भाजपा जितना दोहरा चुकी है उससे अब उसे ज्यादा फ़ायदा नहीं. बद्री ने कहा था कि 'हिंस्र आत्माएं पहचान ली जाती हैं' हिंस्र आत्माएं शायद पहचान ली जाएँ! दो चरणों का मतदान तो हो चुका. वरना राजेश जोशी के मुहावरे में कहें तो अब अपने ही लोगों द्वारा मारे जायेंगे.
ये आडवानी जी कौन है? इन्हें जब जिन्ना पर दिए अपने बयान के चलते भाजपा के अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था तो भाजपा के तमाम शीर्ष लोग इनको प्रणाम तक नहीं करते थे. ये इनके पीएम उम्मीदवार है!
भाषा की शालीनता सचमुच बरकरार रखनी चाहिए. शायद मैं ज्यादा तल्ख़ हो गया था. मित्रो यह संपादित पोस्ट है.
2 comments:
सही कहा
क्या हम भाषा की शालीनता बनाए रख सकते हैं? टिप्पणी करने वालों की बजाए अगर पोस्ट लिखने वाले ही सही शब्द बरतने में फ़ेल हो रहे हों तो फिर कबाड़ख़ाने को कबाड़ख़ाना ही रसीद कर देना चाहिए.
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