दिलीप झवेरी की कविता
हल्के से तिरते किसी कोमल नीले हंस की तरह
बहती है यह खामोश और गहरी हान,
निश्चित ही, उसके भीतर कहीं कहीं लाल रंग है
वास्तविक और विकल, खून का दहकता लाल रंग,
जो कभी कभी फूट पड़ता है
हवाई अड्डे पर।
या किसी फलदार हृदय में बोए किसी इस्पात के बीज के आसपास
जवान गुस्साई आंखों...या उमगते ज्वार में
जो दूसरे किनारे पर खड़ी किसी मां की आवाज से दूर हैं।
लेकिन तब वहां गहरे जल का नीलापन भी है
जो प्रतिबिंबित करता है अव्याख्य आकाश
एक खामोश गूंज।
और फिर सभी तरफ
अलक्षित भीड़ है वाचाल उत्सवी उजालों के नीचे
जहां गहरे रास्ते अोढ़ते हैं नारंगी और पीली और हरी लालटेनें,
और यहां तक कि चांद भी खो जाता है
(मेले में पुलकित बच्चे की तरह
आतिशबाजियों के दौरान, चिंतित परिजनों और पुराने दुःखों से अजाना)
जो कोमलता से थाम लिया जाता है छत पर
पतले और पनपते कैमिलिया फूल जैसी
किसी लड़की की मुस्कराहट में।
हां, विलो से ढंकी रातें चंचल हैं।
हां, आग ठंडी हो गई हैं छोटे मोतिया मग्गों में
सोजू को पीकर- जो कभी शहद था
पंजों के लौ देते खोल
जो सदियों से चूमे जाते रहे हैं, नीली हान द्वारा
हान, प्यारी हान
सर्दियों में तुम अपने पंख गिरा देती हो
और जन्मती हो बार-बार अपने भीतर से
अनेक मेहराबों वाले पुल की इस्पाती कोखें।
क्या तुम्हारा हृदय तुम्हारे दोनों पंखों को नहीं जोड़ेगा
और उड़ जाएगा?
शायद खोया हुआ बच्चा, तुम्हारी उड़ान को खोजता
वसंत में अपने माता-पिता तक लौट आए
जब अनकहे उल्लास चमक रहे होंगे उसकी आंखों में
मिलने को, मां-बाप की भीगे सपनों भरी आंखों से।
सर्दियों में तुम अपने पंख गिरा देती हो
और जन्मती हो बार-बार अपने भीतर से
अनेक मेहराबों वाले पुल की इस्पाती कोखें।
क्या तुम्हारा हृदय तुम्हारे दोनों पंखों को नहीं जोड़ेगा
और उड़ जाएगा?
शायद खोया हुआ बच्चा, तुम्हारी उड़ान को खोजता
वसंत में अपने माता-पिता तक लौट आए
जब अनकहे उल्लास चमक रहे होंगे उसकी आंखों में
मिलने को, मां-बाप की भीगे सपनों भरी आंखों से।
और खून, खुशी-खुशी प्या की लाल शराब में गाढ़ा हो जाएगा।
हान,
नीली हान!
लाल हान!
अोढ़ती धनक।
खेलती बर्फों पर
एक दिवा-सपन?
या एक दृश्य, सहसा पहचाना!
(दिलीप झवेरी गुजराती के उल्लेखनीय कवि हैं। उन पर कुछ समय पहले एक मोनोग्राफ प्रकाशित हुआ था। इस मोनोग्राफ में उन्होंने अपनी ही कविताअों का अंग्रेजी अनुवाद दिया था। इनमें से कुछ का अंग्रेजी से सुशोभित सक्तावत ने अनुवाद किया है। सुशोभित युवतम कवि-अनुवादक हैं और उज्जैन में रहते हैं।)
(पेंटिंग- रवींद्र व्यास )
7 comments:
aap sabhi se anurodh hai ki web journalist ko saajish me fasane ki khilaaf khade hon aur es post ko sthan apne blog pe den.
shukriya
yashwant
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सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन
एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।
इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं। यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।
दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।
बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।
भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा किए गए हमले का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे।
विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।''
लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।
बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।
बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।
बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।
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अगर आप भी कोई ब्लाग या वेबसाइट या वेब पोर्टल चलाते हैं और वेब पत्रकार संघर्ष समिति में शामिल होना चाहते हैं तो aloktomar@hotmail.com पर मेल करें। वेब माध्यमों से जुड़े लोगों का एक संगठन बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। आप सबकी भागीदारी का आह्वान है।
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((इस पोस्ट को कापी करके आप अपने-अपने ब्लागों-वेबसाइटों पर प्रकाशित करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह संदेश पहुंचाया जा सके और वेब माध्यम के जरिए सुशील कुमार की लड़ाई को विस्तार दिया जा सके।))
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अभी सबद ब्लॉग पर सच्चिदानंदन की मलयालम कविताओं पर ये टिप्पणी डाली--
व्योमेश साहब ने मलयालम से सीधे हिंदी में क्यों नहीं अनुवाद किया? मलयालम नहीं जानते हैं शायद, वर्ना सच्चिदानंदन जी से "विशेष आग्रह" नहीं करना पढ़ता अपनी कविताओं का अंग्रेज़ी में तर्जुमा करने के लिए।
मुझे नहीं पसंद कि मलयालम का अनुवाद अंग्रेज़ी के ज़रिए हो रहा है।
उन्होंने टिप्पणी ही प्रकाशित नहीं होने दी। मैंने दो बार उनको ये टिप्पणी भेजी।
ख़ैर, अब आपके ब्लॉग पर गुजराती का भी अंग्रेज़ी के ज़रिए अनुवाद देख रहा हूँ, मुझे ये घटिया लगता है।
एक बात ये भी है दोनों कवियों के अंग्रेज़ी अनुवाद ख़ुद कवियों ने ही किए हैं। अगर लेखक ख़ुद अनुवाद करता है तो उसे मौलिक कहा जा सकता है। इसके बावजूद मुझे अफ़सोस होता है कि दोनों अनुवादकों ने गुजराती-मलयालम की बजाए अंग्रेज़ी संस्करण को चुना।
हान, प्यारी हान
सर्दियों में तुम अपने पंख गिरा देती हो
और जन्मती हो बार-बार अपने भीतर से
अनेक मेहराबों वाले पुल की इस्पाती कोखें।
क्या तुम्हारा हृदय तुम्हारे दोनों पंखों को नहीं जोड़ेगा
और उड़ जाएगा?
बहुत सुंदर कविता। पढ़वाने का शुक्रिया।
हाँ एक बात और सोनू भाई से- कविता या साहित्य किसी भाषा का हो और किसी भी भाषा के माध्यम से अनूदित होता हुआ हम तक पहुंचे उसका स्वागत ही होना चाहिए। इसमे घटिया लगने जैसी कोई बात मुझे तो नहीं नज़र आती ।
"घटिया" कहना ग़लत था।
मैं अनुवाद की गुणवत्ता, जो सीधे अनुवाद न होने से कम हो जाती है, उस पर इसे नकार रहा था। मेरे पास कोई प्रतिमान नहीं कि दो बार अनुवाद होने से कविता में फ़र्क़ आ गया है।
दूसरे, मुझे ये लगा कि देश की हिंदीतर भाषाओं से हम दूर होते जा रहे हैं। आप किसी पंजाबी से पूछो तो वो कहेगा कि उसकी भाषा हिंदी से सबसे ज़्यादा मेल खाती है, मराठी भी अपनी भाषा के लिए यही कहेगा।
गुणवत्ता की बात करूँ तो, मलयालम तो द्राविड़ भाषा है, लेकिन क्या गुजराती से अनुवाद करना ज़्यादा सटीक नहीं होता, कि शब्द मेल खाते हैं?
कबाड॰खाना मैंने पहली बार देखा।सुनिश्चित रूप से यह कार्य सर्वथा प्रशंसनीय है।
मदनमोहन तरुण
कबाड॰खाना मैंने पहली बार देखा।सुनिश्चित रूप से यह कार्य सर्वथा प्रशंसनीय है।
मदनमोहन तरुण
Kabaadkhanaa maine pahli baar dekhaa.Yah sunishchit roop se eik
mhatvapoorn prakaashan hai.
MadanMohan Tarun
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