Friday, December 25, 2009

एक हिमालयी यात्रा - दसवां हिस्सा



(पिछली किस्त से जारी)

जौलिंगकौंग से निकलते-निकलते हमें बारह बज गया है. जौलिंगकौंग छोड़ते हुए मैं किसी छोटी-मोटी फ़तह की धुंधलाई प्रसन्नता में एक दफ़ा पलटकर सिन-ला पर निगाह डालता हूं. जीवन में देखे गए सुन्दरतम लैन्डस्केप हैं ये.

कुटी के रास्ते में हमें विचित्र भूगर्भीय संरचनाएं नज़र आती हैं - ये पुराकालीन टैथीज़ महासागर के अवशेष हैं. चट्टानें मुझे नीदरलैन्ड्स एन्टीएज़ के कुरासाओ द्वीप में देखे समुद्रतटों की याद दिलाती हैं. वे खुरदरी हैं और उनमें तमाम फ़ॉसिल्स धंसे हुए हैं. मैं आंखें बन्द करता हूं और कल्पना करता हूं कि कुरासाओ की समुद्री गुफा बोका ताब्ला के सम्मुख खड़ा हूं. एक संक्षिप्त क्षण को मुझे वह असम्भव जादू घटता महसुस होता है.

मुझे विशाल लहरों की सुदूर ध्वनियां सुनाई देती हैं और मैं प्रस्तरयुग से पहले की सड़ी मछलियों की बदबू तक सूंघ पाता हूं. अचानक मेरा दिमाग मारकेज़ के उपन्यासों सरीखी जादुई छवियों से अट जाता है जिनमें तमाम सूख चुके महासागर हैं. मुझे एक पल को लगता है मैं इस दुनिया में हूं ही नहीं.

यह सब इतनी तेज़ी और संक्षिप्तता के साथ हुआ है कि मैं हक्काबक्का हूं.

हम कोशिश करते हैं कि कुछ फ़ॉसिल्स स्मृति के वास्ते अपने साथ रख लें लेकिन वे बेहद मजबूती के साथ चट्टानों में खुभे हुए हैं. उन्हें निकाल पाने के लिए छैनी-हथौड़ी की ज़रूरत पड़ेगी. इसी सूखे समुद्रतट का रास्ता कुछ देर साथ चलता है. इस सम्पूर्ण बंजर इलाके में हमें अचानक एक बौना सा भोजपत्र का वृक्ष दिखता है.

"तुम्हें अहसास है, चोको" सबीने पूछती है "पिछले तीन दिनों में हमने यह पहला पेड़ देखा है."

मैं तुरन्त इस बौने गांठदार पेड़ के गांठदार तने को गौर से देखने लगता हूं.

जौलिंगकौंग से कुटी के बीच के चौदह किलोमीटर के फ़ासले के दौरान कोई भी, किसी भी तरह की बसासत नहीं है. चाय की एक दुकान तक नहीं. रास्ते में कई जगह भूस्खलन हुआ है. इनमें से कई ताज़े लग रहे हैं. और अब पेड़ हैं - काफ़ी सारे. हम कुटी यांगती के बगल - बगल चल रहे हैं. लैन्ड्स्केप थोड़ा सा घुमावदार होने लगा है - नदी के दोनों तरफ़ विशाल पर्वत हैं. नदी अब भी शान्त बहती जाती है.

जौलिंगकौंग के दो खुशनुमा दिनों ने हमारी थकान काफ़ी हद तक दूर कर दी है. दो स्थानीय लोग नज़र आते हैं - यानी हम कुटी पहुंचने को हैं. दोनों लोग जयसिंह के पास जाकर हमारे बारे में सवाल करते हैं. मुझे यह जानकर हंसी में फूट पड़ने की इच्छा होती है कि वे मुझे भी फ़िरंगी समझे हुए हैं.

व्यांस घाटी में सबसे ज़्यादा ऊंचाई पर स्थित गांव है कुटी. कुटी जब आपके सामने आता है वह उतना नाटकीय तरीके से हतप्रभ कर देने वाला सुन्दर नहीं होता जितना दारमा घाटी का बालिंग गांव. अलबत्ता छतों के ठीक सामने दो विशालकाय पहाड़ हैं. इन्हें देखकर पीठ के बल लेटे दो बूढ़े और प्राचीन रोमन योद्धाओं की छवि उभरती है. उनकी आंखें बन्द हैं और ऐसा लगता है कि वे एक दूसरे की उपस्थिति से बेपरवाह हैं.

कुमाऊं मन्डल विकास निगम का कैम्प गांव के प्रवेश पर अवस्थित है. हम करीब पांच बजे वहां हैं. वही दो इगलू, वही तीन लोगों का स्टाफ़ - एक मैनेजर, एक कुक और एक वायरलैस ऑपरेटर. तीनों ताश खेलने में मगन हैं और हमें आता हुआ देख चुकने के बाद भी बहुत बेरुखी दिखलाते हैं.

मुझे तीन बार अपनी उपस्थिति जतानी होती है तब जाकर उनमें से एक बेमन से उठता है और हमें इगलू का रास्ता दिखाता है. जब मैं उसे बतलाता हूं कि हम जौलिंगकौंग से आ रहे हैं, उसके व्यवहार में अचानक बदलाव आ जाता है.

"ओ! सो यू आर मिस्टर पाण्डे? कल रात शर्माजी ने मुझे वायरलैस किया था. तुमूंल पैली किलै नी बताय? (आपने पहले क्यों नहीं बताया)"

वह तीन भाषाओं में तीन वाक्य बोलता है - क्रमशः अंग्रेज़ी, हिन्दी और कुमाऊंनी में.

"वन मोर ब्रदर फ़ॉर यू चोको" सबीने मेरी टांग खेंचना शुरू करती है.

दोनों इगलू खाली हैं. हम उनमें से एक चुन लेते हैं.

मैं मैनेजर से पूछता हूं कि कुटी में आई. टी. बी. पी. की चैकपोस्ट है या नहीं. हां सुनने पर हम तुरन्त आई. टी. बी. पी. कैम्प का रुख करते हैं. जौलिंगकौंग जैसी घटना की पुनरावृत्ति हम नहीं चाहते.

आई. टी. बी. पी. कैप इन सारी घाटियों में देखा गया सबसे बड़ा है. बहुत सारे सिपाही हैं. सारे किसी न किसी काम में लगे हुए हैं. दस मिनट के भीतर तमाम ऑपचारिकताएं पूरी हो जाती हैं और कोई भी हमें उबाऊ वार्तालाप में नहीं घसीटता.

इगलू के दरवाजे पर खटखट होती है. कोई बेहद नफ़ीस अंग्रेज़ी में कहता है: "मे आइ डिस्टर्ब यू फ़ॉर अ व्हाइल सर?"

(जारी)

1 comment:

अजेय said...

मुझे विशाल लहरों की सुदूर ध्वनियां सुनाई देती हैं और मैं प्रस्तरयुग से पहले की सड़ी मछलियों की बदबू तक सूंघ पाता हूं. अचानक मेरा दिमाग मारकेज़ के उपन्यासों सरीखी जादुई छवियों से अट जाता है जिनमें तमाम सूख चुके महासागर हैं. मुझे एक पल को लगता है मैं इस दुनिया में हूं ही नहीं.

यह सब इतनी तेज़ी और संक्षिप्तता के साथ हुआ है कि मैं हक्काबक्का हूं.
superb.yahi hai kavitaa ka nayaa bhoogol....