दिसम्बर ९, १९१३ अन्ना अख़्मातोवासाल के सबसे अंधेरे दिनों ने
बन जाना चाहिये सबसे साफ़.
मुझे तुलना के लिए शब्द नहीं मिल रहे
- कितने मुलायम, कितने प्यारे हैं तुम्हारे होंठ
मुझे देखने को मत उठाना अपनी निगाह
ताकि मैं जीवित रह सकूं
वे सबसे उम्दा ज़हर की शीशियों से भी हल्की है
और मेरे वास्ते उतनी ही घातक
अब समझती हूं मैं, कि हमें शब्द नहीं चाहिये होते
कि बर्फ़ लदी टहनियां हल्की होती हैं, और
बहेलिये ने
नदी किनारे फैला लिया है अपना जाल!
(फ़ोटो: अन्ना के जीवन का एक दुर्लभ खु़शनुमा समय - पति निकोलाई गुमिल्योव और पुत्र लेव के साथ, १९१३)
8 comments:
अब समझती हूं मैं, कि हमें शब्द नहीं चाहिये होते
बहुत सुंदर ।
मन्त्र-मुग़ध हूँ बस ......
बहुत ही सुंदर ..शुक्रिया इसको यहाँ देने के लिए
bahut hi bahtreen picture hai
बहुत बढ़िया.
बहुत आभार-गजब!!!
udantashtree ji ke baad kuchh isi tarh...lajawab
bahot khub gazab ...........
regards
arsh
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