Monday, December 29, 2008
कला में एक ख़ास क़िस्म की ताज़गी और नयापन होना चाहिये
जाने माने चित्रकार मनजीत सिंह बावा की आज सुबह लम्बी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई. तीन साल से कोमा में चल रहे थे बावा.
१९४१ में पंजाब में जन्मे बावा ने कॉलेज ऑफ़ आर्ट से डिग्री हासिल की थी. लन्दन स्कूल ऑफ़ प्रिन्टिंग, एसेक्स में उन्होंने स्क्रीन प्रिन्टिंग का डिप्लोमा किया और १९६७ से १९७१ तक लन्दन में स्क्रीन प्रिन्टर का काम किया.
बावा कहा करते थे: "आपकी कला में एक ख़ास क़िस्म की ताज़गी और नयापन होना चाहिये, वरना कला से जुड़े रहने का कोई मतलब नहीं होता. अलग होने का मतलब हुआ कि आप कुछ ऐसा करते हैं जो आपने पहले कभी नहीं किया होता."
रंगों की चमक और चटख से प्यार करने वाले इस कलाकार के जाने से भारतीय कला-संसार की बड़ी हानि हुई है. कबाड़ख़ाना उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देता है.
(स्व. मनजीत बावा का फ़ोटो 'ट्रिब्यून' से साभार)
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7 comments:
श्रृद्धांजलि.
मनजीत बावा जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि!
Bawaji ko thora aur likh kar yaad kiya jay to behatar hoga. Kuchh logon se likhwa saken, jaise Prayag,Girdhar or Vinod Bharadwaj to achcha rahega. Yah meri ray hai. Bawa ke kaam ko janana bahoot zaroori hai aapke pathakon ke liye. Sahmat hain aap?
अरे? ओह..?
विनम्र श्रद्धांजलि,,,
कला का मौलिक भारतीय द विंची चला गया!
सिर्फ़ इस मत्तले को दुखदाई अर्थ में लीजिए-
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ के पीटूं जिगर को मैं!!!!!!!!!!!!!
बकिया मैं कहता हूँ कि त्रिनेत्र जी ख़ुद सक्षम हैं बावा पर लिखने के लिए. और लोग लिखें तो स्वागत!
many moons ago i watched a documentry on Bawa at an International film. fest & that gave a rare insight into his work and a rather peculiar love life. my heart felt condolences to his lady love, family members and all those who admired this sage of modern Indian art.Amen.
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