(यह पूरी पोस्ट प्यारे दोस्त मुनीश के लिए, इस पोस्ट की हैडिंग जिसके ब्लॉग की बाईलाइन है)
'अमर प्रेम' की याद है ना!
जी हां, वही शर्मिला टैगोर, राजेश खन्ना, ... वो नाव ... वो दोना ...
... और वो बड़ा नटखट बच्चा जो बड़ा होकर विनोद मेहरा बनता है ...
लीजिए चन्द तस्वीरें और गीत उसी अमर फ़िल्म के
7 comments:
आइ हेट दिस पोस्ट, हम जैसों का कबाड़ आप कहाँ उठा लाये। ऐसे कबाड़ हम लोगों के लिये ही रहने दो, कबाड़खाने में अच्छे नही लगते लेकिन फिर आपने कहा ये मुनीश के लिये इसलिये - मेरी बात के माने दो, जो अच्छा लगे उसे अपना लो, जो बुरा लगे उसे जाने दो।
अभी तक वहीं रुके पड़े हो बाबू तरुण!
अफ़सोस! सद अफ़सोस!!
इन दिनों अजीब हालत है अशोकजी। उस पर ये फोटो और चिंगारी उड़ाता यह गीत। सब स्वाहा हो जाएगा यार।
Wahan nahi ruke hain, Wahan se to Tabhi nikal liye thai;) hum to title se match karane ki koshish kar rahe thai, Lagta hai galat par gayi :(
अशोक भाई, मुझे लगता है 'न' को 'ना' लिखना सही नहीं है.
THANX A LOT ASHOK BHAI FOR ALL THE PICS AND SONGS. I HAVE NEVER BEEN A KAKA FAN BUT THE WAY HE DELIVERED THIS LINE IS MATCHLESS, MINDBLOWING , SUPERB AND SIMPLY ....SUBLIME . YOU GOT TO BE PASSIONATE ABOUT LIFE IN ORDER TO APPRECIATE THE MAGIC INHERENT IN THE WORDS & I THINK ALL THE PSEUDO-BLOGGERS WHO HAVE NEVER EXPERIENCED WOMEN OF SUBSTANCE , CAN NEVER EVER FATHOM THE DEPTHS OF A CERTAIN PATANSHEELTA WHICH IN FACT MAKES U RISE ABOVE THE PETTY EXISTENCE.
मुनीश जी की पसंद जानदार है !!और अमर प्रेम तो निश्चीत ही अर्थपुर्ण अभिव्यक्ती है!!
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