Sunday, March 22, 2009

कोमल बिरवा काव्य कला का डालो पानी गेरो खाद

सब दोस्तन को नमश्कार - पुरसकार के बाद जे खबर देनी है कि आज भौत दिनन के बाद अपनी दुकान के कबाड़ का मौका - मुआयना करते - करते कबिता - सायरी जैसा कुछ बन गया है. क्या करें इसमें गल्ती हमारी ना है यह सब बिदवानों की संगत का असर हैगा....हमारी दुकान पै तरा - तरा का माल धरा है और सुना है कि सबके गिराक हैं.इस मारे उम्मीद है कि जे माल भी पसंद आवेगा. सो अल्लम - गल्लम को छोड़ के अब सीधे अपनी आज* ही बनाई कबिता को डिस्पिले करने की इजाजत चाय रिया हूँ. कुछ गल्त -सल्त होय तो एडवानस में हमका माफी दै दो ...तो लो साब पेस है जे कबाड़ कबिता -

संवदिया आवो करें संवाद .
यह जग रैन बसेरा भैया कौन चलेगा लाद .
बे-मसरफ का होय रिया अब देखो वाद - विवाद .
चलती रहे दुकान रे भय्यन ना हो जिनिस बरबाद .
अच्छा बेलो - अच्छा खेलो छोड़ो मती मरजाद .
जग में चार दिनाँ का दाना फिर क्यों दंग -फसाद .
हम तो मू्ढ़ कुमति के मारे कर रै जे बकवाद .
कोमल बिरवा काव्य कला का डालो पानी गेरो खाद .
'सिद्ध कबाड़ी' कविता लिक्खे बहुत दिनन के बाद .
गर यह ठीकठाक -सी लागे तो राय देवो उस्ताद ।

( * यह पोस्ट कल रात ही लिखी गई थी और फोन पर 'कबाड़खाना' के मुखिया अशोक पांडे जी को सुना दी गई थी . तभी बिजली रानी का साम्राज्य ध्वस्त हो गया था . अब से कुछ देर पहले ही उनका राज पुन: कायम हुआ है सो अब हाजिर है - कबाड़ कबिता. जय लोया पिलाट्टिक )

5 comments:

Unknown said...

वो कविता की चेसिस है हेडलाइट यहां हैः

संवदिया आवो करें संवाद
फुन्सिन के मुंह चुचुक गए जब फूटा हुलसि मवाद।
संवदिया...........
(टेक वही, तर्ज मद्दम, जरा एक पत्ती बढ़के)

Ek ziddi dhun said...

ये कौन सा रस है?
जैसे कि तन्ना गुरू से पूछा गया था कि राग कौन सा है।

मुनीश ( munish ) said...

marhaba...marhaba ! mast mahol!

Rajesh Joshi said...

सधुक्कड़ी भाखा ... अहा क्या सुरगंध... जरा बमक के बोलो...सभी भक्तगन... बोलो सिद्धो बाबा की... जय !!!

अनूप शुक्ल said...

बहुत बढिया!