Friday, July 10, 2009

आपको कैसा लगा ?



(फ़ोटो और समाचार अमर उजाला, ६ जुलाई २००९ से साभार)

"और अंत में प्रार्थना" (जिसके नाट्य रूपांतर के मंचन पर कई शहरों में सांप्रदायिक तत्वों ने हमले किए) लिखने वाले मेरे प्रिय कथाकार (आज शाम तक) एवं कबाड़ी उदय प्रकाश ने पांच जुलाई को गोरखपुर में गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी, भाजपा सांसद योगी आदित्य नाथ के हाथों पहला 'नरेंद्र स्मृति सम्मान' साभार प्राप्त किया। रकम कितनी थी, पता नहीं। डा. कुंवर नरे्द्र प्रताप सिंह जिनका कुछ समय पहले निधन हो गया, योगी के संरक्षकत्व में चलने वाले दिग्विजय नाथ पीजी कालेज के प्रिंसिपल और गोरक्षनाथ पीठ के सलाहकार थे।

भाजपा सांसद योगी को आप जानते ही होगे। वरूण गांधी के उदय के पहले उन्हें पूरब का प्रकाश और नरेंद्र मोदी कहा जाता था और एक नारा "गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है", वे क्या हैं इसकी बानगी देता है।

इस समारोह में हिंदी के एक और प्रतिष्ठित साहित्यकार परमानंद श्रीवास्तव भी सुशोभित थे। जो उदय प्रकाश ने अब किया वह परमानंद बहुत पहले कर चुके हैं। कोई चार-पांच साल पहले राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख नेता एवं गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ ने गोरखपुर के नवरत्नों का सम्मान किया था, तब स्थानीय कलक्टर के साथ परमानंद भी सम्मानित ही नही हुए थे उन्होंने महंत की चरण रज माथे से लगाकर अपना आभार ज्ञापन भी किया था।

उदय प्रकाश ने अपने भाषण में कहा कि नरेंद्र प्रताप सिंह कभी वैचारिकता से विचलित नहीं हुए और शिक्षा से प्यार के कारण उन्होने डिप्टी कलक्टरी की नौकरी तक छोड़ दी। छोड़ने के बाद लिखा भी- मुझसे डिप्टी गिरी नही होगी। अपनी खपरैल कहां कम है। अगले दिन नरेंद्र प्रताप सिंह के बेटे को गोरखपुर के प्रेमचंद पुस्तकालय में अपने प्रशंसकों से यह कहते हुए मिलवाया कि इनसे मिलिए ये मेरे भतीजे कुंवर सामंत राज सिंह हैं।

भाजपा सांसद योगी ने कहा कुंवर नरेंद्र प्रताप सिंह ने कालेज प्रिंसिपल एवं गोरक्षपीठ के सलाहकार के रूप में जो योगदान दिया वह अविस्मरणीय है।

मुझे पता नहीं क्यों उनकी एक कहानी दद्दू तिवारी-गणनाधिकारी की कनक्लूडिंग लाइनें याद आ रही हैं-

सुबह जब वे नाके की ओर अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे तो गली में खेलते दो-तीन बच्चों ने उन्हें देखकर जोर से नारा लगाया-

दद्दू तिवारी
गन्ना धिकारी
मारा कसके
है पटवारी.....
और भाग गए।

दद्दू तिवारी के पैरों को कोई वजनी चीज खींच रही थी और एक अथाह सन्नाटा उनके कान में बजने लगा था।

आपको कैसा लगा बताइएगा।

(पोस्ट पर आई पंकज श्रीवास्तव की टिप्पनी में सन्दर्भित इकॉनॉमिक टाइम्स वाले लेख का लिंक : English in postcolonial India is a language of liberation and modernity)

12 comments:

मुनीश ( munish ) said...

Life is but a series of disillusionments .Since u were his fan , i express my un-conditional Grief at this loss.
On a personal note ,however, nobody disappoints me anymore since i have shed this habit of having expectations . Icons fall , images shatter and love betrayed. Life is like this only so move on dear Anil .May God bless Uday as well as they say ...''kuchh to majbooriyan rahin hongi........'' etc.

pankaj srivastava said...

अनिल भाई, इस मामले में आप मुझसे पिछड़ गए। उदय में प्रकाश के अंत होने का पता मुझे कई महीने पहले चल गया था। विश्वास न हो तो उनके ब्लाग पर जाइए और उस लेख पर गौर फरमाइये जो उन्होंने इकोनामिक टाइम्स में लिखा था। इस लेख के अंत में नारा था-अंग्रेजी लाओ देश बचाओ।
दूसरों की तरह मैं भी चौंका था। उनके ब्लाग पर उनसे विवाद की कोशिश भी की थी, लेकिन दो टिप्पणियों के बाद ही उन्होंने कह दिया कि उनके पास फुर्सत नहीं।
हिंदी के एक बड़े लेखक की अपनी भाषा के प्रति हिकारत के मसले पर मैंने तमाम स्वनामधन्यों से बात की। लेकिन सबने यही कहकर मामले को टाल दिया कि उदय प्रकाश चर्चा में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
लेकिन योगी के हाथों पुरस्कृत होने के पीछे क्या सिर्फ शोहरत की चाह है। उदय प्रकाश इतने भी गुमनाम नहीं। वे क्राफ्ट के मास्टर माने जाते हैं। और मुझे लगता है कि वे कहानियों की तरह जीवन में भी कुछ चौंकाने वाले प्रसंग डालना चाहते हैं ताकि अगर आत्मकथा लिखें तो पाठकों को रस मिलता रहे। आखिर उसका विदेशी भाषाओं में अऩुवाद भी तो होगा। उनके ब्लाग को देखकर आप समझ सकते हैं कि उनमें विदेशी लेखकों जैसा बनने-दिखने की कितनी चाह है। उनकी कोई किताब किस भाषा में आ रही है, इसकी सूचना देने के लिए बेकरार रहते हैं।
इधर, वे दलित विमर्श में मुब्तला थे। ऐसा लगता था कि डा.अंबेडकर के बाद उदय प्रकाश ही इस विमर्श के सबसे बड़े पुरोधा हैं। वर्णव्यवस्था पर उनकी टिप्पणियां काबिले गौर हैं। और सुना है कि दलित समाज भी उनपर रीझा हुआ है। महाराष्ट्र के किसी जिले में उनका अभिनंदन अभी हाल में ही हुआ है।
लेकिन योगी आदित्यनाथ के हाथों पुरस्कृत होने की दावत मिलते ही उन्हें याद आ गया होगा कि वे एक पूर्व रियासत के चश्म-ओ-चिराग भी हैं। खुद को राणा प्रताप के वंशज होने का दावा करने वालों एका तो होना ही चाहिए। वैसे भी गोरखपुर की गोरक्षपीठ इन्हीं वंशजों ध्वजावाहक है।
अब ये सवाल मत करिए कि जिस फायरब्रांड हिंदुत्व के डंडे से योगी पूर्वांचल को हांकने में जुटे हैं उसका सबसे बड़ा एजेंडा वर्णव्यवस्था के प्राचीन गौरव को ही स्थापित करना है। फिर उदय के दलित विमर्श का क्या होगा। ये बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं। आप कहां समझेंगे जो विचार का अचार आज भी रोज खाते हैं।
कभी उदय प्रकाश ने लिखा था कि आदमी मरने के बाद कुछ नहीं सोचता/आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता/कुछ नहीं सोचने, और बोलने से आदमी मर जाता है...
तो खबर ये है कि खून सने हाथों से इनाम लेना मंजूर करने वाले उदय प्रकाश ने सोचना छोड़ दिया है। बाकी आप खुद समझदार हैं।
उनकी स्मृति को प्रणाम।

Ashok Pande said...

चेतना को शिथिल कर देने वाली पोस्ट.

Rangnath Singh said...

अनिल जी
सर्वप्रथम इस पोस्ट के लिए गहरा आभार।
उदय के अस्त होने से हम सब को गहरा दुख है। पूत के पाँव पालने में ही दिखने लगे थे। मुझे तो सबसे गहरा धक्का उस दिन लगा था जब उदय प्रकाश ने इटली में सोनिया गाँधी के घर को ऊँगलियों को छुुआ था। समूचे गाँधी परिवार की प्रशस्ति लिखने के बाद उदय प्रकाश ने अपनी उस पोस्ट के नीचे बहुत ढिठाई से लिखा था कि क्योंकि मैं एक राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूँ इसलिए मेरी टिप्पणी का राजनीतिक पाठ न किया जाए !!
हमेशा हाशिए पर धकेले जाने की बात करने वाले उदय प्रकाश कोे हाशिए से केन्द्र तक के इस सफर की बधाई !!

Rangnath Singh said...

अनिल जी
आप के पास सुविधा है तो कल के अखबारों की शोभा बने जरदारी के बयान को भी इसी तरह पोस्ट कर दें। जिससे हृदय परिवर्तन का यह कन्ट्रास्ट और मजेदार दिखे। एक तरफ उदय प्रकाश का दूसरे बाजू जरदारी का।

Rangnath Singh said...

पंकज भाई
उदय प्रकाश का इकाॅनमिक्स टाइम्स में छपा लेख पढ़वाने के लिए धन्यवाद। आप दोनों का संवाद भी देखा। उसे पढ़कर मुझे एक दोहा याद आ रहा है, आप को सुनाए देता हूँ-

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर

Unknown said...

भाइयो,
बडे करें सो लीला!
छोटे करें सो पाप।
कल को इन कृत्यों की भी कोई बड़ी दार्शनिक व्याख्या पढने को मिले तो अचम्भा मत करना।

pankaj srivastava said...

उदय प्रकाश के इस नए योगासन के बाद उन्हें कबाड़खाना से तुरंत खारिज किया जाना चाहिए। कृपया अशोक पांडेय हल्द्वानीवाले इस मांग पर विचार करें।

Rajesh Joshi said...

और मैं राजेश जोशी गवाही देता हूँ कि कई साल पहले इन्हीं उदय प्रकाश ने ग़ाज़ियाबाद में सफ़दर हाशमी के साथ मारे गए मज़दूर रामबहादुर के बारे में ख़बर लिखने के लिए मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आदमी कहा था. उनके दस्तख़त वाला बयान आज भी मेरे निजी कबाड़ख़ाने में कही पड़ा होगा. तब उदय प्रकाश ख़ुद को व्लादिमिर इल्यीच उल्यानोव का भारतीय अवतार समझते थे. अब ख़ुद जीभ लपलपाते हत्यारों के हाथों पुरस्कार प्राप्त करने में ख़ुश हैं. ख़ुश रहो आर्यवीर !!

रवि कुमार, रावतभाटा said...

भगवान? उनकी आत्मा? को शान्ति दे...

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

मुझे तो इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं लगा. लेकिन पतन का दस्तावेज इसी तरह बनते रहना चाहिए ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये.

अजित वडनेरकर said...

हे गाफिल अजित वडनेरकर, किस दुनिया में रहता है तू...अपने आस-पास की कुछ तो खबर रख। कुंवर जैसे संबोधनों का महिमागान अब भी है बाकी।
कबाड़ियों, जियो।

उदयजी, इस पोस्ट में ऐसा कुछ नहीं है जिस पर लाल-पीला हुआ जाए। आपको ऐसा नहीं लगता कि किन्हीं नतीजों पर पहुंचने और टिप्पणी करने में कुछ जल्दबाजी हो गई है? आप से शालीन और स्थिरता वाले जवाब की अपेक्षा थी। कहीं भी आपको जानबूझकर छेड़ा या उधेड़ा जा रहा है, ऐसा मुझे तो नहीं लगा।
पर क्या कहूं, हो सकता है आप सच कह रहे हों? मैं ही मूर्ख हूं। कुछ भी नहीं जानता। न राजनीति, न पासपड़ोस, न साहित्यिक जमात, न चुटकुले। कुछ भी नहीं जानता। लानत है मुझ पर। मनुष्यनुमा पत्रकार होने के नाते सब पता रहना चाहिए मुझे। पर ...