तकनीकी दिक्कतों के चलते आज पूरे तीन दिन बाद नेट पर आ सका हूं. एक शेर कहूंगा बाबा इब्ने इंशा का और सिद्धेश्वर की रबीन्द्र-संगीत सीरीज़ को जारी रखता हुआ सुनाऊंगा एक गीत किशोर दा की अद्भुत वाणी में. कल से दुबारा रेगूलर. प्रॉमिस.
शेर तो यूं है (ये 'किस से कहें' वाले मीत उर्फ़ अमिताभ पांडे को ख़ास तौर पर सम्बोधित माना जाय):
आंखें मूंद किनारे बैठो, मन के रखो बन्द किवाड़
इंशा जी लो धागा लो, अब लब सी लो ख़ामोश रहो
किशोर दा जो गा रहे हैं उसका हिन्दी वर्ज़न बाद में 'अभिमान' फ़िल्म का सुपरहिट गाना बना. पर ज़रा देखें कितनी मिठास है इस वाले मूल गीत में जो गुरुदेव का लिखा हुआ है:
6 comments:
अभी अभी कालीबाडी से आ रहा हूँ, जहां रोबिन्द्र
संगीत बज रहा था.
यहाँ आ कर किशोर कुमार के इस बंगला गीत को
सुनकर मन प्रसन्न हुआ.
मेरे एक मित्र रविवार को किशोर पर अनसुने , दुर्लभ गीत सुनवा रहें है . ये गीत उनके पास
शायद ही होगा .मगर अब् Down
load कर लिया है, इसलिए
उन्हें दूंगा. शुक्रिया.
आपने भी तो लब सी लिए हैं!!
अभी अभी कालीबाडी से आ रहा हूँ, जहां रोबिन्द्र
संगीत बज रहा था.
यहाँ आ कर किशोर कुमार के इस बंगला गीत को
सुनकर मन प्रसन्न हुआ.
मेरे एक मित्र रविवार को किशोर पर अनसुने , दुर्लभ गीत सुनवा रहें है . ये गीत उनके पास
शायद ही होगा .मगर अब् Down
load कर लिया है, इसलिए
उन्हें दूंगा. शुक्रिया.
आपने भी तो लब सी लिए हैं!!
मोन टा प्रशन्न होई गेलो । अनेक धन्नबाद जानाच्छि ।
की भालो रे बाबा !
अशोक जी
मैंने हिन्दी मैं यह गीत सुना था आज बंगला मैं सुनकर और अधिक आनंद आया. इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार.
अर्थ तो समझ में नहीं आया लेकिन है बहुत मधुर!
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