Saturday, April 11, 2009

मार्लो की एक कविता - सय्यद अली हामिद


कुमायूं विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के विभागाध्यक्ष तथा इस समय सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोडा में कार्यरत हामिद सर एक अद्भुत अध्यापक होने के साथ-साथ विलक्षण अनुवादक तथा कवि भी हैं। उन्होंने उर्दू कवियों के अंग्रेज़ी अनुवाद किए हैं, जो अकादमिक रूप से अत्यन्त मूल्यवान माने जाते हैं। इधर उन्होंने ब्लॉगजगत में अपनी शानदार आमद दर्ज़ की है। कबाड़खाना परिवार इस आभासी दुनिया में बहुत आदर के साथ उन्हें ख़ुशआमदीद कहता है। यहाँ प्रस्तुत है उनके ब्लॉग की नवीनतम प्रविष्टि !

मार्लो की कविता का अनुवाद

आओ रहो मेरे साथ
मेरी महबूबा बनके
और हम वो सारी खुशियाँ आज़माएँगे
जो पहाड़ों, वादियों, खेतो
और खड़ी चट्टानों से
मिल सकती है
हम सुक़ून से एक पत्थर पर बैंठे
देखा करेंगे करेंगे चरवाहों को
अपने मवेशियों को चराते हुए
छिछली नदियों के किनारे
जहाँ झरनों के साथ
सुर मिला कर परिंदे
प्यार के नग्मे सुनाते हैं !

मूल कविता

Come live with me and be my love
And we will all the pleasures prove
That hills and valleys,dale and field
And all the craggy mountains yield.
There we will sit upon the rocks
And see the shepherds feed their flocks,
By shallow rivers, to whose falls
Melodious birds sing madrigals.

7 comments:

Ek ziddi dhun said...

आओ रहो मेरे साथ...wakai khushamdeed

निर्मला कपिला said...

laazvab kavita hai saiyad ji ko badhai

आशीष कुमार 'अंशु' said...

सुन्दर कविता के लिए आभार ...

संध्या आर्य said...

जहाँ झरनों के साथ
सुर मिला कर परिंदे
प्यार के नगमे सुनते हैं !

वाकई पुरी तरह से मन को प्यार की एहसास से भींगा देती है ऐसा लगता है कि प्रकृती के आँचल पर लिखी हुई एक नज्म है जिसमे सिर्फ खुबसुरती है और कुछ नही.............

Himanshu Pandey said...

इस प्रस्तुति के बहाने एक अच्छे नये ब्लॉग का परिचय मिला । धन्यवाद ।

रागिनी said...

सुंदर कविता.

मुनीश ( munish ) said...

Thanx for a lovely poem Sir !thanx fo' lettin' me overcome d' guilt of third peg sir !