'गढें कुछ नया'
Tuesday, December 30, 2008
कितना जानते हैं आप मंजीत बावा को
रंग के चितेरे और सूफियाना अंदाज के मालिक मंजीत बावा को जानना आसान नहीं है। उनकी पेंटिंग और सोच जिन्दगी के एक अलग ही मायने हैं। वह करीब तीन सालों तक कोमा में रहे। जहाँ तक मुझे याद है उनकी तबियत ख़राब होने से महज एक हफ्ते पहले उनसे अच्छी-खासी बातचीत हुई थी कई मुद्दों पर। जिन्दगी के फलसफे से लेकर भविष्य के योजनाएं बातचीत के मुद्दों में शामिल था। मेरी बातचीत का एक मुद्दा सेल्फ इम्प्रूवमेंट भी था जिस पर एक लेख चार जनवरी, २००६ को दैनिक जागरण के जोश में छपा था। शीर्षक था 'गढें कुछ नया। ' मैंने अपने ब्लाग पर भी इसी साल जनवरी में एक लेख भी लिखा था "अब तो जग जाओ बावा "। पर अपने धुन के पक्के न तो वह जगे और न ही किसी की बात ही मानी । आज उनको याद करते हुए क्यों न उस बातचीत को पढ़ें और गुने।... विनीत उत्पल
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मंजीत बावा,
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3 comments:
हालाँकि मैं टी0 वी0 समाचार ज़्यादा नहीं देखता पर जितना भी देखा, इतना समाज आया की या तो मंजीत बावा का चले इनके लिए कोई समाचार नहीं है, या फिर बिकाऊ समाचार नहीं है....या इनके लिए सवाल है -"कौन मंजीत बावा ?". ...
दिवंगत कलाकार को भावपूर्ण नमन.
कृपया 'समाज' को 'समझ' पढ़ें.
सुबह जब पेपर उठाया तो पता चला कि बाबा नहीं रहें। सुनकर एकदम झटका सा लगा बीच में सुना था कि कोमा में हैं पर फिर ये भी सुना कि शायद घर आ गए हैं। यह खबर दुखद हैं। ज्यादा समझ नहीं पेंटिग्स की पर इनकी पेंटिग्स के रंग अपनी और खीचंते थे। काजल जी टिप्पणी पढी तो यही कहने का मन हुआ कि ऐसे बाबाओं की खबर एक दिल से दूसरे दिल तक पहुँचती हैं। ना कि इन दिशा खो चुके न्यूज चैनलों से।
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