बोरिस पास्तरनाक
कलम में एक जानवर की तरह, मैं कट गया हूं
अपने दोस्तों से, आज़ादी से, सूर्य से
लेकिन शिकारी हैं कि उनकी पकड़ मजबूत होती चली जा रही है।
मेरे पास कोई जगह नहीं है दौड़ने की
घना जंगल और ताल का किनारा
एक कटे हुए पेड़ का तना
न आगे कोई रास्ता है और न पीछे ही
सब कुछ मुझ तक ही सिमट कर रह गया है।
क्या मैं कोई गुंडा हूं या हत्यारा हूं
या कौन सा अपराध किया है मैंने
मैं निष्कासित हूं? मैंने पूरी दुनिया को रुलाया है
अपनी धरती के सौन्दर्य पर
इसके बावजूद, एक कदम मेरी कब्र से
मेरा मानना है कि क्रूरता, अंधियारे की ताकत
रौशनी की ताकत के आगे
टिक नहीं पायेगी।
कातिल घेरा कसते जा रहे हैं
एक गलत शिकार पर निगाहें जमाये
मेरी दायीं तरफ कोई नहीं है
न कोई विश्वसनीय और न ही सच्चा
और अपने गले में इस तरह के फंदे के साथ
मैं चाहूंगा मात्र एक पल के लिए
मेरे आंसू पोंछ दिये जायें
मेरी दायीं तरफ खड़े किसी शख्स के द्वारा
ये कविता है प्रख्यात कवि, उपन्यासकार और चिंतक बोरिस पास्तरनाक की जो उसने १९५९ में नोबेल पुरस्कार लेते समय रची थी।
कितनी तड़प, कितनी पीड़ा और कितनी बेचैनी है इन शब्दों में कि मन पढ़ कर ही बेचैन हो उठता है, और कितनी बड़ी त्रासदी है कि पास्तरनाक का पूरा जीवन ही इसी कविता के माध्यम से अभिव्यक्त हो जाता है।
यह कविता नहीं, उनका पूरा जीवन है जो उन्होंने भोगा और अपने आपको पूरी ईमानदारी से अभिव्यक्त करने के लिए वे हमेशा छटपटाते रहे।
अपने समकालीन दूसरे बुद्धिजीवी रचनाकारों की ही तरह पास्तरनाक हमेशा डर और असुरक्षा में सांस लेते रहे। सोवियत रूस की क्रांति के बाद के कवि के रूप में उन्हें भी शासन तंत्र के आदेशों का पालन करने और अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन कर अपनी बात कहने की आजादी के बीच के पतले धागे पर हमेशा चलना पड़ा। उन्होंने उन स्थितियों में भी हर संभव कोशिश की कि कला को जीवन से जोड़ कर सामने रखें जब कि उस वक्त का तकाजा यह था कि सारी कलाएं क्रांति की सेवा के लिए ही हैं। अपनी सारी रचनाएं, कविताएं, संगीत लहरियां और लेखों के सामने आने में हर बार इस बात का डर लगा रहता था कि कहीं ये सब उनके लिए जेल के दरवाजे न खोल दें।
पास्तरनाक की बदकिस्मती कि वे ऐसे युग में और माहौल पर जीने को मजबूर हुए। उन्होंने कभी भी दुनिया को राजनीति या समाजवाद के चश्मे से देखा। उनके लिए मनुष्य और उसका जीवन कहीं आधक गहरी मानसिक संवेदनाओं, विश्वास और प्यार तथा भाग्य के जरिये संचालित था। उनका साहित्य कई बार कठिन लगता है लेकिन उसके पीछे जीवन के जो अर्थ हैं या मृत्यु का जो भय है, वे ही उत्तरदायी है। वे समाजवाद को तब तक ही महत्त्व देते हैं जब तक वह मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होता है। उस वक्त का एक प्रसिद्ध वाक्य है कि आपकी दिलचस्पी बेशक युद्ध में न हो, युद्ध की आप में दिलचस्पी है।
पास्तरनाक अपने समय के रचनाकार नहीं थे और इसकी सजा उन्हें भोगनी पड़ी। वे इतने सौभाग्यशाली नहीं थे कि उस समय रूस में चल रही उथल पुथल के प्रति तटस्थ रह पाते। इसी कारण से बरसों तक उनका साहित्य रूस में प्रकाशित ही न हो सकता। क्योंकि अधिकारियों की निगाह में उनके साहित्य में सामाजिक मुद्दों को छूआ ही नहीं गया था। वे जीवनयापन के लिए गेटे, शेक्सपीयर, और सोवियत रूस के जार्जियन काल के कवियों के अनुवाद करते रहे। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उन्होंने अपनी विश्व प्रसिद्ध कृति डॉक्टर जिवागो की रचना शुरू की जिसे उन्होंने १९५६ में पूरा कर लिया था। इसे रूस से बाहर ले जा कर प्रकाशित किया गया। १९५८ में उन्हें नोबल पुरस्कार दिया गया जो रूस के लिए खासा परेशानी वाला मामला था। यही कारण रहा कि यह किताब रूस में १९८८ में ही प्रकाशित हो सकी।
१८९० में जन्मे बोरिस पास्तरनाक की मृत्यु १९६० में हुई।
इतिहास की इससे बड़ी घटना क्या होगी कि जिस बोल्शेविक शासन तंत्र ने पास्तरनाक को आजीवन सताया और उसकी रचनाओं को सामने न लाने के लिए संभव कोशिश की, उसका आज कोई नाम लेवा भी नहीं है और पास्तरनाक का साहित्य आज भी पूरी दुनिया में पढ़ा जाता है और उसकी कब्र पर दुनिया से लोग फूल चढ़ाने आते हैं।
3 comments:
बोरिस पास्तरनाक के बारे में जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार ....बहुत ही मार्मिक कविता है ..
नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज
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