Friday, March 13, 2009

मेरे प्रिय खेल: एक - दहल पकड़



खेल के नियम:

१. आपको कहीं जाने की जल्दी नहीं होनी चाहिए
२. ताश की गड्डी एक हज़ार साल पुरानी होनी चाहिए
३. चाय-पकौड़ी-समोसा इत्यादि की निर्बाध सप्लाई का इंतज़ाम पुख़्ता होना चाहिए

खिलाड़ियों की संख्या: चार

दर्शकों व सलाहकारों की संख्या: कोई सीमा नहीं

खेलने का तरीका:

आमने सामने बैठे खिलाड़ी आपस में एक-एक (यानी कुल जमा दो) टीमों का निर्माण करते हैं.

पहले गुलाम - पीस की जानी चाहिए. गुलाम - पीस क्या होती है, अगर आपको यह ज्ञान नहीं है तो आप स्वाभाविक रूप से इस खेल को खेलने हेतु पर्याप्त अर्हतारहित हैं और यह खेल आप के वास्ते नहीं है. पोस्ट को आगे न पढ़ें. पत्तों को एक बार पुनः गिन लें, वर्ना मज़ा किरकिरा हो सकता है.

तेरह-तेरह पत्ते बांटें. जिसे सबसे पहले पत्ता मिला हो वह पहली चाल देने का अधिकारी होता है. आपके सामने दो उद्देश्य होते हैं. पहला गड्डी के चारों दहले अपनी टीम के कब्ज़े में करने की कोशिश करना. दूसरा अपने पत्तों में से किसी एक रंग को जल्दी-जल्दी ख़त्म करने की कोशिश करना ताकि आप ट्रम्प (यानी तुरुप) खोलने का लुत्फ़ उठा सकें.

यदि आपको कोटपीस खेलनी नहीं आती तो इस पोस्ट को पढ़ने का कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि दहल पकड़ का आविष्कार कोटपीस खेलने वालों को ताश की तहजीब सिखाने के उद्देश्य से किया गया था.

हार-जीत तय करने के तरीके:

१. अधिक यानी तीन अथवा चार दहल पकड़ने वाली टीम विजेता मानी जाएगी.
२. यदि दोनों टीमों के पास दो-दो दहल हैं तो अधिक यानी सात या अधिक हाथ बनाने वाली टीम जीती मानी जाएगी.

खेल पुरुस्कार:

कोट : चारों दहल पकड़ने वाली टीम को दिया जाने वाला सम्मान.

असाधारण खेल पुरुस्कार:

गू-कोट: चारों दहल के साथ सभी तेरह हाथ पकड़ लेने वाली टीम द्वारा पराजित टीम को दिया जाने वाला अपमान.

(फ़ोटो देखकर विचलित न हों. दहल पकड़ के विशेषज्ञों से इस पोस्ट को समृद्ध करने हेतु प्रयास करने का विनम्र निवेदन.)

7 comments:

विजय गौड़ said...

अपने यहां तो हार जीत का मतलब सिर्फ़ और सिर्फ़ गू-कोट: पर सिर्फ़ चार दहल के साथ। सभी तेरह हाथ पकड़ लेने जैसा टंटा नहीं.

मुनीश ( munish ) said...
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मुनीश ( munish ) said...

mausime Gunjhiya mein Goo ? hoo..hoo..hoo!!

Unknown said...

hum ne bhi bahut khela hai

Ek ziddi dhun said...

आपकी मुसलसल चेतावनियों के बावजूद पूरा पढ़ लिया। ताश खेलना न आया पर खेलते देखना बेवकूफों की तरह हमेशा सुहाया। इसी तरह मजे सेपढ़ा।

मुनीश ( munish ) said...
This comment has been removed by the author.
मुनीश ( munish ) said...

Lets have more travel stories here, apki jaipur yatra ghazab rahi saab!