे विशाल पेड़ देखे. रात के अँधेरे में जंगलों की चुप्पी को सुना, पिराना मछली के दाँत देखे, एक घड़ियाल के बच्चे की पीठ पर हाथ फेरा, नदी में हाथ बढ़ाकर सफ़ेद कमलिनी का फूल तोड़ा, उसकी मदहोश कर देने वाली भीनी भीनी सुगंध को अपने नथुनों में भरा, ब्राज़ील में कैपरीनिया के घूँट चखे, रियो दे जनेरो के कोपाकबाना साहिल पर लुटा और फिर लौटा. विस्तार का इंतज़ार करो कबाड़ियों. तस्वीरें भी होंगी.
राजेश जोशी
7 comments:
बीबीसी हिन्दी वेब पर लगातार आपकी यात्रा के लेख पढ रहा हूँ। अब आप के ब्लाग पर लिखने का इंतजार है।
राजेश भाई, आपका अनुभव प्रचुर है. इसे चिंटू पोस्ट की तरह नहीं; लोकमान्य ब्लॉग 'कबाड़खाना' पर यथासम्भव भरपूर बाँटते चलें. हम भी लाभ उठाएंगे.
रे जोसी, कदी-कदी अपने देस भी घूम जाया कर भाई। घणे दिन होग्गे, मलाकात ना हुई। इब कब आएगा देस।
आप भी गज़ब ढा रहे है! अरे पूरा एक पखवाड़ा गुज़ार के लौट रहे है और चूरन थमा के निकल रहे हैं इसी को कहते हैं नाइंसाफ़ी..समझे की नहीं..दो लाईन में कुछ पता ही नहीं चल पा रहा है साथी एक पूरी पोस्ट की दरकार है....हमारी मांग पूरी करो....
ऊपर की टिप्पणी जो विमल जी के नाम से छपी है ।
वो हमने की है । ऐसा समझ लीजिए ।
विमल भाई और यूनुस भाई की हर बात को मेरी भी माना जाय जोसी जी!
बहुत अच्छा लगेगा वहां के सफ़रनामे से गुज़रना. इन्तज़ार है
daju ab main bhee kabaadkhaane ka maja lee raha hoo,ab pure safar naame ka intzar hai....
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