Thursday, May 28, 2009

इकलौती राज़दार तुम्हारे प्रेम की



रुड़की में रहने वाले पेशे से वैज्ञानिक यादवेन्द्र पांडे ने इधर अरब-जगत की कुछ समकालीन कवयित्रियों के शानदार अनुवाद किये हैं. कुछ दिन पूर्व वे व्यक्तिगत रूप से मुझे ख़ास कबाड़ख़ाने के पाठकों के वास्ते ईरानी कवयित्री फ़रीदे हसनज़ादे मोस्ताफ़ावी की कुछ कविताओं के अनुवाद दे गए थे.

आज उन में से एक कविता यहां लगा रहा हूं. बाकी की कविताएओं और फ़रीदे हसनज़ादे मोस्ताफ़ावी पर एक टिप्पणी समेत एक लम्बी पोस्ट आपको कल पढ़ने को मिलेगी.



इकलौती राज़दार

बात तुम्हारे प्रेमपत्रों के पुलिन्दे की नहीं है
जो सुरक्षित हैं स्मृतियों की मेरी तिज़ोरी में

न ही फूलों और फलों से भरे हुए थैलों की है
जिन्हें घर लौटते शाम को लेकर आते हो तुम

उस चौबीस कैरेट सोने के ब्रेसलेट की भी नहीं
जो शादी की सालगिरह पर भेंट दिया था तुमने

तुम्हारे प्रेम की इकलौती राज़दार है
प्लास्टिक की वह बदरंग कूड़ेभरी बाल्टी

जिसे चौथी मंज़िल से एक एक सीढ़ी उतरते हर रात बिला नागा
मेरे थके अलसाए हाथों से परे हटाते हुए बाहर लिए जाते हो तुम.

(अनुवाद श्री यादवेन्द्र पांडे का है)

4 comments:

Anonymous said...

अच्‍छा अनुवाद, अच्‍छी कविता। लंबी पोस्‍ट की उत्‍सुकता के साथ...इंतजारमग्‍न...

मीनाक्षी said...

मर्म को छू जाने वाली कविता...जितना करीब से आम ईरानी के जीवन को जाना है.. यह कविता सच में दिल को छू जाने वाली है.. एक बात और... (अरब जगत से जोड़ने पर ईरानी मित्र खफ़ा हो जाते है... )

हरकीरत ' हीर' said...

तुम्हारे प्रेम की इकलौती राज़दार है
प्लास्टिक की वह बदरंग कूड़ेभरी बाल्टी

जिसे चौथी मंज़िल से एक एक सीढ़ी उतरते हर रात बिला नागा
मेरे थके अलसाए हाथों से परे हटाते हुए बाहर लिए जाते हो तुम.


बहुत खूब.....!!
ईरानी कवयित्री फ़रीदे हसनज़ादे मोस्ताफ़ावी को मेरा मेरा नमन इतनी सुंदर कविता के लिए ....और यादवेन्द्र जी का शुक्रिया जिन्होंने इतना बढिया अनुवाद कर इस कविता को हम तक पहुँचाया ....!!

लोकेन्द्र बनकोटी said...

Waah hai Ji! Meri baat pehle hi Harkiratji ne keh daali hai. Waah!