Tuesday, December 30, 2008

चला गया चटख रंगों का वह चितेरा


समकालीन भारतीय चित्रकला के अनूठे चित्रकार मनजीत बावा नहीं रहे। वे लंबे समय से कोमा में थे और कला जगत को आशा थी कि वे ठीक होकर फिर से उसी उर्जा के साथ काम कर सकेंगे लेकिन इस खबर से कला जगत का चटख रंगों का यह चितेरा दुःख और उदासी का धूसर रंग छोड़ गया लेकिन अपने कैनवास पर वह खास शैली में बने आकारों और मनोहारी रंगों में हमेशा सांस लेता रहेगा। उनके कैनवासों से पूरा भारतीय कला जगत दिपदिपाता रहेगा।
ख्यात कवि चंद्रकांत देवताले (बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कभी पेंटिंग भी किया करते थे) ने कहा कि वे घूमंतू चित्रकार थे और आधुनिक चित्रकला में उनका एक देशी अंदाज था। वे चैनदारी से अपना काम करते थे। उनकी चित्रकारी का किसी भी तरह की होड़ और बाजार से कोई रिश्ता नहीं था। कला उनके लिए जीवन और शुद्ध अभिव्यक्ति का मामला था। यही कारण है कि वे इतना अमूल्य चित्र - संसार रच पाए।
इंदौर के वरिष्ठ चित्रकार श्रेणिक जैन ने कहा कि मनजीत बावा अपने ढंग के मौलिक चित्रकार थे। उन्होंने मिनिएचर किए और उनकी कला लोक कला से खासी प्रभावित रही है। उनका जाना सचमुच कला जगत की अपूरणीय क्षति है। जबकि वरिष्ठ चित्रकार ईश्वरी रावल का मानना था कि उनका काम इतना सुंदर होता था कि देश के बाहर भी खूब पसंद किया जाता था। यह बहुत ही सराहनीय है कि उन्होंने पशु-पक्षियों के मूक संसार को अपने कैनवास पर खूबसूरती से जीवंत किया। वे उन चित्रकारों में से थे जो सतत काम कर रहे थे लेकिन पिछले तीन सालों से उनका शरीर उनका साथ नहीं दे रहा था। मूर्तिकार-चित्रकार संतोष जड़िया ने कहा कि पेंटिंग में उनका भारतीयता का अंदाज सबसे जुदा था। उन्होंने किसी की नकल नहीं की और अपनी मौलिक शैली ईजाद की। उन्होंने सुर्रियलिज्म को ठेठ भारतीय रंग देकर पुनर्परिभाषित करने का सुंदर प्रयास किया था। चित्रकार प्रभु जोशी ने कहा कि मनजीत बावा ने आकृतिमूलकता के साथ मिथकीय पात्रों को रेखांकन के स्तर पर सरलीकृत किया । वे मूलतः आध्यात्मिक थे और अपने तथा कला के बारे में मितभाषी भी। हालांकि अपनी कलाकृतियों को लेकर वे विवाद में भी रहे लेकिन अविचलित बने रहे। वे कला समीक्षकों, कलादीर्घाअों तथा कलाकारों के लिए भी सर्वाधिक उदार थे।
उन्होंने खूब ड्राइंग की। सालों तक की। उनके इसी ड्राइंग प्रेम से प्रभावित रहे हैं चित्रकार बीआर बोदड़े। वे कहते हैं उन्होंने कला में अपनी एक अलग राह और पहचान बनाई तथा शेरों को लेकर खूब काम किया। जबिक चित्रकार हरेंद्र शाह का मानना था कि उनके फिगरेटिव काम बहुत यूनिक हैं और उसमें भारतीयता झलकती है। उनके रंग आनंद देते हैं। अमूर्त चित्रकार अखिलेश का कहना था कि वे समकालीन चित्रकला में नरेटिव फिगरेटिव कला के बरक्स दूसरी दिशा की फिगरेटिव पेंटिंग के कलाकार थे। वे अपने रंगों के लिए प्रख्यात थे। रंगों का उनका बरताब उन्हें दूसरे चित्रकारों से अलग करता है। अब हम उनके रंगों से वंचित रहेंगे। सोचा था कि ठीक होकर वे फिर से रच सकेंगे लेकिन अब यह संभव न हो सकेगा। कवि नवल शुक्ल का मानना है कि वे देश के सर्वश्रेष्ठ चित्रकारों में एक थे और उनके चित्रों में भारतीयता की लालित्यपूर्ण झलक मिलती है। जबिक चित्रकाकर अक्षय आमेरिया का कहना था कि उनमें गहरी आध्यात्मिकता थी । युवा चित्रकार खांडेराव पंवार कहते हैं कि उनके चटख रंग गहरा प्रभाव छोड़ते हैं और उनके आकार लुभाते हैं।
वे हमेशा अपने चटख रंगों और अद्वितीय आकारों के लिए याद किए जाते रहेंगे।

3 comments:

Vineeta Yashsavi said...

Behad dukhad ghtna....

Baba ko meri shardhanjli.

Ashok Pande said...

बावा जी की कला के इन पहलुओं से सब का परिचय कराने का शुक्रिया रवीन्द्र भाई!

Unknown said...

मैं उनके बारे में जयादा तो नही जानता ..लेकिन हाँ आज काफ़ी कुछ पढ़ा उनके बारे में...सही में दुखद घटना है .
बाबा सही में अपने चटक रंग और अद्वितीय आकारों के लिए याद किए जाते रहेंगे।