आज पच्चीस साल हो गए...
एक दिन कोई लिखेगा आज पचास, आज सौ और फिर न जाने कितने और साल हो गए...
एक दिन लोग चुप भी हो जायेंगे... धरना,प्रदर्शन,विरोध सब बंद हो जाएगा..ज़ख्म हद से गुज़र जायेगा और फिर आदत बन जायेगा…
बंबई में जितने लोग मारे गये, अमेरिका के वर्ड ट्रेड सेंटर में या कहीं और उनसे कई गुना मरे थे भोपाल हादसे में। एक पूरी पीढी तबाह्…एक पूरा इलाक़ा विकलांग…पता नहीं कितने पागल…और क्या-क्या! परंतु सब ऐसे गुज़र गया जैसे मक्खन से छूरी। दूर की छोडिये पिछले दस साल में मैने मध्यप्रदेश के भीतर दूसरे शहरों में इस पर कोई विशेष हलचल नहीं देखी।
और सरकारों का क्या कहें? अगर आज के हिंदू में छपी रपट के हवाले से कहें तो सरकार ऐसे व्यवहृत कर रही है कि अपराध जितना पुराना होता जा रहा है उतना ही कम!एंडरसन अमेरिका के अपने शानदार बंगले में ऐयाशी कर रहा है और उसके भाई-बिरादरों के दबाव में सरकार उसके प्रत्यार्पण को भूले बैठी है।
हमें भी कितना याद है?
8 comments:
सही कह रहे हैं ये २५ कब १०० में बदल जायेगा..मगर हालात वही रहेंगे.
यह नई पीढ़ी क्या कह रही है सुनो..
कौन एन्डरसन ?
क्या यूनियन कार्बाइड ? अच्छा बाबा ऐसे मरे थे ? ओह .. इट्स वेरी ट्रैजिक ..। ये एवरेडी की बैटरी जोरदार है ना ? इसे आइपोड मे लगाओ... लेट्स लिसन म्यूज़िक ..तुरुरुरुरु तुरुरुरु ।
शरद जी आपको गलतफहमी हो गई है। नई पीढी का काम आप भोपाल आकर देखिये। उल्टे हमें लगता है कि ये पुरानी उम्र के नेता, नौकरशाह, बिना काम के बुद्धिजीवी है जो चाह रहे है कि नई पीढी एंडरसन को भूल जाये, यूनियन कारर्बाइड को भूल जायें। इस हत्या में जितने भी शामिल लोग है और इसके बाद मची लूट में शामिल लोग हैं उनमे से किसी की उम्र पचास से कम हो तो कृपया जरूर सूचित करें।
हिन्दुस्तानियों को दबने की आदत है ....फिर कहेगे संयम वाले है .......इसमें किसी राजनेता या पार्टी ही नहीं पूरा देश दोषी है ....जो नपुंसक हो कर बैठ गया था ....
शरद भाई, चंदन जी
सवाल क्या सचमुच उम्र और पीढियों के दायरे में समझा जा सकता है? क्या यह सरलीकरण हमेशा बांट नहीं देता संघर्ष के भागीदारों को?
सही बंटवारा कुछ और होगा ना भाई!
भोपाल गैस काण्ड तब घटा जब हम पैदा भी नहीं हुए थे पर उसके बारे में जान कर सिहर जाते हैं.
@ शरद कोकस - चन्दन जी ठीक कह रहे हैं. हर बात के लिए नई पीढ़ी को दोष कैसे दिया जा सकता है. हमारी पूरी पीढ़ी ऐसी नहीं है शरद जी. हममे भी सोचने समझने वाले लोग हैं. दूर नहीं अपने बीच नई पीढ़ी के कवि-कहानीकारों को ही ले लीजिये.
25 saal gujar gaye,is trasadi ko,aaj bhi peedit apane haq ke liye bhatak rahe hai.sarkar us jameen par park banwane ja rahi hai,uska kachara kahi aur doosaro ko beemar karne ke liye bheja ja raha hai,aakhir koi sharam hai ki nahi,kab tak ek hi haadase ke naam se khate rahenge.doosare ki jameen tyyar hogi tabhi to khane me naya swad aayega.is der ko andher na kahe to kya kahe?
ham nafarat karana aor badala lena bhi bhul gaye hain. aor pyar kya karenge...aakhir dosiyo ki khooni tasvir hamari aankho se kyoo ojhal ho jati hai .....?
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