'वे जो लकड़हारे नहीं हैं' सुरेश सेन निशान्त की कविताओं का संग्रह है जो अंतिका प्रकाशन से इसी साल २०१० में आया है. निशान्त की कविताओं की सहजता ने हिन्दी कविता के एक बड़े हिस्से को ओर अपनी ओर खींचा है.उनकी कविताओं की दुनिया में कोई 'दूसरा' संसार नहीं बल्कि अपना 'लोक' है और उनके शिल्प में कारीगरी -कताई - बुनाई की अपेक्षा सीधी - सादी - सरल कहन है. आज इसी संग्रह से साभार प्रस्तुत हैं दो कविताये :
मैं क्या ग़लत करता हूँ
मैं क्या ग़लत करता हूँ
एक कवि से माँगता हूँ
उसका ईमानदारी भरा दिल.
एक फूल से चाहता हूँ
उसकी प्यार भरी गंध.
नदी के जल के पास रखता हूँ
मछलियों के संग
तैरने की इच्छा.
मैं क्या ग़लत करता हूँ
पत्नी की आँखों में ढूँढता हूँ
खोई हुई प्रेम भरी
चिठ्ठियों का मजमून.
बच्चों में ढूँढता हूँ
भविष्य के रास्तों की गंध.
स्वर्ग सिधारे पुरखों से
माँगता हूँ
धरती के चेहरे पे फैली
बिवाइयों के लिए माफी.
मैं क्या ग़लत करता हूँ
जो कविता से माँगता हूँ
अंधेरे में कंदील भर रोशनी
धूप में पेड़ भर छाँव
प्यास में घूँट भर जल.
***
कविता
कविता वहीं से करती है
हमारे संग सफ़र शुरू
जहाँ से लौट जाते हैं
बचपन के अभिन्न दोस्त
अपनी - अपनी दुनिया में.
जहाँ से माँ करती है हमें
दूर देश के लिए विदा.
जिस मोड़ पर
अपनी उँगली छुड़ाकर
अकेले चलने के लिए
कहते हैं पिता.
ठीक वहीं से करती है
हमारे संग कविता
अपना सफ़र शुरू.
10 comments:
दोनों कविताएँ बहुत बढ़िया हैं...सुरेश सेन जी को काव्य संग्रह पर बधाई
रोहतांग के बारे में बताया जाए। किस्से, फोटो, कुछ भी। क्या वाकई रोहतांग का मतलब वही है जो मुनीश ने बताया।
मैं क्या ग़लत करता हूँ
एक कवि से माँगता हूँ
उसका ईमानदारी भरा दिल.
निशांत जी धूप में छांव क़ी ही तरह है आपकी कविता शीतल और सरल .......बहुत बधाई !!
सुन्दर कवितायें ।
दोनों ही रचनायें बेमिसाल्…………शानदार्।
निशांत जी को संकलन की बधाई
वाह!
दोनों ही कविताएँ मंत्र मुग्ध कर देने वाली हैं.
भाषा, माँ की ममता जैसी प्यारी..सरल..
भाव, समुन्द्र की गहराईयों को भी मात कर देने वाली.
...आभार.
marmsparshi kavitaen!
@Soul---http://www.geckogo.com/Attraction/India/Himalayan-North/Manali/Rohtang-Pass/
pls. chk the above link !
sundar kavitaayen. nishant bhai, blog me BHI aap ki kavitaaye achchhee dikhatee haiN.
Suresh sen Nishant ko badhi ho inki kavitaon par
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