पिछली एक पोस्ट पर आई अशालीन टिप्पणियों ने भीतर तक आहत किया है. बात-विषय-मुद्दा कुछ होता है, भाई (किंवा बहन) लोग कुछ और चालू कर देते हैं. आपकी बातें जायज़ हों तो भी ज़बान की तहज़ीब एक बात होती है. आप को किसी से पर्सनल खुन्दक है तो उस से निबटिये और जितना गालीज्ञान आपने अर्जित किया हो उसे उसी के सामने प्रदर्शित कीजिये. सार्वजनिक विष्ठा-विसर्जन का मैदान नहीं है हमारा यह कबाड़ख़ाना.
मैं इस ब्लॉग पर न चाहते हुए भी आज से कमेन्ट मॉडरेशन शुरू कर रहा हूं. मैं नहीं चाहता इतने लम्बे समय की मेहनत कुछ कुंठित कमेन्ट्स के कारण भुस हो जाए, क्योंकि न तो मेरी खाल गैंडे की है न ही मुझे कभी कभी आने वाले दुर्लभ गुस्से पर काबू रहता है. आशा है कबाड़ख़ाने के पाठक मेरी बात समझेंगे.
15 comments:
सही समय पर लिया गया एक बिलकुल सही फैसला. कबाड़खाने का सदस्य होने के नाते मैं भी पिछले कुछ समय से चाह रहा था कि हम इस बारे में कोई ठोस क़दम उठाएं. हमारे ब्लॉग की गरिमा हमारे लिए सर्वोपरि है और कबाड़खाना की ब्लॉगजगत में क्या हैसियत है, इसे कौन नहीं जानता ! आपके इस निर्णय का मैं स्वागत करता हूँ.
उन्हें अपने घर में संडास बनवा लेना चाहिए ।
आपसे सहमत। आपका ब्लाग अब इतना परिपक्व हो चुका है कि टिप्पणियों पर मॉडरेशन होकर भी प्रशंसक टिपियायेंगे जरूर! लिखते रहिये, "हम आपके साथ हैं"!
'कबाड़खाना' अब तक टैप्पणिक गन्दगी से बचा हुआ था और आगे भी इसे बचाए रखना है.
इस 'नीलूफर' नामक बेनामी ने जिस तरह पंकज जी का उपनाम बिगाड़ कर लिखा है उसी तरह 'आज़ाद लब' में काला धन और आडवाणी वाली मेरी पोस्ट पर मेरा उपनाम दो-दो बार बिगाड़ कर 'रवि सिंह' के नाम से लिखा गया था. मैंने उसके स्तर को लोगों के सामने जाहिर करने के लिए वह टिप्पणियाँ प्रकाशित भी कर दी थीं. अब भी वे टिप्पणियाँ वहां मौजूद हैं. हो न हो ये दोनों एक ही बेनामी हैं.
ब्लॉग करते इतना समय हो गया लेकिन अफसोस की बात है कि बेनामियों का ठीक-ठीक पता लगाने की कोई तकनीक नहीं है लोगों के पास?
बहरहाल, अरण्यरोदन का कोई फ़ायदा नहीं है. मोडरेटर सक्रिय करके आपने समझदारी भरा क़दम उठाया है.
आप अपने दुर्लभ गुस्से को बचाये रखिये कभी अच्छे काम आयेगा।गलत-सलत लोगों पर इतनी किमती चीज़ खराब करना अच्छी बात नही है।हमने तो पहले ही वो काम कर लिया जो आप आज़ करने जा रहे है,यानी माडरेशन का।
अशालीन टिप्पणीकारों के लिए शिरीष कुमार मौर्य द्वारा अनुवाद की हुई कू सेंग की एक कविता उनके ब्लॉग अनुनाद से साभार.
शर्म
मुझे हैरत होगी
अगर आप इतना भी याद नहीं कर पाए
कि शर्म क्या चीज़ है?
कुछ ऐसा
जिसे आपने पहली बार तब महसूस किया था
जब आपने चीज़ों को
जानना शुरू किया था
तब
जब आपने तोड़ दिया था
वही गुलदान
जिसे छूने को माँ ने सख़्ती से मना किया था
उस दिन की तरह
जब आदम और हव्वा ने स्वर्ग के बगीचे में
निषिद्ध फल को तोडने और खाने के बाद
ढंका था अपनी नग्नता को
अंजीर की पत्तियों से
ग़लती करने पर वह क्या है
जिसे मनुष्य सबसे पहले महसूस करते हैं
मानवीय चेतना का एक संकेत
एक सगुन
उसकी मुक्ति का
लेकिन
आजकल मेरे बच्चों
आप ग़लती करने पर भी
कोई शर्म महसूस नहीं करते !
यह संकेत है
कि लकवा मार गया है आपकी
चेतना को
एक असगुन
जो बताता है कि आप जा रहे हैं
दरअसल
तबाही की तरफ़!
GHALIB BURA NA MAAN GAR KOI BURA KAHE
AISA BHI KOI HAI, SAB ACHCHHA KAHEN JISE
-----PANKAJ CHATURVEDI
kanpur
अशोकजी, यह बेहतर है कि आप कमेंट मॉडरेट करें। मुझे लगता है कबाड़खाना पर असहमति के सम्मान के लिए जगह है लेकिन व्यक्तिगत कुंठा और गंदगी के लिए कतई नहीं। कबाड़खाना के सभी साथी और चाहने वाले इससे दुःखी हैं। मैं कबाड़ी होने के नाते यह अनुरोध करना चाहूंगा कि इस बेहतरीन ब्लॉग को इस तरह की गंदगी से दूर रखें।
काश कि इन बेनामी टिप्पणीकारों की खोजबीन करके इनकी सार्वजनिक लानत-मलामत की जाती। खैर कबाड़खाने को ठीक रखने के लिए आपका गुस्सा और निर्णय जायज है।
कई बार ना चाहते हुये भी कठिन निर्णय लेने ही पडते है . सही कदम .
Apne bahut sahi nirnay liya hai...
a very wise and timely decision ! I respect ur decision. It is need of the hour.
गुरू कुछ गलतफहमी हो गई लगता है. क्योंकि ये महाशय या मोहतरमा जो निलोफर नाम से लिखते/लिखती हैं, लगती समझदार हैं. मैंने तुम्हारी पोस्ट पढ़ने के बाद पिछली टिप्पणियाँ पढ़ीं. उसके बाद निलोफर के ब्लाग पर गया और उनके विचार पढ़े. फिर वो भी पढ़ा जिसमें उन्होंने क्रौंच वध आदि का ज़िक्र किया था. फिर पंकज की टिप्पणी पढी. नतीजा ये निकाला कि भाषा को बरतने में भले ही निलोफर से ग़लती हुई हो -- वाकचातुर्य लेखकीय चमत्कार में न बदल पाया -- मगर उनकी मंशा में खोट नहीं रहा होगा. पंकज ने उनकी टिप्पणी को तंज़ समझा और हाथ जोड़ लिए. पलट के निलोफर ने भी जो न कहना था, कह दिया. कुल मिलाकर ये कि बतंगड़ बन गया.
हो सकता है मेरा ये अनुमान गलत हो पर निलोफर के ब्लाग पर जब किसी ने न्यायाधीश बनने की कोशिश की तो निलोफर ने ये लिखा. आप भी पढ़िए.
Blogger नीलोफर said...
मि. एनानिमस।
ये तुम हो जो हत्यारे से भी बदतर जेबकतरे की तरह छिपते फिर रहे हो। अपने पर यकीन नहीं है और झंडाबरदारी का स्वांग करते फिर रहे हो।
ब्लाग विचारों की दुनिया है इसमें हर एक को शिरकत का उतना ही अधिकार है, जितना तुम्हें।
आइंदा इधर तशरीफ न लाएं। शुक्रगुजार रहूंगी।
वैसे सच मानिए तो कबाड़खाने को देखभाल की जरूरत ज्यादा पड़ती है. तो आपने ठीक ही किया है. साफ़ सफाई न हुई तो बीमारी बढेगी. :)
ठीक ही है, नहीं तो ये कुंठित लोग जब-तब यहां गंदगी कर जाएंगे।
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