Monday, April 20, 2009

आइये आपको कू सेंग से मिलवाता हूँ !

(मैंने पिछले कुछ दिनों से अनुनाद में कू सेंग की कविताओं का एक सिलसिला शुरू किया है- आज उसे अपने इस प्यारे कबाड़खाने पर भी ला रहा हूँ।)

कवि का परिचय

कू-सेंग का जन्म सीओल में 1919 में हुआ और वहीं 11 मई 2004 में उनका देहान्त हुआ। उनके शैशवकाल में ही उनका परिवार देश के उत्तरपूर्वी शहर वॉनसेन में आकर बस गया, जहाँ वे बड़े हुए। उनका परिवार परम्परा से कैथोलिक आस्थाओं को मानने वाला था और उनका एक बड़ा भाई कैथोलिक पादरी भी बना। कू-सेंग ने जापान में उच्चशिक्षा पायी, जहाँ `धर्म के दर्शनशास्त्र´ की पढाई करते हुए उनकी आस्था कुछ समय के लिए डगमगाई भी लेकिन बाद में वे धीरे-धीरे अपनी पारिवारिक आस्थाओं की ओर लौट आए। कू-सेंग ने पढ़ाई के बाद कोरिया के उत्तरी हिस्से में अपनी वापसी के साथ ही पत्रकारिता और लेखन का पेशा अपना लिया। 1945 में आज़ादी के बाद अपनी कविताओं की पहली पुस्तक छपवाने के प्रयास में जब उनसे साम्यवादी मानदंडों के अधीन लिखने को कहा गया तो वे असहमति प्रकट करते हुए दक्षिण कोरिया चले गए। कू-सेंग ने कई वर्ष पत्रकारिता की और वे एक प्रतिष्ठित कोरियाई समाचार-पत्र के सम्पादक-मंडल भी रहे। जापान में अपने छात्र-जीवन के दौरान ही उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी। इसके बाद वे कोरियाई साहित्य के शिखर तक पहुंचे। इंटरनेट पर प्राप्त ब्यौरों के अनुसार दुनिया के कुछ चुनिन्दा कवि ही अपनी भाषा और समाज में इतनी लोकप्रियता अर्जित कर सके हैं, जितनी कू-सेंग ने अपने जीवन-काल में की। उनकी कविता पर कई साहित्यिक और दार्शनिक शोध भी हुए। इन सभी शोधकार्यों और अपार लोकप्रियता के बावजूद कोरियाई साहित्य-संसार इस बात को स्वीकारता है कि एक महान मानवतावादी कवि के रूप में कू-सेंग का सम्यक मूल्यांकन होना अभी बाक़ी है।
Wasteland of Fire, Christopher's River, Infant Splendor, Rivers and Field आदि उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं, जिनका अनुवाद अंग्रेज़ी, जर्मन, इतालवी और जापानी भाषाओं में हो चुका है।
-शिरीष कुमार मौर्य


मेरे दिल की आग

मेरे पास एक याद है
तब की
जब मैं पाँच या छह बरस का था

तीस के आसपास की एक जवान विधवा थी
जो मेरे ठीक पड़ोस वाले घर में किराए पर एक कमरा लेकर रहती थी
मेरे ख़याल से
कुछ दूर स्थित एक मठ के कपड़े धोने से
उसकी गुज़र-बसर होती थी
वह मठ को समर्पित एक धार्मिक स्त्री थी

काफी देर में पैदा होने
और बूढ़े अभिभावकों की छाया तले पलने-बढ़ने के कारण ही शायद
मैं उस जवान स्त्री से एक जुड़ाव महसूस करता था
और वह भी मुझे अच्छा मानती थी

मैं न सिर्फ उसके घर आया-जाया करता था
बल्कि कभी-कभार वहीं सो जाता था
मेरे अभिभावकों को भी इस पर कोई एतराज़ नहीं था

उस साल की शरद ऋतु में
वह आज जैसी ही दमकती चाँदनी थी और मैं खेलते-खेलते सो गया था
जबकि मेरी बगल में वह कपड़े धो-निचोड़ रही थी
मुझे पता ही नहीं चला
कि मेरे खेलने और उसके लगातार काम करते रहने के बीच
मुझे कब नींद आ गई!

आधी रात मेरी आँख खुली
और मैंने उसे वैसे ही कपड़ों की छप-छप के बीच पाया
मैंने अधखुली आंखों और नींद भरी आवाज़ में पूछा उससे -
`` क्या आप कभी सोयेंगी नहीं ? ´´
और पलट कर फिर सोते हुए
अपने पीछे से आती आवाज़ को कहते सुना -
`` क्यों नहीं?
लेकिन जब मेरे दिल की आग बुझ जाएगी तब! ´´

निश्चित रूप से
उस उम्र में मुझे कोई अन्दाज़ा नहीं था
कि उसके दिल में कैसी आग हो सकती थी
या कैसे बुझाया जा सकता था उसे
लेकिन इन शब्दों ने मेरे मन के एक कोने में
डेरा डाल लिया
और अब ये प्रकट हो रहे हैं जस के तस
जबकि कई बरस बाद मैं भी लेटा हूँ
सो पाने में असमर्थ
इस भरपूर चाँदनी भरी रात में।


1 comment:

Ashok Pande said...

अच्छा है कू सेंग का सिलसिला भाई! उत्तम अनुवाद.