हजार तरीकों से प्यार किया है हमने
पृथ्वी से
और
स्त्री से
दोनों के भीतर है ब्रह्मांड की खुशियों के झरने
दौड़कर छू लेने वाली आंखों से देखो
सब देखो
नीली गौरैया
नदी को देख रही है
तिरछी नजर से...
(ख्यात कवि चंद्रकांत देवताले की कविता पंक्तियां )
पेंटिंग ः रवींद्र व्यास
7 comments:
आभार चंद्रकान्त देवताले जी की यह पंक्तियाँ पढ़ाने का.
सबके जीवन में उतरे वसंत !
वसंत पंचमी की शुभकामनाएं ,,,,,,,,,,,
दोनों के भीतर है ब्रह्मांड की खुशियों के झरने
दौड़कर छू लेने वाली आंखों से देखो
बेजोड़ पंक्तियाँ...। पढ़वाने का धन्यवाद।
बहुत अच्छी रचना है...... आपका स्वागत है......... मेरे ब्लॉग पर
वसंत पंचमी की शुभकामनाएं
वाह कविता में भी बसंत है और चित्र में ही।
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