Tuesday, June 24, 2008

पाप का पुरस्कार और कला की राजनीति

(उम्मीद है कि कबाड़खाना के कलाप्रेमी पाठकों, दर्शकों श्रोताओं को इस चर्चा से एतराज न होगा। कला के सामाजिक- राजनीतिक पक्ष को लेकर बातचीत के लिए ये मंच सबसे उचित लगा, इसलिए यहां बात हो रही है। - दिलीप मंडल)
सौमित्र बाबू यानी सौमित्र चटर्जी यानी वो कलाकार जिनकी फिल्मों का मैं बचपन से फैन रहा हूं। मैंने जिंदगी में जो पहली फिल्म (सोनार केल्ला) देखी थी, उसके हीरो थे सौमित्र बाबू। उसके बाद हीरक राजार देशे, गणशत्रु, चारुलता से लेकर न जाने कितनी फिल्मों में उनके निभाए रोल अब भी याद आते हैं। अब उन्हीं सौमित्र बाबू को बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय सम्मान मिल रहा है। इस पर हम सबको खुश होना चाहिए!

लेकिन आज सौमित्र चटर्जी की चर्चा करते समय एक ऐसा चेहरा क्यों सामने आ रहा है जो हत्या के पक्ष में खड़ा है। जो अन्याय का समर्थक है। जो नंदीग्राम में हुए उत्पीड़न से दुखी नहीं है। बल्कि नंदीग्राम में खून-खराबे के पक्ष में हुई रैली में शामिल होता है, रैली को लीड करता है और भाषण में कहता है कि "जिन लोगों को (सीपीएम समर्थकों को) गांवों से खदेड़ दिया गया था वो छल-बल और कौशल से अपने घरों को लौट आए हैं। इसमें गलत क्या है?" जिन लोगों ने नंदीग्राम में सीपीएम की भूमिका की निंदा की उन्हें सौमित्रबाबू बुद्धिजीवी की जगह बुद्धुजीवी कहते हैं। देखिए इसकी रिपोर्टिंग। साथ लगी तस्वीर उसी रैली की है। साथ में जो सज्जन बैठे दिख रहे हैं वो संभवत: अजीजुल हक हैं, जो कभी नक्सली रहे और अब सीपीएम के साथ हैं।

सौमित्र बाबू ने 2001 में अपनी फिल्म देखा में भूमिका के लिए दिया गया स्पेशल ज्यूरी एवार्ड लेने से मना कर दिया था। देखा बनाने वासे फिल्मकार गौतम घोष ने भी उस साल बेस्ट फिल्म का अवार्ड नहीं लिया था। उस समय कई फिल्मकारों ने ये आरोप लगाया था कि ज्यूरी का भगवाकरण कर दिया गया है। ये आरोप सही भी था क्योंकि इस ज्यूरी की प्रमुख वैजयंतीमाला बीजेपी में थी और दूसरे सदस्यों में तरुण विजय, शत्रुध्न सिन्हा के पूर्व सचिव पवन कुमार से लेकर बेल्लारी में सुषमा स्वराज के चुनाव प्रचार की प्रभारी निवेदिता प्रधान तक शामिल थीं। ज्यूरी में मैकमोहन उर्फ सांभा भी थे और ये सिर्फ संयोग हो सकता है कि उस साल बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड उनकी भतीजी रवीना टंडन को मिला, जो बीजेपी से करीब भी हैं।

बहरहाल 2008 में अलग किस्म की राजनीति आप नेशनल अवार्ड में देख सकते हैं। सौमित्र बाबू को बेस्ट एक्टर का अवार्ड जिस फिल्म (पदक्षेप) के लिए दिया जा रहा है वो खुद सौमित्र बाबू के मुताबिक उनकी श्रेष्ठ फिल्म नहीं है। उनका सबसे अच्छा दौर बीते 30 साल से ज्यादा समय हो चुका है। ऐसे सौमित्र बाबू को नंदीग्राम में उनके स्टैंड के तुरंत बाद राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना अगर राजनीति नहीं है तो क्या है? सौमित्र बाबू, आप ये पुरस्कार लेंगे या नहीं?

5 comments:

Ashok Pande said...

फ़िल्मों से लेकर साहित्य तक तमाम सरकारी इनामात पर सत्ताधीश काबिज़ रहने लगे हैं. यह एक नई परम्परा है इस देश की कि सत्ता में पहुंचते ही अपने आर्टिस्ट-फ़ार्टिस्ट हितैषियों को भी कुछ मुनाफ़ा पहुंचाया जाय. अख़बारों के माध्यम से अचानक किसी गुमनाम महान कलाकार के घोषित महान बन जाने की ख़बर मिलना अब अचरज से नहीं भरता.

सौमित्र बाबू के इनाम लेने या न लेने से तय होंगी बहुत सारी चीज़ें, दिलीप भाई. बहरहाल, अच्छी बात उठाई आपने. थैंक्यू.

दिलीप मंडल said...

अशोक जी, जिस सौमित्र चटर्जी को मैं पिछले 15 साल से ऑब्जर्व कर रहा हूं, वो ये पुरस्कार जरूर लेगा। ये पुरस्कार एक संवेदनशील कलाकार नहीं ले रहा है न ही ये इनाम किसी की कला का सम्मान करने के लिए दिया जा रहा है।

मृणाल दा और सौमित्र चटर्जी का नया अवतार हम सबके सामने है। कितना लड़ेंगे ये लोग। अब थक गए हैं। अब सुस्ताने का समय है। सत्ता संस्थान की छाया में होना अच्छा लगता होगा उन्हें।

इन लोगों की पुरानी छवि ही हम लोग अपनी स्मृति में रख सकते हैं।

siddheshwar singh said...

दिलीप भाई,आप बहुत लंबे समय बाद यहां पर आए हैं और एक बहुत ही जरूरी, जायज और ज्वलंत मुद्दे के साथ लेकिन मुसीबत यह है कि हम लोग बेहद सीधी-सच्ची बातों को रेशमी डिबिया में रखकर देखने के अभ्यत हो गये हैं था 'की फ़र्क पैंदा'के दरिद्र दर्शन की दिव्यता में सम्मोहित होकर कहने से बचना चाहते हैं
परंतु-

बात (तो) बोलेगी
भेद खोलेगी बात ही..

आप एक तरह से सही कह रहे हैं कि "इन लोगों की पुरानी छवि ही हम लोग अपनी स्मृति में रख सकते हैं।"

आपकी पोस्ट से दुष्यंत याद आ रहे हैं और मुक्तिबोध भी-

मत कहो आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है.
***
बाकी सब ठीक है.

आशीष कुमार 'अंशु' said...

दिलीप भाई,
हाल में ही नन्दीग्राम से होकर आय हूँ.
बहूत बूरी हालत है वहाँ की.

दिलीप मंडल said...

आशीष भाई, आप वहां के अनुभव लिख डालिए। हमें इंतजार रहेगा।