Saturday, January 31, 2009

वसंत पंचमी की शुभकामनाएं


हजार तरीकों से प्यार किया है हमने
पृथ्वी से
और
स्त्री से
दोनों के भीतर है ब्रह्मांड की खुशियों के झरने
दौड़कर छू लेने वाली आंखों से देखो
सब देखो
नीली गौरैया
नदी को देख रही है
तिरछी नजर से...
(ख्यात कवि चंद्रकांत देवताले की कविता पंक्तियां )
पेंटिंग ः रवींद्र व्यास

7 comments:

Udan Tashtari said...

आभार चंद्रकान्त देवताले जी की यह पंक्तियाँ पढ़ाने का.

siddheshwar singh said...

सबके जीवन में उतरे वसंत !

Udan Tashtari said...

वसंत पंचमी की शुभकामनाएं ,,,,,,,,,,,

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

दोनों के भीतर है ब्रह्मांड की खुशियों के झरने
दौड़कर छू लेने वाली आंखों से देखो

बेजोड़ पंक्तियाँ...। पढ़वाने का धन्यवाद।

498a (दहेज़ एक्ट) का दुरूपयोग said...

बहुत अच्छी रचना है...... आपका स्वागत है......... मेरे ब्लॉग पर

saraswatlok said...

वसंत पंचमी की शुभकामनाएं

दीपा पाठक said...

वाह कविता में भी बसंत है और चित्र में ही।