Friday, December 4, 2009

इस संसार में लगा हुआ है पीड़ा का अथाह अंबार !

अन्ना अख़्मातोवा की कवितायें आप पहले भी कई दफा पढ़ चुके हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक और कविता:


अगर आसमान में परिक्रमा करना छोड़ दे चाँद

अगर आसमान में परिक्रमा करना छोड़ दे चाँद
मगर लुटाता रहे शीतलता
और चमकता रहे छापे की तरह.
मेरा मृत पति दाखिल होता है घर में
प्रेमपत्रों को पढ़ने के वास्ते.

वह याद करता है
आबनूस की काठ से बने संदूक को
जिस पर जड़ा है
अलहदा किस्म का गु्प्त ताला
वह बिखरा देता है तमाम चीजें
लौह -जंजीरों से जड़े पैरों की धमक से
धँसकता है फर्श.

वह देखता - परखता है मेल - मुलाकातों का बीता वक्त
और धुँधले पड़ते जाते हस्ताक्षरों की पाँत
उसके तईं कतई इकठ्ठी नहीं हैं पर्याप्त तकलीफें
और जबकि
इस संसार में
लगा हुआ है पीड़ा का अथाह अंबार !
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अन्ना अख़्मातोवा की कुछ कवितायें यहाँऔर यहाँ भी...

4 comments:

शायदा said...

बहुत अच्‍छी कविता, सुंदर अनुवाद।
कैसी अदभुत बात है म्रत पति का आना प्रेमपत्र पढ़ने के वास्‍ते, वास्‍तव में ऐसा लिख पाना क्‍या आसान है...।

कामता प्रसाद said...

भाई सिद्धेश्‍वर जी, विंडो 7 पर कुछ और खूबसूरत यूनीकोड फोंट आये हैं। कबाड़ की सामग्री अच्‍छी लगेगी भौतिक रूप से भी। शास्‍त्रीय संगीत के बारे में कुछ बतायें कि किसको सुना जाये। कविताओं का आस्‍वाद विकसित होने लगा है, साधुवाद।

मनोज कुमार said...

अच्छी रचना। बधाई।

सुशील छौक्कर said...

अन्ना की लेखनी में ऐसा जादू है कि बस आदमी खिंचा चला जाता है। हमने भी लगाई थी उनकी रचनाएं अपने ब्लोग पर इसी जादू के कारण।