Friday, September 12, 2008

इतना कायर हूं कि उत्तर प्रदेश हूं...

इतना कायर हूं कि उत्तर प्रदेश हूं...

“भाषा में भदेस हूं, इतना कायर हूं कि उत्तर प्रदेश हूं...”. धूमिल की दशकों पहले लिखी गईं इन पंक्तियों की कई तरह से व्याख्या होती है, पर रुपहले पर्दे के महानायक अमिताभ बच्चन के माफीनामे ने जैसे इसे और मौजूं बना दिया है। जया बच्चन ने एक समारोह में यही कहा था कि वे हिंदी में बोलेंगी.. और राज ठाकरे की सेना टूट पड़ी। नारे लगे, पोस्टर फटे, पुतले फुंके, और फिर सामने आए महानायक, ऐसी विनम्र मुद्रा में कि पूरा देश फिदा हो गया। राज ठाकरे का भी दिल पिघल गया और उन्होने अभयदान दे दिया। अमिताभ ने फिर साबित किया अहिंसा की ताकत। भृगु ऋषि से लात खाने के बाद भगवान विष्णु के कहे वचन याद आ गए-आपको चोट तो नहीं लगी मुनिवर!

पर ये विनम्रता थी या मजबूरी। एंग्री यंगमैन बतौर महानायकत्व का दर्जा हासिल करने वाले अमिताभ की पहचान यही थी न कि वे अन्याय के खिलाफ कभी नहीं झुके। न्याय के लिए अग्निपथ पर चले, कानून तोड़ने की भी परवाह नहीं की। लोगों ने उन्हें पूजा। अपने गुस्से को उनके जरिये निकलते देखा। लगा कि कोई तो है जो व्यवस्था को ललकार सकता है। क्या दौर था वो... लोग तनावमुक्त होकर सिनेमा हाल से निकल कर राहत की मूंगफली चबाते हुए शांत भाव से व्यवस्था के जबड़े में बिला जाते थे। और...और क्या....खेला खतम। महानायक बुढ़ा गया।

हां, बुढ़ाते-बुढ़ाते, अमिताभ को सहस्राब्दि का महानायक जरूर चुना लिया गया। हजार साल में पैदा हुआ दीदावर...। न न्यूटन, न आइंस्टीन, न वाल्तेयर न रूसो, न वाशिंगटन न लिंकन, न अकबर न राणा प्रताप, न शिवाजी न रानी झांसी, न गालिब न मीर, न मार्क्स न गांधी, न टैगोर न प्रेमचंद, न अंबेडकर न भगत सिंह और न चेग्वारा....पैदा हुआ तो बस हरिवंश नंदन अमिताभ बच्चन। उस खानदान का चश्मोचिराग जो प्रतापगढ़ के बाबू पट्टी से इलाहाबाद के कटघर और सिविल लाइंस होते हुए बरास्ता दिल्ली, मुंबई में समंदर किनारे बस कर पिछले चालीस साल से पैसे के साथ-साथ देश की दुआ बटोर रहा है।

लेकिन असल जिंदगी में राज ठाकरे की एक धमकी ने महानायक का कचूमर निकाल दिया। तुरंत माफी मांग ली। एक बार भी सवाल नहीं उठाया कि हिंदी बोलने में कौन सा कानून टूटा, किसका अपमान हुआ। भूल गए रुपहले पर्दे की दहाड़। पिता की विरासत भी याद न रही। बेचारे बच्चन जी ने हिंदी के लिए न जाने क्या-क्या किया। आजादी के बाद देश को वाकई हिंदी में चलाने का सपना देखने वालों में वे भी थे। नेहरू जी के बुलावे पर यही करने दिल्ली पहुंचे थे, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की लगी-लगाई नौकरी छोड़कर। अब स्वर्ग में तड़प रहें होंगे कि उनके महानायक बेटा-बहू महाराष्ट्र में सार्वजनिक स्थान पर हिंदी नहीं बोल सकते। शायद वहां से उकसा भी रहे हों....मुन्ना..!.ए मुन्ना ! उठा हिंदी का झंडा, लड़ इन सबसे ... लड़ ... अग्निपथ, अग्निपथ ... लथपथ, लथपथ ... लथपथ...।

पर मुन्ना कैसे सुनते ये पुकार। जरा भी आवाज ऊंची करते तो उनकी फिल्म ‘लास्ट लियर’ का कबाड़ा तो होता ही, अभिषेक की ‘द्रोण’ भी पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हो जाती। करोड़ों का खेल है जी और आपको हिंदी की पड़ी है। ये गलती तो उन लोगों की है जिन्होंने फिल्मी डायलाग को हकीकत मान लिया। समाजवादी पार्टी की प्रचार फिल्म में अमिताभ ने कह क्या दिया कि गंगा तट पर पुनर्जन्म लेना चाहते हैं, लोग वाकई उन्हें यू.पी पर जान न्योछावर करने वाला मानने लगे। याद कीजिए, मुंबई की सड़कों पर पिटते-लुटते यूपी, बिहार के बेरोजगारों को, क्या कभी उनके हक में अमिताभ ने एक बार भी आवाज उठाई। अब तो ये भी बता दिया कि उनके डाक्टर से लेकर घर के स्टाफ तक यूपी वाले नहीं, महाराष्ट्र के लोग हैं। और हिंदी का शिगूफा छोड़ने वाली गुड्डी उनसे मराठी में ही बात करती हैं। घर में मराठी, बाहर अंगरेजी। फिल्मों में हिंदी तो खैर मजबूरी है। फिर भी उन्हें यूपी वाला कहा जाए तो इन ‘बच्चनों’ की क्या गलती।

राज ठाकरे को यकीन न हो तो एक और प्रमाण हाजिर है। उत्तर प्रदेश विकास परिषद के सदस्य रहते हुए अमिताभ ने, या यू.पी.फिल्म विकास परिषद की अध्यक्ष रहते जया बच्चन ने, कोई ऐसी कोशिश नहीं की कि हिंदी पट्टी में कहीं भी हिंदी फिल्म उद्योग का इन्फ्रास्ट्रक्टर विकसित हो। हिंदी भाषा की फिल्में हिंदी क्षेत्र में बनें। मुंबई के प्रति श्रद्धा का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा। अगर खुदा न खास्ता गंगा तट पर फिर पैदा हो भी गए, तो कमाने तो मुंबई ही जाएंगे न!

वैसे, लोग तो ये भी कहते हैं कि विवाद जानबूझकर पैदा किया गया। वरना, जया को हिंदी में बोलना था तो बोलतीं, महाराष्ट्र वालों से माफी मांगकर हिंदी में बोलने के एलान की क्या जरूरत थी। उनका इरादा ही था कि पति और बेटे की फिल्मों का विरोध हो। मुफ्त की चर्चा मिले। आजकल ये हथकंडा हर दूसरी फिल्म के लिए अपनाया जाता है। नहीं तो जया को गुड्ड़ी-बुड्ढी कहने वाले राज ठाकरे को अमिताभ भाई बताते फिरें, इसका क्या मतलब। ऐसे में तो सगे भाई से दुश्मनी हो जाती है और यहां दुश्मनों जैसा सुलूक करने वाले को भाई बताया जा रहा है। ये हकीकत जानने वाले कम नहीं हैं। इसीलिए न बालीवुड में उनके हक आवाज उठी और न हिंदी पट्टी में ही कोई सुगबुगाहट हुई।

शुक्रिया राज ठाकरे, हिंदी वालों और उनके फिल्मी महानायक की औकात बताने के लिए।

12 comments:

निशाचर said...

बिलकुल दुरुस्त लिखा.... जिस महानायक को पूजते-पूजते एक पीढी का कच्छा जींस में तब्दील हो गया आज वही महानायक उन्हें च्यवनप्राश बेच रहा है और आते हुए बुढापे को दूर धकेलने के नुस्खे बता रहा है लेकिन जिस धोती में उनके बाबूजी ने अपनी जवानी गुजारी और जो हिंदी पट्टी की पहचान थी उसे उतरते देख भी वह इतना विनम्र है कि महात्मा गाँधी भी अपनी समाधि में इर्ष्या के मारे कसमसा रहें होंगे..........

महेन said...

बंधु, आपके विचार पढ़कर दु:ख और बढ़ गया। अभी तक कम से कम ऐसा तो लग रहा था कि यह सिर्फ़ दो ऊंचे कद के लोगों का आपसी खेल है और हमें इससे कोई लेना देना नहीं मगर आपने हिंदी और मराठा वाली दुखती रग छेड़ दी।

रंजना said...

बहुत सही लिखा है आपने पर प्रसंग बड़ा ही दुखद है.जिसे जनमानस/मिडिया ने महानायकत्व से विभूषित किया,उसने ही हिन्दी की लाज रखने के बदले अपने निजी हितों की रक्षा हेतु इन घटिया राजनीतिज्ञों के सामने नतमस्तक हो हिन्दी का अपमान सहन कर लिया.जान्मानस के सम्मुख क्या उदाहरण इसने रखा ?शायद हम ही मूर्ख हैं जो एक अभिनेता से इस तरह की उम्मीद रखते हैं........

Ashok Pande said...

हिन्दी में भौं भौं - म्याऊं म्याऊं बोल कर अकूत धन कमा चुकने के बाद, बढ़िया शेरवुडियन इंग्लिश में इन्टरव्यू देने वाला, बात-बात में 'बाबूजी फ़लां कहते थे' कहकर मासूम हिन्दुस्तानियों को बरगलाने वाला, देश को बेच देने वाले बदकार नेहरू-गांधी परिवार की कृपादृष्टि प्राप्त कर, सदी का महानायक बन चुकने के बाद जो आदमी अपनी नकली हुंकार को अमरसिंह-मुलायम जैसे धूर्तों के पास गिरवी रखने में एक पल को नहीं हिचका, राज ठाकरे की एक असली वाली हुंकार पर उसकी टट्टी निकल गाई: मुझे कतई हैरत नहीं हुई.

कितना पैसा कमाएगा ये नकली आवाज़ निकालने वाला लम्बू!

हिन्दीभाषी जनता ने 'बच्चन कुटुम्ब राहत कोष' स्थापित करने का प्रोजेक्ट जल्द शुरू करना चाहिये ताकि वे सारे जल्दी मराठी सीख सके! तमिल भी सीखनी चाहिये उन्हें क्योंकि आजकल मदरासी फ़िल्ममेकर भी अच्छा भाव दे रहे हैं ठुमकों का.

बहुत बड़ी गाली देने की इच्छा कर रही है इस वक़्त! क्या करें सार्वजनिक प्लेटफ़ॉर्म है यह. ऐसा करने की इजाज़त नहीं यहां.

बने रहो, जमे रहो पंकज!

Unknown said...

काठ के महानायक पर अचूक निशाने से मटर का अक्षत फेंकने के लिए बधाई।

सचिन मिश्रा said...

Bahut accha likha hai.

शिरीष कुमार मौर्य said...

आपका सवाल अपनी जगह बिलकुल दुरुस्त है बडे भाई!
लेकिन जो अशोक ने लिखा, उसे ही मेरा भी लेखा मानिये !
मुझे भी इस प्रकरण से कोई हैरानी नही हुई !
इधर हिन्दी के विद्वान हिन्दी जाति पर झगड रहे है और उधर बात बहुत दूर तक जा पहुची है !
ये कबाडखाने पर आपकी पहली पोस्ट है, खुशआमदीद !

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

बढ़िया लिखा है पंकज भाई, आपकी भाषा ने इस मुद्दे की कलई चटखदार रंग में खोली है.

siddheshwar singh said...

पंकज भाई,
विषय/मुद्दा अपनी जगह.आपके गद्य की जितनी तारीफ़ की जाय वह कम है.

आलोक कुमार said...

मूझे तो लगता था कि महानायक से केवल ठाकरे जैसे प्रभुता वाले लोग ही जलते हैं मगर नहीं यहाँ तो आम जनता भी उनकी महानता से जलते हैं !!
मूझे ये लेख और टिपण्णी ने निराश किया कि आम जनता महानायक की विवशता को नहीं समझ पाती, घर में बैठकर तो ब्लॉग लिखना बहुत आसान है मगर जब आपकी हरकतों पर पूरी दुनिया की नजर पड़ने लगे तब आपके कलम को भी आठ-आठ आँसू आएगा. अमिताभ के लिए बहुत आसान था कि माफी नहीं मांगता, उसे फिर मुंबई क्या पूरा भारत क्या पूरा दुनिया का समर्थन मिल जाता. आपको नहीं पता कि फिर उसके कितने दुष्परिणाम होते, बम्बई में यु.पी. मरता और यु.पी. में बम्बई. अमिताभ ने ये माफ़ी मांगकर ऐसे दुष्परिणाम को रोक लिया भले ही इस माफी के बाद वो खुद को माफ़ नहीं कर पाया होगा. उसने अपनी भावनाओं से उपर समाज की भावनाओं को रखा और जो ऐसा कर पाता है वही महानायक कहलाता है. ऐसे महानायक की निंदा बंद कमरे में बैठकर करना शोभनीय नहीं है .
वैसे लेख अगर मात्र व्यंग था तो बहुत ही सुन्दर था मगर उसके अर्थों में मूझे आहत किया.

मुनीश ( munish ) said...

No hindivala stood up to defend jaya ,like no Hindu ever stood up for Kashmiri pandits.Amitabh Bachchan may be an opportunist, but no he is not a coward. He knew no hindi vala would ever come forward to save his jan-mal and so had to come down on his knees begging mercy before a petty goon.Kayar hum sabhi hain . Hindi mein veerta keval ek ras hai aur kuch nahin.

मुनीश ( munish ) said...
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