Monday, October 13, 2008

ये कहां तुम ग़ायब हुए? ये मैं कब बन गई ऐसी गई-बीती?

पतन

(लेन्स के दूसरी तरफ़ से)

याद है
वह हंसी जो खोल कर धर देती थी
एक स्फटिक-साफ़ दिन को?

वह चांद - पूरा
ढुलका आता हुआ झील में

वह ख़ुशी, चूमना वह
और सितारों से ढंकी हमारी देहें!

बस एक बार
चख सकती तुम्हारी जीती-जागती आकृति को बस एक बार और ...

तुम्हारे 'सैवेज' आफ़्टरशेव
की झीनी स्मृति को पहने

मैं चमकाती हूं अपने होंठों को
सुर्ख सुर्ख़तर लाल में:
ठीक कर देती हूं आईने की आख़िरी सिलवट को:
चिप्पियां लगा कर दुरुस्त करती हूं उस चेहरे को
तुम्हारे बाक़ी चेहरों का सामना करने को.

ये कहां तुम ग़ायब हुए?

ये मैं कब बन गई ऐसी गई-बीती?

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अनुवाद के लिए अशोक भाई का शुक्रगुजार हूँ. मूल कविता अंग्रेज़ी में इस प्रकार थी:

THE FALL

(From the other side of the lens)


Remember
the laughter that broke open the lid
of a crystal-clear day?

The moon - full
and spilling onto the lake

The joy, the kiss
and our bodies covered with stars!

If only
I could taste your living outline again ....

Wearing the thin memory of your -
once Savage aftershave

I gloss my lips
a bright, brighter red;
smooth that last wrinkle out of the mirror;
patch that face to meet all your other faces.

Where did you disappear?

When did I turn commonplace?

"MEET"

5 comments:

ghughutibasuti said...

only if one cld pinpoint that exact moment!
ghughutibasuti

गौरव सोलंकी said...

वाह!

शायदा said...

सुंदर कविता, बढि़या अनुवाद।
patch that face to meet all your other faces.

तुम्हारे बाक़ी चेहरों का सामना करने को.

बहुत बढि़या।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

ame kavita kiski hai?

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

itni adbhut!!!!!!!!!!!