Thursday, October 9, 2008

हमारे दिलों की महफ़िल को महकाने आए हैं बाबा नुसरत


बलखाती सरगम,आवाज़ की अविश्वसनीय फ़ैंक और तिस पर फ़ुर्तीली ताने ...समझ लीजिये उस्ताद नुसरत फ़तेह

अली ख़ाँ
साहब तशरीफ़ रखते है.अपने बेजोड़ फ़न से बाबा नुसरत क़व्वाली को जिस मेयार पर ले गए हैं वहाँ किसी और का इंतेख़ाब कर पाना ख़ाकसार के लिये नामुमकिन है. बाबा जब गा रहे हों तो सुनने वाला न हिन्दू होता है न मुसलमान;उसका एक ही मज़हब होता है मुहब्बत.हम सब संसारी एक ख़ास रूहानी लोक की सैर करने लगते हैं.

अंतरे के बोल में बाबा जैसे सरगम को गिरह करते हैं उसे सुनकर क्लासिकल मूसीक़ी गाने वालों का कलेजा काँप जाता है. वे आपको तब और भी चौंका देते हैं जब वे अपनी आवाज़ की रेंज के बाहर जाकर ही मानते हैं.क़व्वाली को ग्लोबल बना देने वालों की जब भी फ़ेहरिस्त बनेगी उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ा साहब का नाम निर्विवाद रूप से उसमें होगा ही.

क़व्वाली जब भी सुनें तो महसूस करेंगे कि इसकी ताक़त है लयकारी.मुख्य गायक को साथ देते समवेत स्वर यानी कोरस क़व्वाली विधा में जादूई समाँ रचते हैं.ये क़व्वाली जितनी मुझे मिली मैने सुनवाने की कोशिश की है.पूरी भी सुन लें तो भी प्यास तो बाक़ी रह ही जाती है क्योंकि गाने वाला कोई और नहीं उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ाँ है.

5 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

संजय भाई आज से दस बरस पहले मै रानीखेत में रहने वाले एक उम्रदराज़ बंगाली सं मिला और हमारी दोस्ती हो गई। मुझे तब तक कुमार गंधर्व तो पसन्द थे पर बाक़ी स्लेट मेरी खाली ही थी। उन्होंने मुझे हिंदुस्तानी क्लासिकल के समूचे संसार से परिचित कराया और जैसे किसी खजाना का दरवाज़ा खोल दिया! फिर अशोक दा ने कहा कि "बेटे! नुसरत को ध्यान से सुनो" नुसरत के पास जाकर मै पूरा हुआ। 2005 में इंदौर के वैष्णव विद्यालय प्रांगण में भीमसेन जोशी जी से मिलने और उन्हें बैठक में लाइव सुनने का मौका भी मिला!आज वे बंगाली सज्जन नहीं हैं, पर उनका दिया संगीत का अनमोल धन मेरे पास है! उनकी याद आंखों को गीला कर रही है और मै आपकी लगाई ये कव्वाली सुन रहा हूं !

Unknown said...

दशमी के दिन क्रेजी किया रे।

एस. बी. सिंह said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति संजय भाई

siddheshwar singh said...

कल से
सुन रहा हूं
और अपने भीतर कुछ गुन रहा हूं
बुन रहा हूं.
आया है आनंद
जाएगा कहां
रहना है इसे यहीं -यहीं पर..

Ashok Pande said...

भगवान को गाना आता होता तो वह ऐसे ही गा सकता था.

शुक्रिया संजय भाई बाबा को यहां ले आने का.