Monday, May 11, 2009

ये कहीं और सुनने को न मिलेंगे


कल अचानक बादलों को घिरते देखा। हालाँकि बारिश अभी दूर है लेकिन मैं जब भी पानी से भरे बादलों को देखता हूँ तो उस पिता की याद आती है जो अभी-अभी अपनी लाड़ली बेटी को विदा करके अपने सूने हो चुके घर के एक वीरान से कोने में अकेला खड़ा है।
यह पिता एक बार फिर अपनी बेटी के लिए एक हाथी या एक घोड़ा बनना चाहता है जिस पर बैठकर उसकी बेटी सवारी कर सके। उस बादल को जरा गौर से देखिए, जो अब आपके छज्जे को छूकर निकलने वाला है। वह अपनी बेटी की याद में ही हाथी और घोड़ा बनने की कोशिश कर रहा है। ध्यान से सुनिए, यह गड़गड़ाहट की आवाज नहीं है, उस बादल की आत्मा में अपनी बेटी के साथ बिताए बचपन के दिन उमड़-घुमड़ रहे हैं।
और यह बादल जो थोड़ा सी हेकड़ी में, दौड़ लगा रहा है, छोटा भाई है। इसकी चाल पर न जाइएगा। यह बादल हलका लग सकता है लेकिन अंदर से यह भी भरा हुआ है। इसकी बहन ने छह साल तक इसकी चोटी की है। अभी तो यह दौड़ रहा है लेकिन रात में जब थक जाएगा, तब घर के पिछवाड़े या किसी पेड़ की ओट में जाकर बिना आवाज किए सुबकेगा।
और एक दुबला-पतला बादल जो कुछ कुछ उदास-सा यूँ ही इधर-उधर टहल रहा है, विदा हो चुकी बहन की छोटी बहन है। यह हमेशा दो चोटियाँ करती थी और बड़ी बहन हमेशा उसे डाँटती हुई कहती थी-एक करा कर। मुझे गूँथने में आलस आती है। इस बादल को देखेंगे तो लगेगा इसके चलने में न सुनाई देने वाली हिचकियाँ हैं। इन्हीं हिचकियों के कारण इसमें भरे पानी का अंदाजा लगा सकते हैं।
और सबसे आखिर में जो साँवला बादल है वह माँ का आँचल है। उसका आँचल कभी न कहे जा सकने वाले दुःख से भारी हो गया है। अभी भी वह अपनी बेटी की यादों में खोया है जिसमें सुख-दुःख की बातें हैं, उलाहना है, प्रेम में काँपता, सिर पर रखा हुआ हाथ है। यह बादल जब भी बरसेगा, इसे बरसता देख बाकी बादल भी बरसेंगे। अपने को कोई भी नहीं रोक पाएगा। सब बरसेंगे।
और ये बरसेंगे तो चारों तरफ जीवन के गीत गूँजेंगे। थोड़ा-सा वक्त निकालकर इन्हें सुनना। ये कहीं और सुनने को न मिलेंगे।

9 comments:

Ek ziddi dhun said...

udas meethee dhun.


...aur ye baat yun hi ki...
maa ka anchal dukh se bharee hai...ka gaan hindi-urdu kavita ki prampra ban gaya hai.

Ashok Pande said...

इस सब के बाद और क्या कहा जा सकता है! बहुत संवेदनशील - सिग्नेचर रवीन्द्र व्यास. शुक्रिया!

काफ़्का वाली ब्लैक-व्हाइट पेन्टिंग्ज़ रवीन्द्र भाई?

ravindra vyas said...

kafka per meri paintings bahut jald. sabsr pahle kabaadkhaana per!ashok bhai! bas thoda intazaar!!
shukriya dhireshji!

अनिल कान्त said...

पेंटिंग के साथ साथ शब्द भी दिल में उतर गए

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

पारुल "पुखराज" said...

एक और बदली थी जो भरी भरी ही चली गयी ....... जिसका आसमान छूट गया था

कंचन सिंह चौहान said...

vaquai painting aur rachana dono khoobsurat

aur savh hai ye kahi aur sunane ko nahi milenge.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

एक पूरी कविता हो गयी है रवीन्द्र भाई. बधाई!

Unknown said...

रवीन्द्र जी आपकी याद वाकई कमाल की है. सभी इसमें डूब गए. लेकिन कुछ चुभ सा रहा था. ऐसा क्यों है कि लड़की को ही घर बदलना पड़ता है और उसके दूसरे घर जाने पर ही जीवन के गीत गूंजा करते हैं? सच ऐसा संगीत कहीं और सुनने को नहीं मिलेगा!

सिद्धान्त said...

bahut hi accha aur bahut hi samvedansheel chitran hai. baadal ka ajeeb aakaar aur bhi sundar hota hai. bahut badhiya. dhanyavaad. bhavishya ke liye shubhkaamnaayen.

ssiddhant mohan tiwary
Varanasi.