Tuesday, August 4, 2009

लोर्ना डून की याद है किसी को?



आर. डी. ब्लैकमोर का उपन्यास 'लोर्ना डून' जीवन में पढ़ी गई पहली पूरी किताब बना था. मैं आठवीं में था. इसी किताब का एब्रिज्ड वर्ज़न मेरे पास पहले से था. नायिका के नाम में कुछ ऐसा सम्मोहन था कि जब पहली बार मैंने इस किताब को नैनीताल के आर. नारायण बुकस्टोर में देखा तो बिना दोबारा सोचे खरीद लिया. किताब की कीमत महीने की मेरी पूरी पॉकेटमनी से थोड़ा ही कम थी.

१८६९ में छ्पा यह टिपिकल ऐतिहासिक रोमान्स जॉन रिड नाम के एक युवा किसान की दास्तान है जो स्कॉटिश मूल के डून परिवार से लड़ता है. डून परिवार हत्यारों और अपराधियों से अटा होता है. अपनी लड़ाइयों के दौरान ही जॉन की मुलाकात लोर्ना डून से होती है जिसके सौन्दर्य और सादगी पर वह मर मिटता है. जाहिर है उनके बीच प्रेम पनपता है. थोड़े शब्दों में कहा जाए तो 'लोर्ना डून' मोहब्बत, हत्या, प्रतिशोध और निहायत अतिड्रामाई अन्त जैसे तत्वों से भरपूर एक क्लासिक है जैसा कि उस काल के अंग्रेज़ी उपन्यास हुआ करते थे.

मेरे लिए यह उपन्यास बहुत खास एक दूसरी वजह से भी है. उपन्यास का नायक ही कथावाचन का काम भी करता है. तो जॉन रिड स्वयं बताता है कि वह किस रोज़ पैदा हुआ था. इत्तफ़ाक़न ख़ाकसार भी उसी दिन पैदा हुआ था.

दरअसल दुछत्ती के पुराने सन्दूकों में कुछ खोजते हुए मुझे अपने बचपन की किताबों का अच्छा खासा संग्रह मिल गया जिसे वर्षों से मैं गुम हो गया मान रहा था. बाई द वे, लन्दन के कामगारों की विचित्र लेकिन कल्ट बन चुकी भाषा 'कॉक्नी' में लोर्ना डून का मतलब 'गुमशुदा' होता है.

पहला काम तो यह हुआ कि लोर्ना डून को आद्योपान्त पढ़ा गया. मुझे उम्मीद है आप में से कई लोगों ने इस किताब को देखा, पढ़ा होगा.

यह पोस्ट फ़क़त नॉस्टैल्जिया नामक असाध्य बीमारी को समर्पित है.



फ़ुटनोट्स:

१. 'लोर्ना डून' पर दस से ज़्यादा फ़िल्में और टीवी सीरीज़ बन चुके हैं.

२. इंग्लैंड के डल्वरटन में लोर्ना डून की प्रतिमा लगी हुई है, जिसे आप ऊपर देख सकते हैं.

३. बिस्कुट वगैरह बनाने वाली एक कम्पनी नेबिस्को के एक विशेष किस्म के बिस्कुटों के लोकप्रिय ब्रान्ड का नाम भी लोर्ना डून है. १९१२ से बनाए जा रहे इन बिस्कुटों के नामकरण के बारे में नेबिस्को के एक अधिकारी का बयान यूं है: "हमें सही सही तो नहीं मालूम कि यह नाम क्यों रखा गया लेकिन उन दिनों शॉर्टब्रैड बिस्किट्स को स्कॉटिश परम्परा से जोड़ कर देखा जाता था. और लोर्ना डून का नाम स्कॉटलैन्ड का प्रतिनिधित्व करता था."

9 comments:

Ek ziddi dhun said...

कुछ पोस्ट ऐसी होती हैं जो सिर्फ शीर्षक देखकर या उस पोस्ट का फोटू देखकर लगने लगता है कि ये अपने अशोक पांडे हैं. इस पोस्ट को देखकर एकदम ऐसा ही लगा और पोस्ट पढने से पहले अधीरता से देखा कि पोस्टेड बी हू...
ये फ़क़त नॉस्टैल्जिया नामक असाध्य बीमारी न हो तो कबाड़खाना नाम भी सार्थक न हो. लोर्ना डून की प्रतिमा का फोटू भी दिलकश है टेक्स्ट की तरह.

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

लोर्ना डून मेरी भी प्रिय किताब है, और शायद पहली पढ़ी हुई किताबों में से एक भी। बचपन में स्कूल की (सेंट फ्रांसिस कोलेज, लखनऊ) लाइब्रेरी से पढ़ी, जब मैं सातवीं-आठवीं में था। आधी समझ आई, आधी नहीं, तब अंग्रेजी का और दुनिया का भी, ज्ञान सीमित ही था। पर कहानी का रुख तो समझ में आया ही। आगे चलकर जब जब किसी पुस्तकालय में यह किताब मिली, लेकर पढ़ता रहा। कथा की नई-नई बातें समझ में आती गईं। अब तो इसका ईसंस्करण भी डाउनलोड कर लिया है (गुंटनबर्ग जिंदाबाद!) और जब तब इसे पढ़ता रहता हूं। अपनी बेटियों को इसे पढ़ाने को उकसाता रहता हूं, पर हैरी पोटर और नार्निया के रहते, 18वीं सदी का यह रोमांस उन्हें कैसे रास आएगा।

इस तरह के अंग्रेजी उपन्यासों की एक पूरी जमात है - वेनिटी फयर - थैकरे, वथरिंग हाइट्स - एमली ब्रोंटे, जेन आयर - चार्लेट ब्रोंटे, प्राइड एंड प्रिजुडिस - जेन आस्टिन, और चार्ल्स डिकेन्स के कई उपन्यास - डेविड कोपरफील्ड, ओलिवर ट्विस्ट, निकोलल निकलबाई, ग्रेट एक्सपेक्टेशेन्स, पिकविक पेपर्स आदि, आदि। इन पुस्तकों की दुनिया ही अलग है। ये सब बिजली और मोटरकार के आने से पहले के उपन्यास हैं और उनमें मोमबत्ती, घोड़ागाड़ी, घोड़े, तलवार (बंदूक नहीं) आदि के विवरण सचमुच नोस्लाल्जिया जगानेवाले हैं।

क्या लोर्ना डून हिंदी में उपलब्ध है?

admin said...

Bahut hi rochak lagi post. Aabhaar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत रोचक पोस्ट है।

आशुतोष उपाध्याय said...

तुमारी जेई बात तो तुम कूँ निराला बनाती है!!

सौरभ के.स्वतंत्र said...

इ का अशोक जी न्योता दिए बिना ही..छाप दे रहे...धाकड़ विषय उठायें हैं..सुनर लगा..साधू को मेरा वाद

मुनीश ( munish ) said...

The only Doons i've ever known are Dehra....& Har ki ....!Ashok bhai thnx for introducing this Doon.

अनूप शुक्ल said...

मैंने किताब तो नहीं पढ़ी लेकिन उसके बारे में पढ़ना अच्छा लगा। आपका जन्मदिन चाहे जब रहा हो हम आज के दिन जन्मदिन की मुबारकबाद दे रहे हैं आप अपने हिसाब से एडजस्ट कर लीजियेगा। :)

siddheshwar singh said...

नाम ना सुना पहले बाबूजी, मौज भई!