Friday, April 24, 2009
शिनाख्त़ करो दिल्ली में
सात सितम्बर १९५३ को उत्तर प्रदेश के इटावा में जन्मे जसबीर चावला के पांच कविता संग्रह छप चुके हैं. प्रबन्ध शास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री ले चुके जसबीर चावला की कविताओं पर इलाहाबाद से निकलने वाली अनियतकालीन लघुपत्रिका 'कथ्यरूप' ने एक पुस्तिका प्रकाशित की थी - 'एक टुकड़ा बादल'.कवि केदारनाथ सिंह ने इस की भूमिका लिखी थी.वे लिखते हैं: "प्रस्तुत कविताओं के रचयिता की एक खासियत यह भी है कि वह हिन्दी काव्य-परम्परा को जानता तो है पर उस से किसी भी स्तर पर आक्रान्त नहीं होता."
जसबीर चावला की कविताओं का यह संकलन बहुत सजग व्यक्ति की कविताओं से भरपूर है - आसपास के संसार को देखने की पैनी निगाह से लैस. उनकी बहुत सी कविताएं मुझे पसन्द आईं. यहां प्रस्तुत कर रहा हूं इस पुस्तिका से एक कविता:
आजकल दिल्ली
कोई भी वस्तु लावारिस हो सकती है -
इस लिए शिनाख़्त करो -
जहां बैठो नीचे झांको
जहां खड़े हो ऊपर झांको
जहां चलो आस-पास झांको
नज़र रखो -
कुछ भी पड़ा हो सकता है वैसे ही
ट्रांज़िस्टर, टिफ़िन, डब्बा,
सुर्ती-डिबिया, माचिस
या और ऐसा ही कुछ
बेमतलब ... और लावारिस
ख़तरनाक बम हो सकता है
आदमी न छुए
बस पहचान कर ले
रिपोर्ट कर दे अपना शुबहा
जिप्सी को
ईनाम जीत ले
पुलिस को तलाश है
लावारिस वस्तुओं की
वे ख़तरनाक हो सकती हैं
राजधानी में
पुलिस सफ़ाया कर देगी
खौफ़ की बू
ख़तरनाक चीज़ें
जिनका कोई वारिस नहीं.
शिनाख़्त करो -
इसलिए चीखो -
"किसकी है यह कलम?"
""किसकी है यह दवात?"
पुकारो - "कौन है यह अधमरा बूढ़ा?
किसकी है यह पोटली?
कौन है मालिक इस लुढ़के मनई का?
बौआई भीड़ का?
हेरायी बछिया का? अकुलाई जनता का?
कौन है माई-बाप इस बच्चे का?"
ख़बरदार! मानव-बम हो सकता है!
(कविता व फ़ोटो: साभार 'कथ्यरूप')
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जसबीर चावला
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12 comments:
yes thats how it is ! terror is on a winning spree!
अशोक जी सक्रिय हैं यह जान और देख कर सुकून हासिल होता है.
अशोक जी की रचनाओं में दम है....आशा है कुछ और भी पढने को मिलेगी....
aur Jasbeer ji ko dekh kar?
(not meant for publishing)..ha..ha only yesterday there was a post saying how ppl comment without reading the matter.
MUNISH, FORGET IT DAHLING. JUST WAIT N WATCH. YOU WILL SEE A LOT. A LOT OFF BUGGERS ARE THERE.
AND WHERE IS THIS RESPECTED MODERATION? IS AFHOK JI HAS FORGOT HIS GUSSA?
Dear Brothers & Sisters of Blogerica,
Believe me, only 1 out of 15 is reading the content, especially literary, sincerely on blogs. This accusation is based on 'theory of diminishing span of attention', observation and shared experience. Blog can bring books to limelight, can inspire people to read ,but it can't replace them.
Munish
(for archival use only)
अशोक जी को श्रद्धांजलि! भगवान आप सब की आत्माओं को शान्ति देवे! जय जगत!
इस स्वस्थ सुंदर कंटेंट पर भी लोगों की निजी बेचैनियां उभर आती हैं, कमाल है!
Jai Jagat?...hick.. Jagat-Jeet distillery vale kya ?..hick... There used be a distillery by this name, no?..hick..hick.. arrey bhai koi hai kya? Brewery, distillery ,winery sabko aek hee tarajoo mein taula ja ra hai yahan to!
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