Thursday, October 2, 2008

गांधी जयन्ती पर कुछ पुराने कार्टून

ब्रिटेन के कट्टर रूढ़िवादियों ने कहा कि नमक सत्याग्रह को कुचलने के लिये ब्रिटिश राज ने जो नृशंसता अपनाई, उसके फलस्वरूप भारत में भड़के हिंसात्मक दंगों के पीछे सोवियत रूस का हाथ है। भारत की घटनाओं की इस तरह व्याख्या करने की विचारधार स्ट्रूब के इस कार्टून में देखी जा सकती है जो बीवरबुक प्रेस के मुख्य पत्र - कांग्रेस के अत्यंत तीव्र विरोधी - `डेली एक्सप्रेस´ के कार्टूनिस्ट ने बनाया था.



सत्याग्रह से विलिंगडन बड़ी उलझन में पड़ गये थे 15 जुलाई 1933 को गांधी जी ने उन के नाम एक तार भेजा जिसमें एक मुलाकात निश्चित करने के लिये कहा गया था ताकि संवैधानिक सुधारों के प्रश्न पर कांग्रेस और सरकार के मतभेद को शांतिपूर्वक और सम्मानजनक ढंग से हल करने के लिये बातचीत हो सके। विलिंगडन ने यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की। होर ने हाउस ऑफ कॉनम्स में कहा : "हमने कह दिया है कि हम बातचीत करना नहीं चाहते और हम अपने इस फैसले पर अडिग हैं। मिस्टर गांधी एक तरफ तो सरकार से बात करना चाहते हैं, दूसरी ओर सविनय अवज्ञा के अपने अशर्त हथियार को भी अक्षुण्ण रखना चाहते हैं। मैं फिर कह दूं - कानूनों को पालन करने का दायित्व इन्हीं लोगों का है ओर इस के लिये कांग्रेस से किसी किस्म का समझौता करने का सवाल पैदा नहीं होता।"



माली ने गांधी जी को अपने कंधों पर समूचा राष्ट्र उठा कर चलते हुए दिखाया है। इंग्लैंड से वापसी पर उन्हें नई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिनसे गोल मेज सम्मेलन और मैकडॉनल्ड द्वारा दिये गये आश्वासनों का खोखलापन उजागर हो गया। 3 जनवरी 1932 को उन्होंने वाइसराय को सूचना दी कि कांग्रेस `बिना किसी दुर्भावना के और बिल्कुल अहिंसक ढंग से सविनय अवज्ञा आंदोलन पुन: छेड़ेगी।´ विलिंग्डन ने तुरंत प्रहार किया। उसने अगली सुबह गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया। जब तक सरकार चाहे तब तक बंदी बनाये रखने के लिये उन्हें यरवदा ले जाया गया। अन्य कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारियां इसके बाद हुई।



30 जनवरी 1948 की शाम को पांच बजे के कुछ मिनटों बाद चंद गोलियों ने गांधी जी की जान ले ली। वे अपने होठों से `हे राम´ कहते हुए सिधार गये। उन्होंने अपना जीवन एक ध्येय, एक उद्देश्य के लिये बलिदान कर दिया और अपने अंतिम दिनों में तन-मन से उसी के लिये काम करते रहे। वह ध्येय था राष्ट्रीय एकता की पुन: स्थापना - वह एकता जो स्वराज्य के जन्म के साथ ही साम्प्रदायिक बर्बरता के आगे टूट कर बिखर गई थी। अपनी अटूट आस्थाओं और देश प्रेम की इतनी बड़ी कीमत ! लेकिन जो लौ उन्होंने जलाई है, वह हमेश-हमेशा जलती रहेगी।

7 comments:

सुशील छौक्कर said...

अच्छे और पुराने कार्टून पेश करने के लिए शुक्रिया।

रवि रतलामी said...

ब्लॉग जैसी विधा का इससे सुंदर प्रयोग और क्या हो सकता है भला?

धन्यवाद. ऐसे तो और भी ऐतिहासिक, प्रासंगिक दस्तावेज होंगे?

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

bahut sunder ,darshniye

विजय गौड़ said...

यह तो मह्त्वपूर्ण दस्तावेज हैं। क्या इनको प्रस्तुत करने के लिए सिर्फ़ आभार व्यक्त कर देना उचित होगा? कोई सही शब्द खोजने तक के लिए ्बहुत बहुत बहुत आभार।

एस. बी. सिंह said...

बहुत सुंदर , धन्यवाद

siddheshwar singh said...

यह पोस्ट बहुत ही उम्दा और उच्च कोटि की है विनीता. कबाड़ियों की भाषा में कहूं तो 'फ़स्स किलास' का कबाड़.
बधाई और बोफ़्फ़ाईन!!

Ashok Pande said...

इन ऐतिहासिक काटरूनों के लिए धन्यवाद विनीता. बढ़िया पोस्ट!