Wednesday, July 29, 2009

बारिश के बाद : स्वर वर्षा

आज अभी
दो दिनों की बारिश के बाद मन बदराया है
कितनी लम्बी तपन के बाद यह
यह सुशीतल समय समीप आया है .
हर ओर हाजिर है हरापन है भरपूर
सचमुच का हरा और सुंदर

वनस्पतियों ने बुझाई है अपनी प्यास
धुले - नर्म - नीले दिख रहे हैं पहाड़
जिन पर बिखरी है अधमुँदे सूर्य की आभा
चहुँदिस फैला है जादुई उजास
आज का यह दिन विशिष्ट
सचमुच खास
क्या यही है सावन है
कवियों - गवैयों - कलाकारों का प्रिय चौमास ?

मैं क्या जानूँ
मुझे क्या पता
मेरे सामने बरसते हुए बादल हैं
और इर्दगिर्द शब्द - स्वर - सौन्दर्य की रसधार !



जा बैरी जा बदरा / ठुमरी मिश्र भैरवी
स्वर : शोभा गुर्टू
अलबम :पापी जिया नहीं माने
तबला :उस्ताद निजामुदीन खान
सारंगी : लियाक़त अली खान
हारमोनियम :पी. वलवलकर

3 comments:

पारुल "पुखराज" said...

और इर्दगिर्द शब्द - स्वर - सौन्दर्य की रसधार !banii rahe....thumri ke liye aabhaar

मुनीश ( munish ) said...

The appreciation of this music needs refined tastes , but it sounds feudalistic by nature .

sanjay vyas said...

बारिश, चौमास का शब्द चित्र परिवेश को हरिताभ बना देता है, उस पर संगीत का ये ' मैचिंग' पीस हमारी तबीयतपसंदी के मिज़ाज को भी सहला देता है.