Friday, December 12, 2008

पोखर की मछली जाना चाहती है फिर से अपने तालाब में :चीनी कविताओं की श्रृंखला - 3



थाओ छ्येन (३६५-४२७) या थाओ य्वैन मिंग राजवंश काल (६१८-९०७) के पूर्व के कवियों में एक महत्वपूर्ण और प्रेरक स्थान रखते थे. परवर्ती काल के महत्वपूर्ण कवि वांग वेई पर उनका खासा काव्यात्मक असर रहा है. उन्होंने इहलौकिक जीवन की व्यर्थता पर काफ़ी कुछ लिखा और अंततः वे प्रकृति के आंचल में ही मुक्ति के काव्य के रचयिता के तौर पर प्रतिष्ठित हुए. वे एक गरीब किसान परिवार से थे. छोटे सरकारी पद पर बने रहने के बावजूद वे अपने किसान जीवन के प्रति हमेशा लालायित बने रहे. वे बहुत स्वाभिमानी थे. नौकरी छोड़ने के बाद भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. उन का घर आग में स्वाहा हो गया और उनके अगले बीस साल बहुत तकलीफ़ में बीते, पर उन्होंने कोई भी सरकारी मदद नहीं ली. उन की कविताओं की सरल भाषा और अध्यात्मिकता चीनी कविता के श्रेष्ठतम कवियों में उनका विशिष्ट स्थान सुरक्षित करती है. बेशक ताओवाद का उनकी कविताओं पर गहरा असर है.

दक्षिण में प्रकृति की गोद में

छुटपन में नहीं लिया मज़ा मंडली का
कामना रही बस शिखरों की
गलती से फंस गया दुनियादारी के जंजाल में
यों ही उलझा रहा तीस सालों तक
कैद पक्षी लौटने को बेताब अपने पुराने जंगल में
पोखर की मछली जाना चाहती है फिर से अपने तालाब में
मैं जाना चाहता हूं अपने दक्षिण की ओर
खेतों और बागों में
बस दस एकड़ ज़मीन मेरी अपनी
घास-फूंस से ढंके घर में आठ-नौ कमरे
मज़बूत कद-काठी वाले छायादार पेड़
ओरियों के पार सरपत-वृक्ष
बड़े कक्ष के दरवाज़े के सामने आड़ू और आलूचे के पेड़
धुंधली दूरी पर एक गांव
हमेशा धुंए के दामन में
गली में कहीं भूंकता कुत्ता
कुकुटाता है शहतूत पर बैठा चूज़ा.
दुनियादारी से मुक्त मेरा घर
इतने कमरे अक्सर खाली
आखिर कैद से आज़ाद हुआ मैं
फिर से अपनी प्रकृति में

(मूल चीनी से अनुवाद: त्रिनेत्र जोशी
'तनाव' से साभार)

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना प्रेषित की है।आभार।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

bahut hee sahaj aur sundar rachana! shershth anuvaad!!

Ashish Khandelwal said...

शानदार प्रस्तुति

वर्षा said...

अच्छी कविता है