Friday, July 10, 2009

हमारी हिंदी

हमारी हिंदी
रघुवीर सहाय की कविता

हमारी हिंदी एक दुहाजू की नयी बीबी है
बहुत बोलनेवाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली

गहने मढ़ाते जाओ
सर पर चढ़ाते जाओ

वह मुटाती जाये
पसीने से गन्धाती जाये घर का माल मैके पहुंचाती जाये

पड़ोसिनों से जले
कचरा फेंकने को लेकर लड़े

घर से तो खैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता
औरतों को जो चाहिए घर ही में है

एक महाभारत है एक रामायण है तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी
एक नागिन की स्टोरी बमय गाने
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
एक खूसट महरिन है जिसके प्राण अकच्छ किये जा सकें
एक गुचकुलिया-सा आंगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक
बिस्तरों पर चीकट तकिये कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
फर्श पर ढंनगते गिलास
खूंटियों पर कुचैली चादरें जो कुएं पर ले जाकर फींची जायेंगी

घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
सीलन भी और अंदर की कोठरी में पांच सेर सोना भी
और संतान भी जिसका जिगर बढ़ गया है
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
और जमीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा

कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे।

12 comments:

तीसरी आंख said...

बढ़िया रचना

अनामदास said...

हिंदी और हिंदीवालों का समाज दोनों एक साथ मिलकर कैसे गंधा रहे हैं, चमत्कारी कविता है जिसमें दोनों एकसार हो जाते हैं।

मुनीश ( munish ) said...

Well, who was that gentleman? Plato or Socrates? Plato has more chances i suppose. The one who says lovers, lunatics and poets should have no place in an ideal State. Now look at this poem , the language through which we earn our daily bread does not deserve this filthy imagery. I adore Hindi yaar!

मुकेश कुमार तिवारी said...

रघुवीर जी,

हिन्दी की व्यथा को सटीक ढंग से उभारती हुई कविता पसंद आयी और कहने का साहस भी।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

प्रीतीश बारहठ said...

pata nahi is kavita me striyon ke prati karuna hai ya unka majak udaya gaya hai. hindi bhasha par to ye sare visheshan aropit nahi hate hai. kya hindi eisi hai?

प्रीतीश बारहठ said...

Munish ji,

I love Hindi.
I love Poets.

kripaya kisi ek kavi ya kavita ke karan apne ap ko Plato ji nahi banayen. You can't imagin an ideal State without poets.

Please

मुनीश ( munish ) said...

O come on Pritish ! You know nothing about Hindi . Hindi needs to be respected ,to be adored ,to be cared for like a mother whereas English deserves to be loved like a mistress.I worship Hindi & love English! Any objections?

प्रीतीश बारहठ said...

No objection. but poets!

मुनीश ( munish ) said...

O they are first rate lunatics!

प्रेमलता पांडे said...

I respect munish-comment.

Hindi is our mother.

मुनीश ( munish ) said...

Thnx for appreciating my point of view ma'm!

प्रीतीश बारहठ said...

"Hindi needs to be respected ,to be adored ,to be cared for like a mother whereas English deserves to be loved like a mistress.I worship Hindi & love English"

आप बेहतरीन कवि हैं मुनीश जी।