येहूदा आमीखाई के नाम से कबाड़ख़ाने के पाठक परिचित हैं.
बम्बई में कल रात घटे पागलपन के बीच अपनी जान गंवा बैठे लोगों के प्रति भीतर तक दर्द महसूस करता हुआ मैं फ़िलहाल आमीखाई की इस कविता को आप तक पहुंचा पाने के अलावा और क्या कर सकता हूं:
बम का व्यास
तीस सेन्टीमीटर था बम का व्यास
और इसका प्रभाव पड़ता था सात मीटर तक
चार लोग मारे गए, ग्यारह घायल हुए
इनके चारों तरफ़ एक और बड़ा घेरा है - दर्द और समय का
दो हस्पताल और एक कब्रिस्तान तबाह हुए
लेकिन वह जवान औरत जिसे दफ़नाया गया शहर में
वह रहनेवाली थी सौ किलोमीटर से आगे कहीं की
वह बना देती है घेरे को और बड़ा
और वह अकेला शख़्स जो समुन्दर पार किसी
देश के सुदूर किनारों पर
उसकी मृत्यु का शोक कर रहा था -
समूचे संसार को ले लेता है इस घेरे में
और अनाथ बच्चों के उस रुदन का तो मैं
ज़िक्र तक नहीं करूंगा
जो पहुंचता है ऊपर ईश्वर के सिंहासन तक
और उससे भी आगे
और जो एक घेरा बनाता है बिना अन्त
और बिना ईश्वर का.
14 comments:
यह कविता इस समय के सबसे बड़ी समस्या के बारे में सबकुछ कह जाती है। पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
इस कविता को पढ़वाने के लिये शुक्रिया!
सरकार का बयान तो आने दीजिए। बजरंगियों के नाम एक और कारनामा तो हो जाने दीजिए। "धर्मनिरपेक्ष" लोगों को आंसू तो बहाने दीजिए। उसके बाद ही आप कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करें तो बेहतर होगा। क्या आतंकवादी भी यह कविता पढेंगे? क्या हम कविता पढ़कर और पढ़ाकर ही आतंकवाद रोक सकेंगे?
अशोक भाई ... वाकई कल रात से बेहद परेशान हूँ ... चुनाव के ठीक एक दिन पहले ... मालेगांव केस के एन बीच में ... क्या सच है ..कितना सच है..पता नही..लेकिन जो सबसे बड़ा सच है वो ये कि मानवविरोधी इन हरक़तों से घायल तो अंततः मानवता ही होती है.
सम्भव हो तो देखें कभी
www.asuvidha.blogspot.com
अंतहीन पीड़ा को व्यक्त करती अनंत में फैली कविता।
ऐसे ही समय मन कहता हैं की ईश्वर तुम कहाँ हो ?
मनुष्य ने अपनी नैतिकता की रक्षा लिए ईश्वर रचे जो धीरे-धीरे सुविधा में बदलते हुए अब एक औज़ार-एक हथियार में तब्दील हो चुके हैं और वक्त आ गया है जब हमें " बिना ईश्वर के उस घेरे के बारे में सोचना चाहिए, जो कहीं बड़ा और अनन्त है !"
कत्ल हो गया है
ईश्वर
उन्हीं लोगों के हाथों
पैदा किया था
जिन्हों ने उसे
मायूस हैं अब
कि नष्ट हो गया है।
उनका सब से बढ़ा
औज़ार
शायद इस बार सरकारी मशीनरी हरकत में आए? अमीन!
शायद इस बार सरकारी मशीनरी हरकत में आए? अमीन!
:(
हमने ये कैसा समाज रच डाला है?
"जो पहुंचता है ऊपर ईश्वर के सिंहासन तक"
भाई काश उनकी वेदना बस आतंकियों और हमारे बहरे नेताओं तक पहुँच सकती।
ॐ शान्तिः।
कोई शब्द नहीं हैं...।
बस...।
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