Thursday, August 13, 2009
गाओ, वे तुम्हारा इन्तज़ार कर रहे हैं: यारोस्लाव साइफ़र्त की कविताएं -३
एक पुरानी कशीदाकारी से नज़्में
प्राग!
जो भी उसे देखेगा एक बार
गूंजता हुआ सुनेगा उसका नाम
हमेशा - अपने दिल के भीतर.
वह समय में बुना हुआ एक गीत है अपने आप में
और हम उससे मोहब्बत करते हैं.
सो, गूंजने दो उसे!
जब मैं युवा था
मेरे पहले प्रसन्न सपने
उसकी छतों के ऊपर चमके
उड़नतश्तरियों की मानिन्द
और जाने कहां खो गए.
एक दफ़ा मैंने गड़ा दिया था अपना चेहरा
क़िले के दरवाज़े के नीचे कहीं
उस पुरानी दीवार के पत्थरों पर
और अचानक मेरे कानों में पड़ी
एक दुःखभरी गूंज.
वह बीती शताब्दियों की दहाड़ थी
मेगर सफ़ेद पहाड़ की
नम मुलायम मिट्टी
बहुत कोमल स्वर में फुसफुसा रही थी मेरे कानों में.
जाओ, आगे बढ़ो
तुम जादू से बंध जाओगे.
गाओ, वे तुम्हारा इन्तज़ार कर रहे हैं.
और हां, झूठ मत बोलना!
मैं गया और मैंने झूठ नहीं बोला
और तुमसे, मेरे प्यार!
- मैंने थोड़ा सा झूठ बोला बस.
सिर्फ़ एक बार
सिर्फ़ एक बार देखा है मैंने
सूरज को इतना लाल - ख़ून जैसा
फिर कभी नहीं देखा
वह किसी अपसकुन की तरह डूबा क्षितिज में
- लग ऐसा रहा था जैसे
लात मार कर खोल दिया हो किसी ने नर्क के दरवाज़ों को
- मैंने वेधशाला में पता किया था
अब मुझे नहीं मालूम क्यों.
हम सब जानते हैं हर जगह है नर्क
चलता है दो पैरों पर
लेकिन स्वर्ग?
ऐसा हो ही नहीं सकता कि
स्वर्ग वह मुस्कान भर हो
जिसका हमें अर्से से इन्तज़ार था
और वे होंठ
जो फुसफुसाते हैं हमारे नाम
और फिर वह संक्षिप्त सनसनीभरा पल
जब हमें यह भूलने की इजाज़त मिलती है
कि नर्क का कोई अस्तित्व भी होता है.
रूपान्तरण
वसन्त में एक चरवाहा लड़का बदल गया एक झाड़ी में
एक झाड़ी चरवाहे लड़के में
एक पतला बाल इकतारे के तार में
बर्फ़ बर्फ़ की ऊंची ढेरि में
और शब्द बदलते हैं प्रश्नचिन्हों में
बुद्धिमत्ता और प्रसिद्धि बुढ़ापे की रेखाओं में
तार बदल जाते हैं पतले बालों में
लड़का बदल जाता है कवि में
कवि दोबारा से बदलता है
- वह एक झाड़ी बन जाता है जिस पर वह सोया था
जब वह सौन्दर्य को इतना प्यार करता था कि वह रोता था
जो भी सौन्दर्य से प्यार करता है
वह मरने के दिन तक उसे प्यार करता जाएगा
निरुद्देश्य घिसटता जाएगा उसकि तरफ़.
सौन्दर्य के पास लेस जैसे नाज़ुक पैर हैं
सैन्डिलों में - आकर्षण से भरपूर
और उसके इस रूपान्तरण में
कोई जादू उसे बांध देता है एक स्त्री के प्रेम से.
भाप की फुंफकार की तरह तत्पर
किसी कीमियागर का आदेश मानने को
एक इकलौता क्षण पर्याप्त होता है
- वह गिर पड़ता है शिकार किए गए फ़ाख़्ते की तरह
बुढ़ापा होता है बिना लाठी का, विकलांग
- इस अनन्त जादुई खेल में
किसी भी चीज़ में बदल जाती है लाठी
शायद किसी फ़रिश्ते के पंखों में
जो फिलहाल फैल रहे हैं, उड़ान भरने को तैयार -
देहहीन, पीड़ाहीन, हल्के!
(फ़ोटो: प्राग के काफ़्का म्यूज़ियम की एक खिड़की से दिखता व्रत्लावा नदी पर बना चार्ल्स ब्रिज और प्राग की पुरानी बसासत माला स्त्राना की छतें)
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2 comments:
तीनों कवितायें एक से बढ़कर एक ...!!
Nice pic. !Looks like the start of autumn .
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