पंडित छन्नूलाल मिश्र जी का गायन मैंने पहली बार अविनाश के मोहल्ले पर सुना था. 'मोरे पिछवरवा' सुनने के बाद मैं एकदम बौरा सा गया था. उसके बाद पंडिज्जी के संगीत को जमा करने का काम शुरू किया. अब मेरे पास उनका काफ़ी सारा संगीत है.
अविनाश को धन्यवाद कहते हुए मैं आज आपको सुनवा रहा हूं पंडित छन्नूलाल मिश्र के अलबम 'कृष्ण' से एक और रचना
2 comments:
अशोक भाई...छन्नूलालजी को हमारे गुणी (?)संगीत समीक्षकों को बहुत अंडर एस्टीमेट किया है. एक तो पंडितजी प्रचार प्रसार और नये ज़माने के फ़ंडों से दूर रहने वाले और तिस पर म्युज़िक प्रमोशन के लिये चलती एक ख़ास किसिम की लॉबिंग.इसमें कोई शक नहीं कि ख़रज में डूबी छन्नूलालजी की आवाज़ की खरे पन में एक आत्मीय अपनापन है जैसे अपने गाँव के मंदिर के ओटले के अपने ही मोहल्ले के काका भजन सुना रहे हैं.वे शास्त्रीय संगीते की महफ़िलों में भी इसी सादगी के हामी हैं.पं.अनोखेलालजी के दामाद और जानेमाने युवा तबला वादक श्री रामशंकर मिश्र के पिता पं.छ्न्नूलालजी इलाहाबाद - बनारस की रसपूर्ण परम्परा के वाहक हैं और तामझाम से परे इस नेक और क़ाबिल स्वर-साधक को सुनवाने के लिये साधुवाद आपको.
बहुत ऊम्दा ...
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