Saturday, June 7, 2008

प्रेम की माला जपते-जपते आप बनी मैं श्याम

कुछ दिनों पहले मैंने आपको नुसरत फ़तेह अली ख़ान साहब की यह बेहतरीन क़व्वाली सुनवाने की दो दफ़ा कोशिश की थी लेकिन तकनीकी कारणों से पूरी कभी नहीं सुनवा सका.

फ़ितरत में ज़िद की मात्रा थोड़ा ज़्यादा होने के कारण मैं अपने कबाड़ी टोटके आजमाता रहा और आख़िरकार इसे पूरी तरह अपलोड कर सका.

विमल भाई, संजय भाई और उदय प्रकाश जी और आप सभों के वास्ते की जा रही एक ख़ास पेशकश. आनन्द लीजिये.


boomp3.com

(अवधि: आधे घन्टे के आसपास)

10 comments:

Ramesh Ramnani said...

बहुत खूब़। अति सुन्दर। वाह आपने तो कमाल कर दिया। इससे बढ़िया तोहफा क्या हो सकता है आज सप्ताहन्त का।

रमेश

Ramesh Ramnani said...

अरे यार शाबाशी तो दे दी लेकिन ये तो पूरा डाउनलोड ही नही हो रहा। सिर्फ मुखड़ा ही सुन सका। कुछ करो मेरे दोस्त।

रमेश

Ashok Pande said...

मेरे यहां तो सब कुछ हो रहा है मित्र रमेश! थोड़ा सब्र ज़रूरी है और शायद थोड़ा तेज़ इन्टरनैट. डाउनलोड का लिंक तो ये है ही: http://boomp3.com/listen/f7s5gbh/saanson-ki-mala-pe

शुभकामनाएं

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

भाई, आपकी मेहनत हम लोगों के लिए सचमुच रंग लाई है. नुसरत साहब को सुनते हुए किसी और ही दुनिया में पहुँच गए हैं. अब यहाँ से लौटने में थोडा वक़्त लगेगा.

एक बार सुनना शुरू किया तो धीरज-वीरज रखने की बातें बकवाद लगने लगीं.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

एक ज़माने में, जब नुसरत साहब भारत में मशहूर होना शुरू ही हुए थे, तब 'प्लस चैनल' ने (सौभाग्य से जिसका मैं बतौर लेखक एक कर्मचारी था) लाइव कार्यक्रम करवाया था दिल्ली में, उसकी रिकोर्डिंग हमारे पास मौजूद थी (श्रोताओं की तालियों समेत) ; जिसे हम गाहे-बगाहे सुना करते थे. उसमें यह कव्वाली नहीं थी. इसे सुनकर ख़ास सुकून हासिल हुआ.

और एक बात... इस कव्वाली का संगीत नुसरत साहब के गायन पर बाजी मार ले जाता है.

siddheshwar singh said...

कबाड़ी खुश हुआ!
बोफ़्फ़ाईन!!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नुसरत साहब क्या अज़ीम फनकार थे - अफसोस है उनके जाने का :((
- लावण्या

deepak sanguri said...

khus kitta....
ae twade waste
http://www.musicindiaonline.com/

sanjay patel said...
This comment has been removed by the author.
sanjay patel said...

नुसरत बाबा बेजोड़ हैं.किसी दूसरी दुनिया के वासी ...हम पर जैसे एक एहसान करने आये थे.ज़िन्दगी में जिस तरह का तनाव , तल्ख़ियाँ और तमस है क्या वे नुसरत साहब जैसे संगीतकारों के बिना निपटा सकते थे हम आप अशोक भाई...
ज़िन्दगी का आसरा है ऐसा संगीत.