Saturday, December 20, 2008

प्रगति और परम्परा



(फ़ोटो के लिए आशुतोष उपाध्याय का आभार)

11 comments:

P.N. Subramanian said...

यही ओरिजिनल बुद्धि ज़ीवी हैं.

siddheshwar singh said...

गत्यात्मक कबाड़!

परमजीत सिहँ बाली said...

आधुनिक बैलगाड़ी!!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

सुब्रमण्यम साहब किसकी बात कर रहे हैं? जो जुता हुआ है उसकी, जो जोत रहा है उसकी या जिसने यह वितान रचा है उसकी?

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

भाई आशुतोष उपाध्याय के लेंस का मैं कायल हो गया! इसका संभावित कैप्शन दे रहा हूँ- 'जिसे शहर पहुँचने की जल्दी हो वो हमारे साथ चले.'

विजयशंकर चतुर्वेदी said...
This comment has been removed by the author.
दिनेशराय द्विवेदी said...

शानदार चित्र है। कबाड ढोया जा रहा है लेकिन संभवित उपयोग भी प्रदर्शित कर रहा है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

गुदडी में लाल, परम्परा पर प्रगति का कमाल। अच्छा चित्र.......

महेन said...

back to future

Rohit Umrao said...

sri ashutosh je pahli baar dekha hai aisa najara, iske bare me aur janna chahata hun.
rohit umrao

आशुतोष उपाध्याय said...

BHOOL SUDHAR

Sahbaan, Maf keejiye,
Yah photo mera utara hua nahi hai balki kisi dost ne (uska bhi nahi hai) yoon hi kahin se khoj kar bheja tha. Maine bhi apne kuchh doston ke manoranja ke liye naye caption ke saath aage badha diya.
Is dilchasp photo ka crdit mujhe de kar sharmshar na karen huzur.