Saturday, November 1, 2008

'पहल' की यात्रा जारी रहे -जारी रहेगी

नग्मा तेरा नफ़स - नफ़स, जलवा तेरा नज़र - नजर,
फिर भी ऐ शाहिदे हयात , और जरा करीबतर .

'पहल' का पटाक्षेप ‍! पढ़ने के बाद से मन खिन्न हो गया था.

'इस महादेश के वैज्ञानिक विकास के लिए प्रस्तुत प्रगतिशील रचनाओं की अनिवार्य पुस्तक' के यों नेपथ्य में चले जाने ( माफी चाहता हूँ के 'बंद होना' मैं लिख नहीं पा रहा हूँ ) की खबर ने उदासी में मुब्तिला कर दिया था। शिरीष की पोस्ट पर आई टिप्पणियों में मेरी बात भी छिपी है. आज शाम को ज्ञानरंजन जी से फोन पर बात हुई और दिल को जरा करार आया. उनका कहना है कि कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा और दिसम्बर में इस बारे में 'फैसला' लिया जाएगा कि किस तरह 'पहल' को अनवरत -सतत रखा जाय. इस पत्रिका का एक पाठक होने के नाते मेरी नजर में यह एक अच्छी और आश्वस्तिपूर्ण सूचना है.

मित्रों, 'पहल' की यात्रा जारी रहे -जारी रहेगी !

आओ , हम सब दुआ करें ! !

16 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

आमेन !

संगीता पुरी said...

हमारी दुआ भी साथ है।

अनूप शुक्ल said...

आमीन!

युग-विमर्श said...

ज्ञानरंजन आश्वस्त हैं तो रास्ता भी निकाल लेंगे. आप निश्चिंत रहें. दुआ जरूर कीजिये, पर यह तो केवल मन का संतोष है.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

हम भी खुश हुए जी...।

महेन said...

सुम्मा आमीन!

विजय तिवारी " किसलय " said...

main /dr. vijay tiwri "kislay' jabalur se hoon, aur gyaan jee hamare jabalpur ke hi swanaamdhany sahitykaar hain, aaj tak sahity ke khsitij men gyan ji ne jo aalok failaya hai uski roshni sadiyon tak hamen prakashit karti rahegi,
mujhe ummeed hi nahi vishwaas hai ki gyaan ji aisa kuchh bhi nahi karenge jo sahity ko kshati pahunchaaye.

DR. VIJAY TIWRI 'KISLAY'

विजय तिवारी " किसलय " said...

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मैं डॉ. विजय तिवारी "किसलय' जबलपुर से हूँ, और ज्ञान जी हमारे जबलपुर के ही स्वनामधन्य साहित्यकार हैं, आज तक साहित्य के क्षितिज में ज्ञान जी ने जो आलोक फैलाया है उसकी रोशनी सदियों तक हमें प्रकाशित करती रहेगी,
मुझे उम्मीद ही नही विश्वास है की ज्ञान जी ऐसा कुछ भी नही करेंगे जो साहित्य को क्षति पहुँचाए.

डॉ विजय तिवारी ' किसलय '

बोधिसत्व said...

दोबारा पहल में छप सकूँगा....अच्छी खबर

Unknown said...

अगर कोई आर्थिक या रचनात्मक अभाव नहीं है तो फिर इस तरह की बंद करने की झक और मर्सियागिरी का मतलब क्या है। अगर ज्ञान जी खुलकर बात करें तो बहुत लोग हैं जो पहल को चलाने का जिम्मा ले सकते हैं। अगर कोई निजी, गोपनीय मामला हो जो रिस कर इस शक्ल में बाहर आ गया हो तो बात और है।

अजित वडनेरकर said...

मेरे भीतर की उमड़-घुमड़ को अनिल यादव ने बहुत अच्छी तरह से आकार दिया है ...
?????????

Girish Kumar Billore said...

इस बारे में कुछ कहना असंभव
मैं उनको और वे मुझे प्रिय हैं
पहल जारी रहे इस के लिए मैं भी चिंतित हूँ आपकी तरह
हमारी दुआ भी साथ है।

Ek ziddi dhun said...

chaliye ek ummeed bani

ravindra vyas said...

अब थोड़ा करार आया है।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

'पहल' बंद हो जाए यह प्रत्याशित नहीं है. मेरे जैसे अनगिनत लोगों ने वहीं से साहित्यिक संस्कार पाया है. ३० अक्टूबर को ज्ञान जी से बात हुई, वह जल्द ही मुंबई आने की बात कह रहे थे. लेकिन यह सच है कि पहल, हिन्दी साहित्य तथा वामपंथी आन्दोलन के लिए ज्ञान जी ने अपना जीवन होम कर दिया है. अब अगर वह आराम चाहते हैं तो उन्हें दिक न किया जाना चाहिए. वैसे भी इस राह में उन्होंने ऐसे साथी बनाए हैं जो उनका भार अधिक तो नहीं लेकिन लड़खडाते हुए ही सही शुरुआत में उठा सकेंगे व बाद को स्वयं सक्षम हो जायेंगे. विरासत बड़ी है, भारी भी. अगर वह बिना कारण बताये इस अभियान को छोड़ देंगे तो कई सवाल उठ सकते हैं, जिनमे से कई जायज होंगे, कई नाजायज.

विजय तिवारी " किसलय " said...

भाई जी
जितना मुझे मालुम है
उसके अनुसार माह नवम्बर
में ऐसा कुछ होने वाला नही है
दिसम्बर ०८ में इस सम्बन्ध में
विस्तृत विवरण बताया जा सकेगा.
बातें चलती हैं. ऐसी कोई भी विशेष
कठिनाइयां भी नहीं हैं, कुछ
अन्य मुद्दे हो सकते हैं,
परिस्थितियाँ हो सकती हैं,
जिस पौधे को पालपोष कर बड़ा किया
जाए, अपना तन,मन, धन और अपना खून
सींच कर, ///// वह इतनी आसानी से ओझल नही हो सकता ,
जहाँ तक 'पहाल' बंद होने की बात है तो मेरी भी कल ही यानि
९ नव. को आदरणीय ज्ञान जी से बात हुई थी, तब उन्होंने
इन बातों को स्वीकार तो किया था , लेकिन उनके द्बारा निर्णय
जैसी कोई बात नही थी. और कुछ निर्णय
लेना भी पड़ेगा तो वे जो भी
करेंगे सोच समझ कर करेंगे,
और इसके लिए वे वक्त- परामर्श- चिंतन के
पश्चात ही घोषणा करेंगे.

- डॉ विजय तिवारी " किसलय "
जबलपुर