Wednesday, December 17, 2008

जीवन से ग़ायब होते लोग: १



ये हैं बाबूलाल जी. सिल बट्टे ठीक किया करते हैं. हर साल एक बार हमारे घर आते हैं. बरेली के रहने वाले हैं. उमर बकौल उन्हीं के कोई पिचहत्तर अस्सी पिचहत्तर. बजाए मैं अपनी तरफ़ से कुछ जोड़ूं, एक छोटा सा वीडियो देखिये उनका. वीडियो लिया है रोहित उमराव ने और उनसे बातचीत भी वही कर रहे हैं.

19 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

Nice Portrait of life which goes on this way too.

RAJIV MAHESHWARI said...

भाई जान, ये तो अभी देख भी जाते है . पर पीतल के बर्तनों पर कलली करने वाले तो शायद खत्म हो गए है.

राजीव महेश्वरी

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

सिल-बट्टे और ओखली-मुस्सल का ज़माना तो कब का बीत गया। अब तो मिक्सी का युग है। डालो-घुमाओ और लो तैयार हो गया पिट्ठा।

ghughutibasuti said...

अरे मैं तो बाबूलाल जी को कब से ढूँढ रही हूँ । आजकल मिलते ही नहीं । बहुत दिन से गायब हुए कलई करने वालों, पेन ठीक करने वालों आदि के बारे में लिखने की सोच रही थी । सिल बट्टा तो मेरा बिल्कुल चिकना हो गया है और कितने भी मिक्सर फूद प्रोसेसर आ जाएँ सिल बट्टा तो चाहिए ही चाहिए । इस लेख व विडीओ के लिए आभार ।
घुघूती बासूती

ghughutibasuti said...

सोच रही हूँ क्यों न स्वयं ही बाबूलाल बन जाऊँ और यह काम भी कर ही डालूँ ।
घुघूती बासूती

varsha said...

blog par zindagi ka ye khoya rang dekhkar achcha laga.

दिनेशराय द्विवेदी said...

स्टील के उपयोग से कलई का काम समाप्त प्राय हो गया है। फिर भी कोई कोई बहुत दिनों में दिखाई दे जाता है।

Rajesh Joshi said...

एक-दो-तीन-चार.एक-दो-तीन-चार !!

इस ताल पर चलता हथौड़ा और बाबूलाल की बातचीत. सिर्फ़ इसी पोस्ट पर ब्लागिंग का अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार का हक़दार है कबाड़ख़ाना.

P.N. Subramanian said...

छोटे कस्बों में तो शायद दिख भी जाते होंगे. संकलन योग्य चित्र. आपके अंतर्मन को नमन.

siddheshwar singh said...

मेरे खयाल में इससे उम्दा कबाड़ और नहीं !

मसिजीवी said...

ये तो गजब कबाड़ जुगाड़ा आपने।

एस. बी. सिंह said...

विकास और शहर ने हमसे और भी बहुत कुछ छीना है। खैर जीवन की एक भूली हुई गली में ले जाने का शुक्रिया।

Kavita Vachaknavee said...

यह टिप्पणी इस प्रविष्टि पर प्रतिक्रिया के रूप में नहीं अपितु कबाड़खाना को सूचित करने के लिए है, कि वरवरराव आदि के साथी रहे, प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे तेलुगु काव्य के दिगम्बर कविता आन्दोलन के प्रणेता कवि ज्वालामुखी का निधन तीन दिन पूर्व हो गया।

Ashok Pande said...

कबाड़खाना अपनी सारी ऊर्जा से साथी ज्वालामुखी की याद करता हुआ उन्हें अपना सलाम भेजता है. ऐसे लोगों का निधन नहीं होता. वे रास्ता बन जाते हैं या ध्रुवतारे! साथी वरवर राव को भी सलाम, उन्हें मेरी याद हो शायद!

सूचना हेतु आभार कविता जी!

RAJIV MAHESHWARI said...

अशोक पाण्डेय जी ,ये लोग गायब नही हुए है. हम ने आपने घरो से सामान गायब कर दिया है.जेसे चक्की,चरखा,ओखली,रुई धुनें वाला धुंका .इन सब को गायब करने में हम भी कही ना कही जुम्मेदार है

राजीव महेश्वरी

Puja Upadhyay said...

acchi post. jindagi ke is rang ko dikhane ke liye shukriya.
waise kitna bhi mixer me pees lo, chatni ka swad silbatte par hi aata hai, aisa mera manna hai.

वर्षा said...

वक़्त की साज़िश थी इनके ख़िलाफ़।

मुनीश ( munish ) said...

kadhaee ki daal aur cooker ki dal mein jo farq hai ,vahi sil-batte aur mixi ki chatnee mein hai. panjabi zuban vich batte nu lodha kehan da ravaj vi seega!

Anonymous said...

मित्रवर
आपके ब्लॉग मे वापरा हुवा चित्र मै भी अपने ब्लॉग पर वापरना चाहता हू. आशा है की आपको कोई आपत्ती नही होगी.
सस्नेह
महेंद्र कुलकर्णी