नवरात्रि के अवसर पर आईये आपको सैर करा लायें दन्तेवाड़ा की.यहां मां दन्तेश्वरी का मंदिर है। मान्यता है कि भगवान शिव के तांडव के बादा माता सती का दांत टूट कर यहां गिरा था इसलिये माता का नाम दन्तेश्वरी और इलाके का नाम दन्तेवाड़ा पड़ा। दन्तेश्वरी मैया के मंदिर के भीतर प्रवेश करने के लिये आपको धोती या लुंगी ही पहनना पड़ता है। नक्सलियों का यहां ज़बरदस्त प्रभाव है और बस्तर के कुंआरे वनों से उठती मादक बयार दीवाना कर देने के लिये काफ़ी है। दन्तेवाड़ा रायपुर से 383 किमी दूर स्थित है और सड़क मार्ग बारहमासी है।
दन्तेश्वरी माता से जुड़ी एक और मान्यता है। वारंगल के काकातिया राजा अन्नम देव यहां आये थे। बस्तर राजवंश के पहले उनका राज था। उन्हें माता ने वरदान दिया था जंहा तक़ वे जायेंगे उनका राज्य होगा शर्त ये थी कि उन्हे पीछे मुड़ कर नही देखना होगा। अन्नम देव चलते-चलते यंहा तक़ आये और शंखिनी-डंकिनी नदियों के संगम को पार करने के बाद रूक गये। उन्हें पीछे चल कर आ रही माता की पायल की रुनझुन सुनाई नही दी। उन्होने पीछे पलट कर देखा तो माता नदी पार कर रही थी और पानी के कारण पायल की आवाज़ निकल नही रही थी। बस माता वंही रूक गई और अन्नम देव ने संगम के तट पर उनका मंदिर बना कर उन्हे स्थापित किया।
मां दन्तेश्वरी की प्रतिमा भव्य है और काले पत्थर की है। आंखे और भवें चांदी की है सर पर बारीक काम किया हुआ चांदी का छत्र है और नाक मे चांदी की नथ है। यहां भगवान नरसिंह की प्रतिमा है। गर्भ गृह से जुड़े सभामंडप और नृत्यमंडप हैं। यहां बारसूर शैली की नटराज की और मां दुर्गा की खडी प्रतिमा हैं। नंदी और दो द्वारपाल की विशालकाय प्रतिमायें देखते ही बनती है। मंदिर परिसर मे बना गरुड स्तंभ इस इलाके मे उस काल मे वैष्णवों के प्रभाव का प्रमाण है। मंदिर लकड़ी का बना हुआ है और यदि किसी को बताया ना जाये तो मकान जैसा लगता है। पहले इस इलाके से आगे यात्रा पर जाने वाले मंदिर मे एक बकरी दिया करते थे जो उनकी यात्रा की सफ़लता की गारंटी होती थी। मंदिर का महात्म्य का प्रमाण मशहूर तांत्रिक चंद्रस्वामी का यहां अनुष्ठान के लिये आना भी है। उन्होने अर्जुनसिंह और नरसिंह राव विवाद के समय यंहा की यात्रा की थी।
दन्तेवाड़ा हालांकि नक्सल प्रभावित क्षेत्र है लेकिन दिन के समय यंहा किसी प्रकार का डर नही रहता। दन्तेवाड़ा ज़िला है लेकिन ये एक छोटे से कस्बे से बड़ा नही है। यहां जाने के लिये राजधानी रायपुर से ही जाना होता है जो सड़क और हवाई मार्ग से सारे प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। राजधानी से बमुश्किल 15 किमी की ड्राईव मे ट्रैफ़िक ज्यादा नज़र आता है उसके बाद तो लांग ड्राईव का आनंद है। 77 किमी दूर धमतरी ज़िला पार करते ही पहाड़ और जंगल शुरू हो जाते है और मेरा दावा है कि ये बहुत खूबसूरत द्श्यो से भरी गिनी चुनी सडको मे से एक होगी।
चारामा के बाद कांकेर और उस्के बाद केशकाल की घाटी तो ऐसा लगता है कि अलग ही दुनिया मे ले आई है। चारों ओर दूर-दूर तक़ फ़ैले घने जंगल,शांत,शीतल बहती हवा मदहोश कर देती है। बस्तर नाम का संभाग है मगर इस नाम का एक छोटा सा 2000 के आसपास की आबादी वाला गांव भर बस है यहां। जगदलपुर ज़िला मुख्यालय है यहां रूकने के लिये अच्छे होटल और मोटल के अलावा सरकारी रेस्ट हाऊस भी है। यहां से करीब ही भारत का सबसे बड़ा जलप्रपात चित्रकोट भी है जिसे देसी नियाग्रा कहा जाता है। दन्तेवाड़ा के करीब बारसुर मे तंत्र गणेश है। बलुआ पत्थर की विशालकाय गणेश प्रतिमायें देखते ही बनती है। यहीं आपको विलुप्त हो रही पहाड़ी मैना भी देखने मिल जायेगी। और भी बहुत कुछ है बताऊंगा फ़िर कभी फ़ुरसत से बस्तर के बारे मे। इसी लिये कहता हूं बस्तर तीर्थ का तीर्थ,पिकनिक की पिकनिक।
5 comments:
धन्यवाद ! आभार ! तस्वीरें कम रहीं मगर !
2002 मे इस मन्दिर के निकट ही एक कवि सम्मेलन मे जाना हुआ था तब जी भरकर इस परिसर को देखा । अच्छी तस्वीरें लगाई हैं आपने । और जानकारी भी पर्याप्त है ।
देश-वासी 'कक्ख' नहीं जानते इस इलाके के बारे में ! शरद जी हो आये सो
कह रहे हैं पर्याप्त . जानकार तो ये भी कहते हैं की कम जानना सुखी रहना !
मुनीश भाई चिंता न करे जितना संभव हो सकेगा हम बतायेंगे आपको और यदी आप आये तो घुमायेंगे भी।एक बात ज़रुर है इस इलाके के बारे मे जानकारी या तो दी नही गई या जानबूझकर छीपा कर रखी गई।इसे आदिवासियो के नाम पर म्यूज़ियम बनाने का काम करने की कोशिश ज़रूर हुई वो भी ढंग से नही की गई।
achhi jankari...achhi post...
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