Thursday, October 2, 2008

चरखवा चालू रहै !


लोक अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम अपने आसपास और अपनी भाषा - शैली में ही खोजता है.ऐसा नहीं है कि देश - दुनिया के मामलात और मसले उसे प्रभावित नहीं करते लेकिन जब उन पर प्रतिक्रिया और प्रसंगानुकूल प्रकटीकरण की बात आती है तब वह सबसे पहले अपने तरीके से अपनी बात कहने की कोशिश करता हैं, यही उसकी खूबी ,खासियत व खरापन है. भारतीय स्वाधीनता के समर में जनजागरण के एक सशक्त औजार के रूप में लोकगीतों के वर्ण्य विषय कितने समकालिक, कितने सजग हो चले थे, यह 'चरखवा चालू रहै' गीत में बखूबी देखा जा सकता है. गौर करने की बात यह है इतना सब होते हुए भी न केवल इसकी सहजता बरकरार है बल्कि मौज, मस्ती और मारक व्यंगात्मकता जस की तस है. इतिहास के खाने में दर्ज इस गीत के रचयिता पता नहीं चल पाया है. वैसे भी लोक की सामूहिकता में यह संभव भी नहीं लगता है कि किसी एक व्यक्ति ने इसे इसे रचा होगा . यह एक सामूहिक - सामयिक इंप्रोवाइजेशन का प्रतिफल ही रहा होगा शायद. आज गांधी जयंती अवसर पर प्रस्तुत है गीत - 'चरखवा चालू रहै' आप इसे पढ़िए , आधुनिक भारत के इतिहास - चरित्रों से मुखतिब होइए और गांधी बाबा की बारात का हिस्सा बन जाइए ....

चरखवा चालू रहै !

गांधी बाबा दुलहा बने हैं
दुलहिन बनी सरकार
चरखवा चालू रहै !

वीर जवाहर बने सहबाला
अर्विन बने नेवतार
चरखवा चालू रहै !

वालंटियर सब बने बराती
जेलर बने वाजंदार
चरखवा चालू रहै !

दुलहा गांधी जेवन बैठे
देजै में मांगें स्वराज
चरखवा चालू रहै !

लार्ड विलिंगटन दौरत आए
जीजा , गौने में दीबो स्वराज
चरखवा चालू रहै !

( 'चरखवा चालू रहै' गीत नरेशचंद्र चतुर्वेदी द्वारा संपादित पुस्तक 'आजादी के तराने' से संकलित किया गया है और गांधी जी का स्केच इन पंक्तियों के लेखक की बिटिया हिमानी ने अपने स्कूल के वाल मैगजीन के लिए बनाया था, मुझे अच्छा लगा सो उसका फोटोग्राफ़ यहां चिपका दिया )

9 comments:

दीपक said...

प्रथमतः बापू को नमन !! चरखवा चालु रहे अच्छा लगा !!

शिरीष कुमार मौर्य said...

हे वरिष्ठ कबाड़ी और मेरे प्यारे जवाहिर जा !
ग़ज़ब की चीज़ खोज लाते हो आप तो !
और हिमानी की प्रतिभा तो देखो ! पहले भी एक-दो बार बिटिया का काम देखा है मैंने।
उसे मेरा प्यार।
कुछ ऐसा करो कि गौतम अपनी हिमानी दी मिल पाए और थोड़ा सही राह पर लग जाए - उसकी बदमाशियों से मेरी नाक में दम है। बड़ी बहनें ही ऐसे बच्चों को ठीक कर सकती हैं।

अजित वडनेरकर said...

बहुत उत्तम था बरात-गान...सुराज और उसके नायकों पर तब देश की हर भाषा , हर प्रान्त में ऐसे ही सच्चे गीत रचे जाते थे। लोक-गीतों की तरह इनमें से कई तो आज भी किसी न किसी अंचल में लोगो को याद हैं।

ravindra vyas said...

bahut hi sunder! lage raho sidhheshwer bhai!!

दीपा पाठक said...

बढिया पोस्ट। उससे बढिया हिमानी का स्कैच। बच्ची को प्यार।

Udan Tashtari said...

बहुत उत्तम!!

गाँधी जयंति की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Ashok Pande said...

उत्तम कूड़ा!

vipin dev tyagi said...

बहुत सुंदर...स्वच्छ..सरल.सरस

Vineeta Yashsavi said...

lekh bhi achha laga aur chitra bhi sundar hai.........