Saturday, February 7, 2009

भारतीय का तराना गाता है पाक

भारत और पाक के बीच क्यों न कितनी भी बंदूकें तन जायें, लेकिन सच्चाई यह है कि जहाँ भारत पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि इकबाल का लिखा तराना 'सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान' गाता है, वहीं पाकिस्तान में एक भारतीय कवि की चार बंद वाली 'ए सरजमीने पाक' जमकर बजाई जाती है।

जब द्विराष्ट्र सिद्धांत के आधार पर देश का बंटवारा हुआ था तो पाकिस्तान के रेडियो पर डेढ़ महीने तक इसी तराने को बतौर राष्ट्रीय गीत सुना जाता था। इसका पहला बंद है;

ए सरज़मीन-ए-पाक
ज़र्रे तेरे हैं आज
सितारों से ताबनाक
रौशन है कहकशां से
कहीं आज तेरी ख़ाक
तुन्दही हासिदां पे है
ग़ालिब तेरा सवाक
दामन वो सिल गया
जो था मुद्दतों से चाक


इसके रचयिता कोई और नही बल्कि प्रोफेसर जगन्नाथ आजाद थे। प्रोफेसर जगन्नाथ आजाद और अल्लामा इकबाल राष्ट्रीय सीमाओं से परे उर्दू जगत में सर्वमान्य हैं। जब जगन्नाथ लाहौर में इकबाल की मजार पर गया तो बड़ी ही भावुक शैली में कुछ अपने दिल के दर्द को बयान किया :

मैं आ रहा हूँ दयारे मजारे गालिब से
तेरे मज़ार पे लाया हूं दिल का नज़राना
जदीद दौर का तेरे सिवा कोई न मिला
नज़र हो जिसकी हक़ीमाना बात रन्दाना
सलामी रूमचे असर जदीद तुझ पे सलाम
सलाम महरम राज़ दरूने मयख़ाना.


प्रोफेसर आजाद ने विश्व के करीब २५ विश्वविद्यालयों में अल्लामा इकबाल और उर्दू साहित्य से सम्बंधित अन्य विषयों पर लेक्चरर दिए। करियर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में हुई और सूचना विभाग के अधिकारी और निदेशक भी रहे।

4 comments:

Ashok Pande said...

अच्छी और ज़रूरी जानकारी विनीत! धन्यवाद!

Anonymous said...

अच्छा लगा जानकर। कला व साहित्य की कोई सीमा नही होती।

संगीता पुरी said...

पंक्षी , नदिया , पवन के झोंके के ही साथ साथ कला और साहित्‍य को भी कोई सरहद नहीं रोक सकता।

सोनू said...

उर्दू सीखना चाहता हूँ। टाइप करना आ गया है। आज लुग़त पकड़ ली। सवाक और रूमचे का मतलब नहीं मिला। ख़ैर, आधे से ज़्यादा कविता तो समझ गया।

उर्दू की सतरें उर्दू की लिपि में भी दें दिया करें तो अच्छा होगा।


लुग़त में इतने सारे शब्द देखने पड़ गए:

सरज़मीन

कहकशां

ताबनाक

तुन्दही

हासिद

हसद

चाक

दयार

जदीद

रन्द

दरून