(पिछली किस्त से जारी)
इसके अतिरिक्त भी इन थोपे गए कांग्रेसियों का प्रभाव बस्तर के आदिम समुदाय में बहुत ही कमज़ोर था, जिसका कारण पूरी दुनिया जानती थी, वह थी इनकी संकीर्ण मनोवृत्ति. भारत के अन्य भाग के निवासी बस्तर के इन आदिम समुदाय के लोगों को असन्तुलित तथा समस्याग्रस्त बच्चे समझते हैं, किन्तु मुझे कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि पं. नेहरू जो निस्संदेह पूरी तरह संतुलित मस्तिष्क के स्वामी हैं, के सामने जब कभी भारत के लिए वित्तीय या राजनैतिक समस्या का प्रश्न उपस्थित हो जाता है तो अपने आप को पूरी तरह सन्तुलित नहीं रख पाते. आदिम समुदाय के इन आदिवासियों का सिद्धान्ततः विश्वास है कि उनकी देवी ही उनके लिए सब कुछ और एक मात्र आराध्य है. ये अन्य दूसरे भारतीयों कि तरह नहीं हैं कि एक क्षण में वे धर्म और सम्प्रदाय का अन्ध अनुसरण कर जावें. आदर्शों की आराधना पुरातन काल से ही भारत की भारतीय संस्कृति रही है और मैं समझता हूं कि यह भारत को थोपी गई कोई विदेशी परम्परा नहीं है. अध्यात्म के सन्दर्भ में आदिम समुदाय के ये आदिवासी भी यही मानते हैं कि विभिन्न रूपों में उनकी देवी का स्वरूप ही विभिन्न वस्तुओं में विद्यमान है. जहां तक परम्पराओं का प्रश्न है, इन आदिम समुदाय के लोगों को उस काल से, जिसका वे स्मरण भी नहीं कर सकते - उन्हें अच्छा और बुरा, पाप-पुण्य तथा सत्य और असत्य का अन्तर करना, भेद करना सिखाया जा रहा है जो एक हिन्दू शास्त्रीय अनुशासन की एक परम्परा है. इस तरह जो भी कृत्य धार्मिक समझा गया है वह हिन्दू संस्कृति के लिए हमेशा से स्वीकार किया गया है. किन्तु यह दुर्भाग्य की बात है कि इन्हीं सरल लोगों को मानवता से अलग कर धार्मिक आत्मोत्सर्ग और आत्मबलिदानी की अपेक्षा - पशुबल और पशुव्यवहार की ओर निजी स्वार्थों की पूर्ति और अपने सदोष लाभ के लिए इन्हें प्रेरित किया जा रहा है.
कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स के दुरावपूर्ण नियन्त्रण में मुझे और मेरी सम्पत्ति को दिए जाने के बाद मैं विवाह कर लेना चाहता था जो विजयचन्द और उसके करीबी कांग्रेसी सहायकों के लिए एक ज़्यादती थी.वे अच्छी तरह जानते थे कि यदि मेरा कोई अन्य उत्तराधिकारी उत्पन्न हुआ में मात्र वही बस्तर में सत्ता का हमेशा के लिए उत्तराधिकारी होगा और वे सत्तासुख से वंचित रह जाएंगे. इन्ही कारणों से कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स से मेरी विमुक्ति के लिए उन्होंने कभी मेरा सहयोग नहीं किया. क्योंकि उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ला द्वारा खुफ़िया निर्देश दिया गया था कि मुझे आर्थिक रूप से हमेशा तंग रखा जाए और मेरे निजी वित्तीय संसाधनों पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया जाए. साथ ही विशेष रूप से प्रस्तावित विवाह के लिए कोई सहयोग न किया जाए. कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स के इस असहयोग का यह स्वाभाविक परिणाम हुआ कि आदिम समुदाय में न केवल असन्तोष फैलने लगा वरन इन आदिवासियों ने अपने महाराज के विवाह जैसे खर्चीले आयोजन के लिए धन जमा करना शुरू कर दिया किन्तु प्रन्तीय सरकार आदिवासियों के इस प्रयास को विफल कर देने के लिए उन्हें बिना किसी कारण या अपराध के गिरफ़्तार करने लगी. आदिम समुदाय के इन लोगों की गिरफ़्तारी के लिए पुलिस प्रशासन यह दलील देने लगा कि ये लोग आम आदमियों से ज़बरन धन की वसूली कर रहे हैं. मि. कुंवरसेन जो उस काल में बस्तर के सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे ने निचली अदालत में मेरे लिखित अभिकथन पर जो उनके विरुद्ध किया गया था, पुलिस प्रशासन का बचाव आदिम समुदाय के विरुद्ध किया था. बस्तर पर थोपे गए कांग्रेसियों से अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने के लिए कुंवरसेन पूर्व से ही उत्सुक था. यद्यपि वह अपने आप को एक डेमोक्रेटिक-प्रजातांत्रिक विचारधारा का हिमायती बताता था, असलियत में वह फ़ासिस्ट और कठोर प्रशासन चलाने वाला एक तानाशाह था. वह मेरे आसपास असामाजिक गुण्डातत्वों के जमघट को बढ़ावा देने लगा था किन्तु मुझे दिखाने के इन गुण्डातत्वों को मेरे सामने ही डांट डपट देता था ताकि मेरी सहानुभूति उसे मिलती रहे. उसने मेरे साथ कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स से विमुक्तिकरण तक के स्तर का सौदा करने की कोशिश की थी. उसकी शर्त यह थी मैं न्यायिक कार्रवाई में निरीह आदिवासियों तथा आदिम समुदाय को दण्ड दिलाने में उसकी सहायता करूं. यह उसका दुर्भाग्य ही था कि प्रारब्ध ने उसकी यह मंशा पूरी नहीं होने दी क्योंकि उसके वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तथा उसके अन्य सहयोगी सूर्यपाल तिवारी भी इसमें उसका साथ नहीं दे सके. पुलिस के ये वरिष्ठ अधिकारी उन व्यक्ति विशेष लोगों से जो आदिम समाज के लोगों की जागृति एवं विकास के लिए समर्पित भावना से कार्य कर रहे थे - के मार्ग का अवरोध बनकर उन से शत्रुता नहीं लेना चाहते थे. इस काल में जब मुझे कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स के नियन्त्रण में प्रतिबन्धित कर दिया गया था इन आदिवासी समुदाय के समर्पित सेवकों को अपनी दलगत राजनैतिक विचारधारा में सम्मिलित कर लेने का उन्हें एक अच्छा अवसर मिल गया था. इसके लिए वे जी-जान से प्रयत्न करने लगे. नरोना को भी इस समुदाय की समस्याओं का सफलतापूर्वक समाधान कर लेने का श्रेय अनायास ही मिल गया था.
(जारी)
2 comments:
अशोक जी, बहुत बहुत शुक्रिया. प्रवीर.. का अनुवाद करके आपने बडा कार्य किया है. शायद आपकों और पाठकों याद हो कि कुछ समय पहले कांतिकुमार जैन ने (शायद हंस में या कही और) प्रवीर के विषय में एक संस्मरण लिखा था. लेकिन वह संस्मरण कही से भी उनके उद्दात बोध का परिचय नहीं देता. एक बार फिर आपका शुक्रिया अदा करता हूँ.
वाकई मे प्रशंसनीय प्रयास है.
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