Sunday, September 6, 2009

उत्तराखंड सरकार जल्दी में थी

(सुधी पाठको, नैनीताल समाचार अब इंटरनेट पर पढ़ा जा सकता है. एक वो दिन भी था जब राजीव लोचन साह ने "अब नहीं चलता, अब बंद करता हूँ" की अपील छापी और पत्रों की बाढ़ ऐसी आई कि संपादक जी को अपना फ़ैसला बदलना पड़ा. आज उत्तराखंड की वो ख़बरें आप पढ़ सकते हैं जो "अख़बार" नहीं छापते. प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार हरीश चंद्र चंदोला का सद्य:प्रकाशित आलेख.)


जोशीमठ के ऊपर 10,000 फीट ऊँचे ऑली में जो 200 करोड़ रुपए से अधिक का काम दक्षिण एशिया के शीत खेलों के लिये केन्द्र तथा उत्तराखंड सरकार ने दिया था, उसका काफी कुछ भाग इस साल की पहली ही वर्षा में बह कर जोशीमठ शहर तथा उसके आसपास के गाँवों में आ गया। ये खेल पिछले शीत काल में होने थे, किंतु तब तक तैयारियाँ न होने के कारण इन्हें नवंबर-दिसंबर 2009 तक के लिये आगे बढ़ा दिया गया। अब इसे जनवरी 2010 तक फिर बढ़ा दिया गया है। मगर तब तक भी इसकी सारी तैयारियाँ पूरी हो पायेंगी, संभव नहीं लगता। ऑली में खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने विदेशों से आने वाले प्रतिभागियों के लिए जो बड़ा होटल बन रहा है, वह भी अभी पूरा नहीं हुआ है।

सबसे बड़ी समस्या आ रही है बर्फ पर तेजी से फिसलने स्की की प्रतियगिता के लिए बने 20 मीटर चौड़े तथा सवा किलोमीटर लम्बे रास्ते डबल स्की स्लोप की। यह ऑली के सबसे ऊपर जंगल से आरंभ होकर नीचे जाने वाली मोटर सड़क तक आता है। जिस ढलान पर वह बना है, उस पर हरी घास उगी रहती थी। उसे मशीनों से उखाड़ कर यह प्रतियोगिता मार्ग बनाया गया है। यह घासवाली भूमि, जिसे हम पहाड़ के लोग बुग्याल कहते हैं, अत्यंत संवेदनशील है। इसकी घास को कहीं भी जरा सा भी छीलें-उखाड़ें तो उसके नीचे की मिट्टी झर कर बहने लगती है। मिट्टी का यह घाव तब फैल कर बढ़ता रहता है, जब तक उसमें फिर से घास नहीं उग जाती।

पिछले साल इस रास्ते पर स्की स्लोप के खोदने का असर यह हुआ कि भारी वर्षा उस घास-उखाडे़ रास्ते की मिट्टी बहाकर नीचे 15 किलो मीटर की ढलान पर बसे डाँडों गाँव, जोशीमठ शहर तथा नरसिंह मंदिर के घरों में ले आई। यह बह कर आई मिट्टी घरों में भर गई। पानी घरों की निचली मंजिलों में भर कर ऊपरी मंजिलों की खिड़कियों से निकलने लगा। इस मिट्टी को निकालने व घरों को साफ करने में बहुत मेहनत तथा धन लगा। बाद में जोशीमठ नगरपालिका ने कुछ नागरिकों को इससे हुई हानि का मुवावजा भी दिया।

यह फिसनले वाला रास्ता मध्य योरोप की एक कंपनी ने बनाया था। उसका इंजीनियर और कर्मचारी अपना काम पूरा करके वापस चले गए। यह ऊँचा पर खुदा लंबा-चौड़ा रास्ता अभी भी बिना घास के वैसे ही नंगा ही है, जैसे पिछली वर्षा में था। इस महीने की पहली वर्षा फिर से वहाँ की बहुत सी मिट्टी बहा कर खेतों, सड़कों तथा घरों में ले आई। अभी यहाँ वर्षा काल आरंभ ही हुआ है और पानी अधिक नहीं पड़ा है। जब तेज वर्षा होगी तो उस रास्ते की और मिट्टी बहकर नीचे फिर से घरों में भर जाएगी। आशंका है कि अब वह घरों को ढहा न दे! इस खतरे से लोग बहुत डरे हैं। यह खेल न हुए, विपदा हो गये।

मैं ऊपर स्की स्लोप को देखने गया। उसमें कहीं-कहीं दस-दस फीट के गहरे गड्ढे बन गए हैं। उसमें भरी मिट्टी बह कर नीचे आ गई है। लेकिन अभी वहाँ की सारी मिट्टी नहीं बही है। अगर बहती है तो जोशीमठ का एक बड़ा भाग उससे भर जाएगा। वहाँ बरसात के पानी की निकासी का समुचित प्रबंध नहीं किया गया है। पिछले साल राज्य सरकार जल्दी में थी। स्लोप जल्दी बनाओ और खेल शुरू करो। इसके कारण सब काम तेजी से कराया गया। सोचा-समझा नहीं गया कि उस सब विकास के क्या परिणाम होंगे। राज्य के खेल विभाग के सचिव तथा अन्य अफसर 300 किमी. दूर देहरादून से आते थे और केवल यही बताते थे कि आयोजन कब तक पूरा हो जाएगा। ठेकदारों पर बड़ा दबाव था। ढाल कैसा है, उसका पानी कहाँ जाएगा, यह सोचने का किसी के पास समय नहीं था। जोशीमठ तथा आस-पास के गाँवों के पुराने लोगों को बुलाने-पूछने का किसी अधिकारी को समय नहीं था। अब जब कठिनाई आई है तो यहाँ के निवासी पूछते हैं कि ये सचिव-अफसर क्यों इतनी जल्दी में थे ? क्या इतनी बड़ी रकम खर्च करने पर उनका कमीशन बनता था ? इसे जल्दी खर्च करो और फिर कोई दूसरा काम पकड़ो ! यह विकास पर खर्च होने वाले धन का एक नमूना है: जल्दी खर्च करो और कमीशन बनाओ !
पानी घरों की निचली मंजिलों में भर कर ऊपरी मंजिलों की खिड़कियों से निकलने लगा। इस मिट्टी को निकालने व घरों को साफ करने में बहुत मेहनत तथा धन लगा।
स्की-स्लोप की भूमि दलदली थी। उसका पानी निकालने के लिये नालियाँ बनाई गई थीं। उनके ऊपर जालियाँ लगाई गई हैं, ताकि मिट्टी छन कर पानी नालियों में जाये। किन्तु जालियाँ मिट्टी से इतनी भर गई हैं कि उनसे पानी की निकासी नहीं हो पा रही है और बहता पानी उस घास-उखाड़े स्लोप पर गड्ढे बनाता जा रहा है। वहाँ चौकीदारी के लिए कुछ लोग लगा दिए गए हैं, लेकिन वे सरकारी लोग हैं, जो पानी की नालियों से मिट्टी हटाने का काम नहीं करते। नीचे एक पानी निकासी का नाला बनाया गया है, लेकिन वह ऐसा बना है कि पानी उसमें जाता ही नहीं। वह उसके समानान्तर बह कर गहरे गड्ढे बना रहा है।

खेलों की कुछ अन्य तैयारियाँ हो गई हैं। ऊपर एक बड़ी झील बनाई जा चुकी है, जिसके पानी से स्की-स्लोप पर बिछाने के लिये बर्फ बनाई जाएगी। बर्फ बनाने की मशीन आयात की जा चुकी है और बर्फ को फिसलने के लिए ठोस बनाने की भी। अन्य जरूरी मशीनें भी आ गई हैं। पहले बर्फ के खेलों के लिए जो रिंक अलग से कुछ नीचे 2006 में बनाया जाना था, वह अभी तक नहीं बना है। देखने से लगता है कि वह दिसंबर तक शायद ही बन पाए।

खेलों के रास्ते पर स्की स्लोप के ऊपरी भाग में एक बहुत बड़ा रिसोर्ट बना है। उसके बारे में अनेक विवाद हैं। वह किसी स्थानीय व्यक्ति की भूमि पर ही नहीं, वन भूमि पर भी अतिक्रमण कर बना है। दो वर्ष पहले जोशीमठ की उप-जिलाधिकारी वहाँ जा कर अतिक्रमित सरकारी वन भूमि पर बने उस रिसोर्ट के कमरों को तोड़ कर आई थीं। किन्तु उसके मालिक एक बहुत प्रभावशाली व्यक्ति माने जाते हैं। वे नैनीताल उच्च न्यायालय जाकर उस रिसोर्ट के विरुद्ध कोई कदम उठाने पर स्थगनादेश लेकर आ गए और जो कमरे उप-जिलाधिकारी ने तोड़े थे, उन्हें उन्होंने फिर से बना दिया।

बर्फ पर फिसलने के रास्ते, स्की स्लोप जिसके बीचोबीच यह रिसोर्ट बना है, उसके बने रहने के लिये स्की स्लोप को घुमा दिया गया है। लेकिन समस्या यह है कि रिसोर्ट में खाना बनाने, नहाने-धोने में गर्म पानी का इस्तेमाल होता है, जिसकी निकासी फिसलने वाले रास्ते के पास या नीचे है। इसका बहता गर्म पानी रास्ते पर जमा बर्फ को पिघलाता रहेगा, जिसके कारण फिसलने वाले खेलों में बाधा आएगी। इस समस्या का समाधान अभी तक नहीं निकल पाया है।

जो समिति इन शीतकालीन खेलों का आयोजन कर रही है, उसका मुख्य कार्यस्थल ऑली से 300 किमी. दूर देहरादून में है। समिति के अध्यक्ष और उसके सरकारी सदस्य कभी-कभी ही ऑली-जोशीमठ आ पाते हैं। इस काम की लगातार निगरानी नहीं कर पाते। समिति का कहना है कि वह इन खेलों को अगले वर्ष के आरंभ में अवश्य करा लेगी। किन्तु तैयारियों को देखने से यह कठिन लगता है। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि कितने दक्षिण एशियाई देश इनमें भाग लेंगे।

3 comments:

मुनीश ( munish ) said...

Thats very pathetic and shameful indeed !

कामता प्रसाद said...

माने संवेदनहीन नौकरशाही और मनुष्‍य-विरोधी बोर्जुआ तंत्र की चपेट से देवभूमि भी बाहर नहीं है। हृदयविदारक वृतांत।

Unknown said...

चंदोला जी,
बधाई आपकी बैटिंग जारी है लगातार।

पता नहीं इस बक्से में आप झांकेंगे या नहीं. अगर इत्तफाकन नजर पड़ जाए तो कृपया मुझे अपना फोन नंबर और ई-पता मेल करें। जरूरी है।

याद है आप हम दोनों को नगालैंड में फीजो के गांव खोनोमा खेल ले गए थे।