Sunday, August 10, 2008

गार्सिया लोर्का का गिटार

फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का बीसवीं सदी के महानतम स्पानी कवि और नाटककार थे. ५ जून १८९९ को स्पेन के ग्रानादा शहर के पास एक छोटे क़स्बे में जन्मे लोर्का की पहली किताब बीस साल की आयु में छप कर आई थी. उसी साल वे राजधानी माद्रीद चले गए - अपनी पढ़ाई बीच में त्याग कर उन्होंने सारा समय अपनी कला को देना तय किया. वे नाटक करते थे, अपनी कविताओं का सार्वजनिक पाठ करते थे और स्पानी लोकगीतों का संग्रह भी. आन्दालूसिया की जीवन्त फ़्लामेंको और जिप्सी संस्कृति से गहरे प्रभावित रहे लोर्का ने 'जेनेरेशन ऑफ़ 1927' नामक एक समूह में शामिल होना स्वीकार किया जिसके अन्य कलाकार सदस्यों में साल्वादोर दाली और मशहूर फ़िल्मकार लुई बुनेल भी थे. इन्हीं की संगत में लोर्का सर्रियलिज़्म से रूबरू हुए. अगले साल छपी उनकी किताब 'र्रोमान्सेरो गीतानो' (बंजारों के गीत) ने उन्हें देश का सबसे चर्चित और प्रिय कवि बना दिया. उनके संक्षिप्त जीवन में इस किताब के सात संस्करण छपे.

इसके उपरान्त उनके तमाम नाटक और कविताएं धीरे-धीरे समूचे स्पेन और यूरोप में फैलना शुरू हुए. स्पानी गृहयुद्ध के दौरान वे अपने गांव में रहने लगे थे. फ़्रांको के सिपाहियों ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और कुछ दिन जेल में रखने के बाद १७-१८ अगस्त को लोर्का को अपने बहनोई मानुएल फ़रनान्देज़ मोन्तेसीनोस से "मुलाकात" करने ले जाया गया. यह अलग बात थी कि ग्रानादा के पूर्व सोशलिस्ट मेयर रहे लोर्का के बहनोई का कुछ ही दिन पूर्व बेरहमी से क़त्ल कर देने के बाद उनके शव को ग्रानादा की सड़कों पर घसीटा जा चुका था.

कब्रिस्तान के पास लोर्का से गाड़ी से उतरने को कहा गया और सिपाहियों ने बन्दूकों की बटों से मार कर उन्हें नीचे गिरा दिया. इसके बाद उनके शरीर को गोलियों से भून दिया गया. उसकी सारी किताबें ग्रानादा के सार्वजनिक चौक पर जला दी गईं और फ़्रांको के स्पेन में उसकी किताबें पढ़ने या अपने पास रखने पर बैन लगा दिया गया.
आज भी कोई नहीं जानता इस महान कवि की देह कहां दफ़्न है.

लोर्का ने आधुनिक यूरोपीय कविता को अपने सुरीले गीतों से रंगा और आज भी उनके गीत बहुत बहुत लोकप्रिय हैं.


गिटार

शुरू होता है
गिटार का रुदन.

चकनाचूर हैं
भोर के प्याले.

शुरू होता है
गिटार का रुदन.

व्यर्थ है
उसे चुप कराना.

असंभव
उसे चुप कराना.

वह रोता जाता है
बोझिल
- पानी रोता है
- और बर्फ़ के खेतों पर
रोती जाती है हवा.

असंभव
उसे चुप कराना.

वह रोता है
सुदूर चीज़ों के वास्ते.

गर्म दक्षिणी रेत मरा करती है
कैमेलिया के सफ़ेद फूलों की चाह में.

तीर रोता है अपने लक्ष्य के लिए
शाम भोर के लिए
और टहनी पर
वह पहली मृत चिड़िया.

ओ गिटार!
ओ पांच तलवारों से
जानलेवा बींधे हुए हृदय!

(फ़िलिस्तीनी महाकवि महमूद दरवेश की स्मृति को समर्पित है यह पोस्ट, जिनकी कल मृत्यु हो गई. गीत चतुर्वेदी ने आज ही इस बाबत कबाड़ख़ाने में लिखा है)

6 comments:

anurag vats said...

ओ गिटार!
ओ पांच तलवारों से
जानलेवा बींधे हुए हृदय!
...

Vineeta Yashsavi said...

...

व्यर्थ है
उसे चुप कराना.

असंभव
उसे चुप कराना.

वह रोता जाता है
बोझिल
- पानी रोता है
- और बर्फ़ के खेतों पर
रोती जाती है हवा.

असंभव
उसे चुप कराना.

वह रोता है
सुदूर चीज़ों के वास्ते.

बहुत सुन्दर छवियां और अच्छा आलेख. पहले महमूद दरवेश की कविताएं और अब लोर्का की. क्या बात है!

शायदा said...

असंभव
उसे चुप कराना.

वह रोता है
सुदूर चीज़ों के वास्ते.


अच्‍छा है गिटार का रुदन, उसके चुप और निर्जीव हो जाने से। रो सकना कितना अच्‍छा रहा होगा।

शिरीष कुमार मौर्य said...

लोर्का और दरवेश की यह साझी याद !
लोर्का का अद्भुत गीत!
दरवेश का जाना दुखद है। गीत ने अनिल जयविजय के किए अच्छे अनुवाद लगाए हैं इस पोस्ट के नीचे ।

siddheshwar singh said...

बहुत खूब म्रेरे भाई!

डॉ .अनुराग said...

शुक्रिया इसे यहाँ बांटने के लिए....