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जीएल अग्रवाला भूल जाएं, इससे पहले यानि फौरन से पेश्तर उनके प्रस्ताव पर अमल कर डालना था। जनता होटल से डेरा-डंडा उठाया गया और अगली रात हम लोग जोरहाट जाने वाली बस में बैठ गये। निचले के बाद अब ऊपरी असम का चक्कर लगाने का इरादा था। विभोर भाव से ब्रह्मपुत्र में धुंध से घिरे लाइट हाउसों को देखते और स्टीमरों की सीटियां सुनते हुए भोर में पांच बजे हम लोगों ने पूर्वांचल प्रहरी के जोरहाट दफ्तर की ऊपरी मंजिल पर बने गेस्ट हाउस में जीएल अग्रवाला के खास कमरे में डेरा डाल दिया। वहां आलमारियों में अगरबत्तियां, मोमबत्तियां, तरह-तरह के स्प्रे, असमिया और अंग्रेजी में कचहरी की न समझ में आने वाली फाइलें और बदलने के लिए कपड़े इफरात थे। अपने काम की चीजों का हम लोगों ने तुरंत इस्तेमाल भी शुरू कर दिया। लेकिन सारी सजधज बेकार थी। उस दिन कहीं जा नहीं सकते थे क्योंकि आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने हिंदी भाषियों की हत्याओं के विरोध में बंद का आह्वान किया था। पूर्वोत्तर का बंद वाकई बंद होता है। सचमुच उस दिन पत्ता नहीं हिलता।
नीचे अखबार का दफ्तर था, उपर गेस्ट हाउस। पाजामा पहने बस नीचे जाकर बैठ जाना होता था कि सारी लोकल खबरें अपने आप मिलने लगती थीं। एक रिपोर्टर कालिता खबर लाया कि बंद के कारण दिल्ली से आये हुए एक बुजुर्ग पत्रकार यहां के एक होटल में फंसे हुए हैं। हम लोगों ने सोचा कि जरा दिल्ली वाले को चल कर देखा जाए कि वह यहां जोरहाट में क्या तलाश रहा है।
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5 comments:
मानना पड़ेगा, कि लिखने का तरीका बांधे और उत्सुकता जगाये है. सुन्दर!
bakai yar Anil ji, aapne reporaz me Phanishwarnath Renu ki Kissagoi aur style ko jivant kar diya hai. Aapko hredaya se Istakbal karta hoon.
sab kuchh dilchasp. achanak milne wale bhi. pichhlee baar bachha prasad, is baar chandola ji
this kind of reporting is rare these days; in Hindi especially !
kahan ho prabhu jaldi chapo kuch aur
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