Friday, August 15, 2008
छूने तक को न मिला असल झण्डा
आज़ादी की सालगिरह की सब को मुबारकें. वीरेन डंगवाल की कविता पढ़िये ख़ास आज के मौक़े पर:
पन्द्रह अगस्त
सुबह नींद खुलती
तो कलेजा मुंह के भीतर फड़क रहा होता
ख़ुशी के मारे
स्कूल भागता
झंडा खुलता ठीक ७:४५ पर, फूल झड़ते
जन-गण-मन भर सीना तना रहता कबूतर की मानिन्द
बड़े लड़के परेड करते वर्दी पहने शर्माते हुए
मिठाई मिलती
एक बार झंझोड़ने पर भी सही वक़्त पर
खुल न पाया झण्डा, गांठ फंस गई कहीं
हेडमास्टर जी घबरा गए, गाली देने लगे माली को
लड़कों ने कहा हेडमास्टर को अब सज़ा मिलेगी
देश की बेइज़्ज़ती हुई है
स्वतंत्रता दिवस की परेड देखने जाते सभी
पिताजी चिपके रहते नए रेडियो से
दिल्ली का आंखों-देखा हाल सुनने
इस बीच हम दिन भर
काग़ज़ के झण्डे बनाकर घूमते
बीच का गोला बना देता भाई परकार से
चौदह अगस्त भर पन्द्रह अगस्त होती
सोलह अगस्त भर भी
यार, काग़ज़ से बनाए जाने कितने झण्डे
खिंचते भी देखे सिनेमा में
इतने बड़े हुए मगर छूने को न मिला अभी तक
कभी असल झण्डा
कपड़े का बना, हवा में फड़फड़ करने वाला
असल झण्डा
छूने तक को न मिला!
Labels:
वीरेन डंगवाल
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21 comments:
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
वँदे मातरम !
स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।
इतने बड़े हुए मगर छूने को न मिला अभी तक
कभी असल झण्डा
कपड़े का बना, हवा में फड़फड़ करने वाला
असल झण्डा
छूने तक को न मिला!
ye to hai bhai...
यार, काग़ज़ से बनाए जाने कितने झण्डे
खिंचते भी देखे सिनेमा में
इतने बड़े हुए मगर छूने को न मिला अभी तक
कभी असल झण्डा
कपड़े का बना, हवा में फड़फड़ करने वाला
असल झण्डा
छूने तक को न मिला!
वाह अशोक जी अंतिम पंक्तियों में गहरी बात कह गये। संवेदित करती है रचना...
स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें..
***राजीव रंजन प्रसाद
क्या कहा है- "असल" झंडा - बहुत मज़ा आया - [ वो क्या आप कहते हैं आप - बौफ़्फ़ाईन - या उससे भी एक दर्जा ऊपर ] - मनीष
यार, काग़ज़ से बनाए जाने कितने झण्डे
खिंचते भी देखे सिनेमा में
इतने बड़े हुए मगर छूने को न मिला अभी तक
कभी असल झण्डा
कपड़े का बना, हवा में फड़फड़ करने वाला
असल झण्डा
छूने तक को न मिला!सुन्दर अभिव्यक्ति । स्वाधीनता दिवस की बधाई
असल झंडा छूने को मिल जाए, ये पता नहीं कब संभव होगा लेकिन कबूतर एक साथ ताकत लगाएं तो शिकारी का जाल कभी भी उड़ाने की हैसियत रखते हैं।
कविता के साथ लगी तस्वीर जिसने भी अपने कैमरे में कैद की है, उसे लख-लख बधाईयां। ये तस्वीर एक कविता नहीं बल्कि महाकाव्य अपने में छिपाये हुए है।
वाह जी आज तो स्वतंत्रता दिवस की रौनक है हर जगह… ये तो अपने सरकारी स्कूल की कहानी लग रही है…
वाह जी आज तो स्वतंत्रता दिवस की रौनक है हर जगह… ये तो अपने सरकारी स्कूल की कहानी लग रही है…
वन्या कल से १५ अगस्त को ले कर इतना उत्साहित थी कि रह-रह कर मुझे वीरेनदा की यह कविता याद आ रही थी। आज वह बहुत उत्साह के साथ स्कूल गई है ध्वजारोहण देखने। बालमन को इतनी बारीकी से समझने वाले वीरेन दा की जय हो।
सुन्दर अभिव्यक्ति, जैसे मेरा बचपन।
आजाद है भारत,
आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
पर आजाद नहीं
जन भारत के,
फिर से छेड़ें, संग्राम एक
जन-जन की आजादी लाएँ।
बहुत ख़ूब अशोक भाई.
आज़ादी का मंत्र जप रहे ब्लॉगर भाई।
मेरी भी रख लें श्रीमन् उपहार बधाई॥
सुन्दर कविता... आभार।
Pilattik ka jhanda --ye fotu sach bayan kartee hai sab, kavita dene ke liye apka shukriya saheb.
ye blog dhadakta hai bhai ke jaise dil ho kisi ka . badhai .
असल झण्डा छूने तक को न मिला!
बहुत सुंदर!
स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं!
यह कविता पहली बार यहां पढ़ी। मार्मिक और हमारे समय की एक बड़ी विडंबना को पकड़ने की सादगीभरी कोशिश। सच में, इतने साल बाद भी आजादी कितनी दूर...
आपकी बधाई और सभी को शुभकामनाएं की हम असली आजादी की फड़फड़ को सुन सकें।
बेहतरीन कविता और बेहतरीन फ़ोटो का ग़ज़ब संयोजन. हमारी आज़ादी की सही सही तस्वीर खींची है. वीरेन दा ज़िन्दाबाद!
ghar ka jogee jogea aan gaaon ka sidh . yahee lagta hai .lakin ek baat pooranee kavita ka ansh kuch accha nahi laga
रामखिलौना ने
बन्दूक और बिरादरी के बूते पर
बभिया में पता नहीं कब से दनदना रही
ठाकुरों की सिट्टी-पिट्टी को गुम किया है.
babhia gaon main ek bhee thakur nahi hai .yadvon aur kashyapo lee ladai hai kai dashko se.
हा हा हा, मिल जाने के भी बड़े खतरे हैं...कहीं अनजाने में देश का अपमान न हो जाये.
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